शबरी राम भेंट, राम सुग्रीव मित्रता, बाली बध

Update: 2025-11-10 12:50 GMT

पुर  में रामलीला का प्रसंग में प्रभु श्री राम जी सीता जी का पता लगाते हुए गिद्धराज जटायु के बताए अनुसार वन वृक्ष से पूछते हुए माता शबरी के आश्रम पहुचते हैं और उनके हाथों बैर खाते हैं फिर नौवधा भक्ति बताते फिर माता शबरी से सीता जी के बारे में पूछते तब माता शबरी कहती हैं कि हे प्रभु यही से कुछ दूरी पर पंपापुर नाम का पर्वत है जहा के राजा बानरराज सुग्रीव हैं आप जाकर उनसे मिलिए वह सारी पता बता देंगे फिर आगे चलते हैं तो हनुमान जी से मुलाकात होती है और हनुमान जी अग्नि को साक्षी देकर उनकी मित्रता बानरराज सुग्रीव से कराते हैं और बाली का वध करते हैं तब बाली पुछता है कि हे प्रभु मैने सुना है कि आप का अवतार तो धर्म की रक्षा के लिए हुआ फिर ये कैसा धर्म है जो कि आप मुझे वृक्षों की ओट से छिप कर बाण मारा और एक भाई आप का मित्र और एक भाई आप का शत्रु ये कैसा धर्म है भगवन तब राम जी कहते हैं कि हे बाली मित्र का शत्रु शत्रु होता है और रही छिप कर मारने की बात तो तू वरदान तू ऐसा मागा था प्रत्यक्ष न मारा जाएगा सम्मुख लड़ने वाले का बल तुझ में आ जायेगा इस लिए वरदान किसी का नष्ट करू ऐसा न स्वभाव हमारा है बस इन्ही विचारों छिप कर बाण मारा हैं और अब भी तुम मरना नहीं चाहते हो तो कहो तो अचल अमर कर दू तब बाली कहता है की हे प्रभु नहीं अब हम नहीं जीना चाहता हूं क्योंकि जन्म जन्मातर तक ऋषि महात्मा तपस्या किया करते हैं और अंत समय में भी आप का दर्शन नहीं होता मैं कितना भाग्यशाली हूं कि अंत समय में आप मेरे सामने है और हमे क्या चाहिए हा यदि आप मुझे देना ही चाहते हैं तो दो वरदान दिजिए किष्किंधा का राजा भले ही सुग्रीव बने और पुत्र अंगद को अपना दास बना लेना और दूसरा यह कि इस मृत्यु लोक में मैं जिस योनि में जन्म लू आप की चरणों की सेवा कर सकू की रामलीला दिखाईं गई

Tags:    

Similar News