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मठ भारतीय ज्ञान परम्परा के श्रेष्ठ पोषक – प्रो.लक्ष्मीताताचार्य

मठ भारतीय ज्ञान परम्परा के श्रेष्ठ पोषक – प्रो.लक्ष्मीताताचार्य

   चित्तौडग़ढ़ हलचल।  कर्नाटक से मेलुकोटे के प्रोफेसर एमए लक्ष्मीताताचार्य ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा को श्रेष्ठ बनाने में देश के प्रमुख मठों का अनुकरणीय योगदान रहा है। इसी कारण वे शिक्षा के केन्द्र और भारतीय ज्ञान परम्परा के श्रेष्ठ पोषक माने जाते है। प्रोफेसर लक्ष्मीताताचार्य श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय एवं भारतीय दर्शन अनुसंधान परिषद शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय भारतीय दर्शन के लिए हिन्दु मठों के योगदान विषयक पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जहां विद्यार्थी एवं गुरू निवास कर पठन पाठन करते हो वह स्थान मठ कहलाता है, प्राचीन काल में मठ को विद्यापीठ कहते थे जो आज भी देश के विभिन्न क्षेत्रों में विश्व विद्यालयों के बजाय विद्यापीठ के नाम से जाने जाते है। उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि नैयायिक माउंटआबू से आए महंत श्री सियारामदास महाराज ने हिन्दु मठों की भूमिका भारतीय दर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ बताते हुए कहा कि रामायण नारी को समर्पित महाकाव्य है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक सनातन मतावलम्बी को प्रात: महाभारत, दोपहर को नारी प्रसंग अर्थात रामायण का मनन पठन और रात्रि में श्रीमद भागवत चिंतन मनन करना चाहिए।

चारों वेद भवन शंकराचार्य के मठों के प्रतिरूप

भारतरत्न गुलजारीलाल नन्दा नीति एवं दर्शन शास्त्र केन्द्र कुरूक्षेत्र के प्रोफेसर सुरेन्द्र मोहन मिश्र ने वैदिक विश्व विद्यालय के संपूर्ण परिसर का अवलोकन करते हुए आत्मिक प्रसंन्नता के साथ अपने उद्गार प्रकट करते  हुए जब यह कहा कि कल्याणलोक के चारों वेद भवनों की देश के प्रमुख चार शंकराचार्य के मठों के तुलना की जाए तो ये वेद  भवन उन मठों के प्रतिरूप दिखाई देते है। उन्होंने मध्यस्थ ५१ फीट उंची अनूठी यज्ञ शाला को वैदिक भारत का हृदय स्थल निरूपित करते हुए कहा कि आने वाले समय में यह वैदिक विश्व विद्यालय विश्व के वैदिक मानचित्र पर न केवल अपनी अनूठी छाप छोड़ेगा वरन सनातन धर्म की शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान बनकर देश दुनिया के विद्वानों के आकर्षण का केन्द्र होगा। प्रोफेसर मिश्र ने भारतीय बारह दर्शनों को मठ परम्परा से जोड़ते हुए कहा कि हमारी प्राचीनतम मठ ज्ञान परम्परा के अनुपम पोषक रहे है। उन्होंने निंबाहेड़ा का नाम शास्त्रों में वर्णित निम्बसार बताते हुए कहा कि यही कारण है कि लुप्त होती वैदिक संस्कृति को एक बार फिर मेवाड़ की इस पावन धरा और कल्याणलोक में प्रस्फुटित एवं पल्लवित होने का गौरव प्राप्त होने वाला है। वैदिक विश्वविद्यालय के चेसरपर्सन कैलाश मून्दड़ा ने आगंतुक विद्वानों के विचारों को अविस्मरणीय बताते हुए कहा कि निंबाहेड़ा के एक छोटे से गांव जावदा का नाम इस विश्व विद्यालय के माध्यम से विश्व स्तर पर चमकने लगा है। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर लक्ष्मी शर्मा ने बताया कि नए शिक्षक नीति को लागू करते हुए केन्द्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने भी कहा कि शिक्षा संस्कार के साथ हो, संस्कारित व्यक्ति से घर, परिवार, समाज और सुदृढ राष्ट्र का निर्माण संभव हो सकता है, जो भारतीय मठों से ही संभव है। उन्होंने कहा कि भारतीय विद्या के केन्द्र प्राचीनकाल में हिन्दु मठ ही हुआ करते थे। इस संगोष्ठी में देश के विभिन्न क्षेत्रों से कई शिक्षाविद विद्वान, शोधार्ती, शोधपत्र वाचक और शिक्षाविद् अपना प्रस्तुतिकरण करने और मठों की ज्ञान परम्परा के ज्ञानार्जन करने के लिए आए हुए है। कार्यक्रम संयोजक एवं निदेशक महर्षि भारद्वाज अनुसंधान केन्द्र डॉ दिलीपकुमार कर ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि नव स्थापित इस विश्व विद्यालय द्वारा अब तक लगभग दो दर्जन वेबिनार के साथ विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर आयोजित गोष्ठियों की श्रृंखला में भारतीय दर्शन के लिए हिन्दु मठों के योगदान विषयक संगोष्ठी आयोजित की जा रही है। प्रारंभ में अतिथियों द्वारा विश्व विद्यालय, प्रशासनिक भवन में विराजित ठाकुरजी, मॉ सरस्वती एवं वेद भगवान की पूजा अर्चना कर विधिवत इस आयोजन को प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम का संचालन संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ स्मिता शर्मा एवं वेद विभागाध्यक्ष प्रोफेसर दीपक पालीवाल ने किया। विश्व विद्यालय के प्रवक्ता डॉ मृत्युंजय तिवारी एवं कुलसचिव डॉ मधुसुदन शर्मा ने संगोष्ठी के तीन दिवसीय कार्यक्रम में आने वाले अतिथियों एवं विभिन्न विषयों की विस्तार से जानकारी दी।