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वोटर ने निकाल दी 62प्लस की हवा, निर्दलीय तय करेंगे सभापति बनेगा कौन

वोटर ने निकाल दी 62प्लस की हवा, निर्दलीय तय करेंगे सभापति बनेगा कौन

राजनीतिक विश्लेषणः निलेश कांठेड़

मैने गत 23 जनवरी को भीलवाड़ा नगर परिषद चुनाव को लेकर राजनीतिक विश्लेषण 'कांग्रेस तो पाना ही है, खोने से बचाना तो भाजपा को है' लिखा तो काफी रिएक्शन आये। कुछ का कहना था कि आप भीलवाड़ा शहर भाजपा का अभेद गढ़ है ये भूल गए हो कुछ का कहना था कि आप को हकीकत नजर नही आ रही या आंख पर कोई दूसरी पट्टी लगा ली है। सबकी बाते सुनी पर मन को विश्वास था कि 20 वर्ष की राजनीतिक पत्रकारिता में नेता और वोटर की 'फेस रीडिंग' पढ़ने का जो अनुभव पाया है वो धोखा नही देंगा। आज रविवार सुबह जब पार्षद चुनाव की मतगणना के बाद नतीजे आए तो मुझे किसी भी दल की जीत हार से अधिक ये जानने में रुचि थी कि अनुमान के कितने नजदीक वास्तविकता आई। सभी जीतने वालों को बधाई लेकिन मानवीय स्वभाव होने से बहुत अच्छा लगा जब देखा जो सोचा वैसा ही कुछ हो गया। *भीलवाड़ा में 10 वर्ष बाद भाजपा नगर परिषद में फिर बहुमत से दूर रह गई तो कांग्रेस की सीट पांच वर्ष जमीनी स्तर पर बहुत ज्यादा मेहनत नही करने के बावजूद पिछली बार निम्नतम स्तर पर चले जाने और भाजपा में अंदरूनी कलह के चलते 8 से बढ़कर 22 पहुच संजीवनी मिल गई।* यहां ये भी याद रखना है कि भीलवाड़ा नगर परिषद में इस बार वार्ड 55 से बढ़कर 70 हो गए। फिर भी विरोधियों को ये स्वीकारना पड़ेगा कि पहले से अधिक सफलता कांग्रेस को मिली। ये सफलता इसलिए अधिक महत्व रखती है कि भाजपा को 70 में से 31 सीट तो मिली लेकिन  पिछली बार 55 में से ही उसे 37 सीट मिल गई थी। ऐसे में भाजपा के लिए ये परिणाम करारा राजनीतिक झटका है। इस परिणाम के माध्यम से वोटर ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया के 62 प्लस के  बड़बोले दावों की भी हवा निकाल दी। शहर में पेंदे में जा रही कांग्रेस ने सभापति चुनाव से पहले ही  बहुत पा लिया है तो भाजपा बहुत कुछ खो चुकी है। *परिषद सभापति के लिए 7 फरवरी को होने वाले चुनाव में अब जीत की चाबी उन 17 निर्दलीय ओर अन्य छोटे दलों के प्रत्याशियों के हाथ मे है जिन्होंने रण में कांग्रेस और भाजपा दोनों के प्रत्याशियों को धूल चटाई।* पिछली बार 9 निर्दलीय थे उसकी तुलना में इस बार 17 आना ये बताता है कि निकाय चुनाव में पार्टी से अधिक महत्व आपकी छवि ओर काम करने वाली टीम का है। सभापति की कुर्सी के लिए कांग्रेस में प्रबल दावा 2005 से 2010  तक सभापति रहे ओम नराणीवाल का है। *वार्ड 40 में भाजपा के प्रबल दावेदार तुलसीराम शर्मा को हरा फिर पार्षद बने ओम नराणीवाल शहर के एक बड़े सामाजिक व व्यापारिक वर्ग में मजबूत पकड़ रखते है।*  नराणीवाल का नाम और कार्यकाल पूरे चुनाव अभियान में चर्चा में रहा। नराणीवाल राजनीतिज्ञ होने के साथ शहर की करीब एक दर्जन ऐसी सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं में सक्रिय है जो मजबूत जनाधार रखती है। हालांकि राजनीति व समाज का मंच बिल्कुल अलग होता है लेकिन इस बार यहां जमकर घालमेल हुआ। भाजपा द्वारा एक समाज विशेष को ही करीब तीस फीसदी टिकट देने से नाराज एक बड़ा सामाजिक वर्ग कांग्रेस का पारम्परिक समर्थक भले न हो लेकिन इस बार कई वार्ड में बदलाव के मूड में रहा। इसके चलते ही भाजपा से बगावत करने वाले बागियों की जीत आसान हुई तो काँग्रेस का ग्राफ भी तेजी से बढ़ा।  *भाजपा इस बदले मूड को भांप मान-मनुहार व डैमेज कन्ट्रोल के लिए सब कुछ झोंकने के बावजूद बहुमत से दूर रहकर राजनीतिक भंवर में फंस गई।*  कांग्रेस की वार्ड 28 से विजेता मंजू पोखरणा का  रिकॉर्ड  लगातार छठी बार पार्षद बनना भी बड़ी उपलब्धि है जन जुड़ाव का मजबूत उदाहरण है। पोखरणा का नाम भी कांग्रेस में एक वर्ग सभापति के लिए चर्चा में ला रहा है। भाजपा में शहर विधायक के नजदीकी राकेश पाठक का नाम प्रबल दावेदार के रूप में चर्चा में है लेकिन नाम पूर्व उप सभापति मुकेश शर्मा और रामलाल योगी के भी उड़ रहे है। *कुल मिलाकर निचोड़ ये है कि जो निर्दलीयों का मन जीत पायेगा सभापति की कुर्सी का वरण वो ही कर पाएगा।* भाजपा ऊपर से भले कुछ भी कहे लेकिन अंदर परिणामो से पसीने छूट रहे है। उसे मन की मुराद पूरी करने के लिए अब उन्ही विजेता बागियों के हाथ जोड़ना पड़ेगा जिन्हें मतदान से दो-तीन दिन पहले ही बड़े दम्भ के साथ पार्टी से निकाल दिया था। *घर से निकाल देने वाले बागी विजेता 'जय चारभुजानाथ' का नारा लगा दे तो भाजपा को प्रतिपक्ष में बैठने की नोबत भी आ सकती है। कांग्रेस सपना पूरा होना नजदीक मान राजस्थान की राजसत्ता की ताकत भी इन चुनावों में जरूर आजमाना चाहेगी।