“धन के समुद्र मत बनो, दान के झरने बनो: महाराज की जीवन सीख”

भीलवाड़ा । दशा सुधारना है तो दिशा बदलो। लक्ष्मी धर्म के संकेत पर घर में आती है, जहां धर्म होगा, वहां धन अवश्य ही आयेगा। जो दान करते है, लक्ष्मी उनका कभी साथ नही छोड़ती है। समुद्र में अथाह जल भरा है लेकिन वह किसी काम का नहीं है। झरना हमेशा अपने जल को बहाता रहता है, तो वह सभी के उपयोग में आता है। धन के समुद्र मत बनो, दान के झरने बनो। जिस प्रकार जीवन अस्थिर है, वैसे ही लक्ष्मी भी अस्थिर है। ऐसे भी घर हुए है जहां पीकदान भी चांदी के होते थे, वहां चिराग भी नहीं जलता। यह बात तरणताल के सामने स्थित आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में आज प्रातः चर्या शिरोमणि आचार्य विशुद्ध सागर के परम प्रभावी शिष्य अनुपम सागर महाराज ने आर के कॉलोनी मंदिर में प्रवचन के दौरान कही।
महाराज ने कहा कि जिंदगी भी तीसरी अवस्था वृद्धावस्था को सुखमय निकालने के लिए तीन गुण अपना लिजिए। नून छोड दो, मौन ले लो, और कौन बोलना छोड़ दो। नून का मतलब भोजन में नमक या स्वाद को नहीं देखो, जो भोजन मिले उसे शांति से आनंद से खाओ एवं भोजन बनाने वाले की प्रशंसा करो। एक समय आपका था, अब समय युवा, बच्चों और बहु का है, उनके हर काम में टोको मत, मौन ले लो, जितना मौन रहोगे, उतना ही आपका सम्मान बढेगा। वृद्धावस्था में चार चांद लगाने है तो मत पूछो कौन। परिवार के मसलों बीच में नही बोलो, मौन रहेगें तो बच्चे अपने आप सलाह करने आएगे। हाथ की घड़ी से समय को तो जान लिया, अपनी अवस्था से अपने समय को जानिए। इससे पूर्व निर्मोह सागर महाराज ने कहा कि जब तक तुम घर में कमा कर दे रहे हो, तब तक तुम्हारा महत्व है, परिजन तुम्हे पूछते है, घर वालों के कार्य करने जो पाप बंध हो रहा है, वे घर वाले नही भोगेगे, वे तुम्हे ही भोगने है।
