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अब पुलिस खुद उन्हें हाजिरी देने आएगी

अब पुलिस खुद उन्हें हाजिरी देने आएगी

एक रात ने उनकी किस्मत बदल दी। कल तक तो उन्हें पुलिस स्टेशन में हाजिरी देने जाना पड़ता था, लेकिन अब पुलिस खुद उन्हें हाजिरी देने आएगी। कल तक वे पुलिस को देख अपना रास्ता बदल लिया करते थे, पर अब से पुलिस खुद उनके लिए रास्ता बनाती देखी जाएगी। कभी उन्हें हथकड़ी पहनाने वाले पुलिस के हाथ अब सैल्यूट हेतु विवश होंगे, क्योंकि चुनाव परिणामों के बाद फिर कई बाहुबली सदन की चौखट पर खड़े होंगे। उनके लिए ‘दु:ख भरे दिन बीते रे भइया अब सुख आयो रे’ धुन को गुनगुनाने का समय है। चुनाव परिणाम का ही परिणाम है कि सरकारी गैराज में नई-नई सफेद गाड़ियां चमचमा रही हैं, कौवा सफेदी में रंगने पर हंस नहीं बन सकता, लेकिन काली करतूत वाले सफेद गाड़ी में बैठकर माननीय बन जाते हैं।

वैसे हमारा लोकतंत्र बड़ा नाइट फ्रेंडली है, अंधेरी काली रातें लोकतंत्र के मन को बहुत भाती हैं। आजादी भी आधी रात में ही आई थी। चुनावों में भी ये रातें, ये मौसम, नदी का किनारा चंचल हवा की भूमिका में होते हैं। ‘जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है वो खोवत है’ को वे अपने जीवन का ध्येय वाक्य बना लेते हैं। ‘आंखों में सारी रात जाएगी तुमको भी कैसे नींद आएगी।’ प्रत्याशी न खुद सोता है, न जनता को सोने देता है। इसीलिए इन्हीं रातों की मेहरबानी है कि लोकतंत्र मतदान केंद्रों पर झूमते-नाचते-गाते-लड़खड़ाते हुए आता है। प्राणीशास्त्र के विद्वान कहते हैं कि रातें तो उल्लू और चमगादड़ों की होती हैं, होती होंगी, लेकिन लोकतंत्र की रोशनी तमाम श्रीमान की आंखों को अंधा बना देती है।

रातें कितनी ही गहरी काली क्यों न हों, नाइट विजन कैमरा लिए न्यूज चैनल वाले प्रकट हो ही जाते हैं, चुनाव परिणामों के बाद न्यूज एंकर ‘अब जाकर आया मेरे बेचैन दिल को करार’ कहते पाए जा सकते हैं। प्रत्याशी से अधिक उत्साह और मायूसी, यह दोनों ही एंकरों में देखने को मिलती है। मतों की बढ़त में झूम उठते हैं तो मतों के अंतर होने पर मायूस हो जाते हैं। प्रत्याशी बेचारे खुद कन्फ्यूज हो जाते हैं कि लोगों ने वोट आखिर किसे दिया है? उसे या एंकरों को? वैसे भी मतगणना वाला दिन टीआरपी बटोरने के लिए स्वर्णिम अवसर होता है।

चुनाव परिणाम आने के बाद अब तो भगवान भी रिलेक्स मोड पर हैं, वरना कल तक सारे प्रत्याशी प्रभु के सामने हाथ जोड़े ‘कैसे-कैसों को दिया है ऐसे-वैसों को दिया है, मुझको भी तू लिफ्ट करा दे’ जैसी याचना कर रहे थे। चुनावों में वादे और घोषणाओं के जो पुल बनाये थे उन पर नेता चलेंगे भी या वे रेत के ढेर की तरह ढह जाएंगे यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। मगर एक बात तो निश्चित है, जीते कोई भी जीतने के बाद जनता के हिस्से में यही बात आएगी ‘ये गलियां ये चौबारा, यहां आना न दोबारा।