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सम्यक ज्ञान पाने के लिए विधिपूर्वक ज्ञान पंचमी की आराधना करें : साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री  

सम्यक ज्ञान पाने के लिए विधिपूर्वक ज्ञान पंचमी की आराधना करें : साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री  

उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में शनिवार को चातुर्मासिक मांगलिक प्रवचन हुए। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।   जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने आज ज्ञान पंचमी की आराधना के विवेचन में बताया कि ज्ञानी भगवंत कहते है कि हे भव्यात्मन् । यदि आप आत्म सुख पाने के लिये लालायित है तो सम्यक ज्ञान प्राप्त करें। ज्ञान ही श्रेष्ठ तत्व है, साथ ही अज्ञान के अंधकार को मिटाने वाला दिव्य प्रकाश है, ज्ञान से ही सभी इष्ट प्रयोजन सिद्ध होते हैं और ज्ञान ही मिया मतों का उन्मूलन करने वाला है। ऐसा सम्मादज्ञान पाने के लिए विधिपूर्वक पंचमी तिथि की आराधना करे। पंचमी की आराधना करने से अवश्य ज्ञान प्राप्ति होती है, ज्ञान प्रकाश मिलता है। ज्ञान उपासना के पांच प्रकार होते है. वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा एवं धर्म क कथा इसके द्वारा ज्ञान प्राप्त होता है।

इस ज्ञान उपासना में आठ प्रकार के आचारों का पालन करने का होता है। ज्ञान भाराधना में काल पानि समय का महत्त्व है। विनय का ज्ञान उपासना करने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व विनय से और नम्रता से गोमित हो । बहुमान का ज्ञानदाता गुरु के प्रति हार्दिक बहुमान होना चाहिये। उपधान का। ज्ञान प्राप्ति की योग्यता संपादन करने के लिए किये जाते है। गुरु के प्रति कृतज्ञ भाव। जिस गुरु से ज्ञान प्राप्त किया उस शुरुका उपकार को नहीं भूलना चाहिये। सूत्रों का शुद्ध उच्चारण, सूत्र पाठ शुद्ध चाहिये।  सूत्रों का यथार्थ कथन करना चाहिये। सूप और अर्थ दोनों का सही कथन करना चाहिये। ज्ञान आचर्य का पालन नहीं करने से अनावरणीय कर्म बंधता है। ज्ञान के साधन उपकरणों का दुरुपयोग करने से ज्ञान की आशामना होती है। कर्म जब ने उदय में आते है तब जीवात्मा मनिमूट बनता है। रोगी बनता है, अभागी बनता है। हमें जम की शालना से करना है।  चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।