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वक्त की चाल से बेहाल ज़िंदगी

वक्त की चाल से बेहाल ज़िंदगी

 

कभी-कभी समय बहुत भारी हो जाता है। खिसकता ही नहीं। एक-एक पल जैसे कि शताब्दी समान। मेरा पोता मुझसे अक्सर पूछता है कि जब वह खेलता है तो एक घंटा बहुत जल्दी क्यों खत्म हो जाता है और जब वह पढ़ता है तो एक घंटा बहुत लंबा हो जाता है और खत्म ही नहीं होता। दरअसल समय तो एक ही चाल से चलता है पर हमारी अपनी ही चालें उसे तेज़-धीमा करती रहती हैं। घड़ी तो हमेशा ही टिक-टिक करती रहती है जो इस बात का सूचक है कि न तो घड़ी टिकती है और न ही दूसरों को टिकने देती है। सॉरी शब्द भी खूब अजीब है। आदमी कहे तो गुस्सा खत्म और डॉक्टर कहे तो आदमी खत्म।

साल 2021 बहुत धीमी चाल से गुजरा है। जिस तरह क्रिकेट में कई बार रन बनाने से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है मैदान में टिके रहना क्योंकि यदि टीम आउट न हो तो टीम की जीत की संभावनाएं बनी रहती हैं। साल 2021 भी कई की जिंदगी में मेडन ओवर की तरह निकल गया। मिला कुछ नहीं पर यह कम उपलब्धि नहीं है कि आउट नहीं हुये। बहुत लोगों का कैच छूटा और जीवनदान मिला। यमराज की खिल्ली भी उड़ती रही और दूसरी तरफ यमराज अपने स्तर पर कइयों की गिल्ली भी उखाड़ता रहा। हर व्यक्ति अपने जीवन काल में एक वाक्य जरूर कहता है कि एक दिन उस का भी टाइम आयेगा। और कोरोना काल में वाकई ही कइयों का टाइम आया और चल बसे।

एक मित्र ने मुझे संदेश लिख भेजा है कि तुम लोग साल को बदलते हुये देख रहे हो और मैंने सालों से लोगों को बदलते हुये देखा है। बात में दम है। वक्त बदलते ही लोग पैंतरा और पाला सब कुछ बदल लेते हैं। पहले नये साल में जाने की तैयारी नहीं करनी पड़ा करती पर अब तो कभी कोरोना के हिसाब से, कभी ओमीक्राेन के हिसाब से पूरी तैयारी के साथ नये साल में प्रवेश करना होता है।

वह भी समय था जब बड़े-बूढ़े गर्व से कहा करते कि उन्होंने ऐसा इंतजाम कर दिया है कि सात पीढ़ियां बैठकर खायेंगी। मुझे लगता है कि सातवीं पीढ़ी हम ही हैं। बाहर जाने पर बार-बार बैन लग रहा है। यानी कि कहीं जाने की जरूरत नहीं है, घर बैठकर खाने को मिल रहा है। वरना मितरों की जगह पितरों का संबोधन सुनने को मिल सकता है।

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एक बर की बात है अक नये साल की पार्टी मैं नत्थू नैं किमें घणी ए डोच ली। सुरजा बोल्या— रै क्यां तै बावला हो रह्या है? नत्थू बोल्या- मजबूरी थी। बात या है अक बोतल का ढक्कण गुम हो ग्या था।