मन के हारे हार, मन के जीते जीत - आचार्य सुनील सागर

मन के हारे हार, मन के जीते जीत - आचार्य सुनील सागर
X

चित्तौड़गढ़। हार तब होती है जब मान लिया जाता है। जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है। मन के हार होती है और मन के जीते जीत है। उक्त बात प्राकृत ज्ञान केसरी, प्राकृत मार्तण्ड राष्ट्र संत आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज ने नव निर्मित श्री आदिनाथ जिनालय का भव्यतम श्रीमद् आदिनाथ जिनबिम्ब पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं विश्व शांति महायज्ञ के तहता षनिवार को दीक्षा कल्याणक महोत्सव के तहत आयोजित मंगल प्रवचन के दौरान धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। षनिवार को महोत्सव के तहत राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी को तपस्वी सम्राट आचार्य सन्मति सागर पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। षनिवार को महोत्सव के दौरान मुनि सक्षम सागर जी एवं आर्चिका श्रुतमति माता जी का केश लोचन कार्यक्रम भी हुआ।

भारतीय संस्कृति की जड़ है माँ

पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव समिति के तत्वाधान में आयोजित दीक्षा कल्याणक महोत्सव के तहत धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज ने कहा कि माँ भारतीय संस्कृति की जड़ होती है। जब तक माँ नही सुधरती तब तक बच्चे भी नही सुधर सकते। खान पान से खानदान होता है। जो जैसा खाता है वैसा ही उसका चरित्र होता है। भारतीय संस्कृति में मां स्वस्थ ना हो तब भी वह अपने बारे में ना सोचकर अपनी औलाद के विषय में चिंतित रहती है। भारत की संस्कृति बहुआयामी है जिसमें भारत का महान इतिहास, विलक्षण भूगोल और सभ्यता निहित है। हर संतान अपनी मां से ही संस्कार पाता है। लेकिन मेरी दृष्टि में संस्कार के साथ-साथ शक्ति भी मां ही देती है। इसलिए हमारे देश में मां को शक्ति का रूप माना गया है

हर हाल में हिम्मत रखनी चाहिए

कोटा के कोचिंग सेन्टर सहित अन्य स्थानों पर आत्महत्या जैसी घटनाओं के बढ़ने के संदर्भ में आचार्य श्री ने यूरोपियन किड्स के बच्चों सहित पाण्डाल में उपस्थित धर्मावलम्बियों से कहा कि हमें हर हाल में हिम्मत रखनी चाहिए। असफलताओं से हमें घबराना नही चाहिए बल्कि हिम्मत को दृढ़ रखनी चाहिए। आचार्य श्री ने कहा कि आत्महत्या करने वाले बेवकूफ होते है जो हतोत्साहित होकर आत्महत्या जैसा कृत्य करके बेशकीमती जिन्दगी को खत्म कर देते है। आचार्य श्री ने कहा कि लक्ष्य को मत बदलो बल्कि लक्ष्य का रास्ता बदलो। हमें यदि इतिहास बनाना है तो हार नही माननी चाहिए बल्कि हर हाल में अपने लक्ष्य को अर्जित करने की जिद रखनी चाहिए। आचार्य श्री ने कहा कि यदि हमने यह मान लिया कि मैं यह नही कर सकता हूं तो समझों आप हार गये हो। निर्भिकता एवं निडरता से देश व समाज हित को साधा जाता है। बदलने वाला अगर सूरज जैसा हो तो अंधेरे को भी बदलना पड़ता है। बदलने वाला महाराणा प्रताप जैसा हो तो अकबर को भी भागना पड़ता है। बदलने वाला पन्ना धाय जैसा हो तो बेटे का बलिदान देकर देश व समाज के सिंहासन की सुरक्षा की जा सकती है।

ये भूमि सभ्यता एवं संस्कृति की भूमि है

आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज ने कहा कि दुनिया में भारत जैसा इतिहास किसी भी देश का नही है। भारत में भी राजस्थान जैसा इतिहास किसी प्रदेश का नही है। राजस्थान में भी मेवाड़ जैसा इतिहास किसी ओर प्रांत का नही है और मेवाड़ में भी चित्तौड़ नगर जैसा इतिहास किसी ओर नगर का नही है। ये भूमि सभ्यता एवं संस्कृति की भूमि है। यहां षक्ति, भक्ति, तप, त्याग, सदाचार, षाकाहार सदैव रहा है। यह भूमि मीरा की भक्ति की, महाराणा प्रताप की षक्ति की एवं भामाशाह की धरती है।

भारत की संस्कृति जोड़ने की है

आचार्य सुनील सागर जी महाराज ने पाण्डाल में उपस्थित यूरोपीयन किड्स के बच्चों सहित अन्य को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति हमेशा ही जोड़ने की रही है। सनातन संस्कृति में मोमबत्ती को बुझाकर जन्मदिन नही मनाया जाता है बल्कि दीपक जलाकर मनाया जाता है। मोमबत्ती को बुझाने का मतलब अंधेरे को निमंत्रण देना है। केक नही काटा जाता है बल्कि लड्डू बांटा जाता है। हमारी संस्कृति में गाय को पाला जाता था और कुत्ते को डाला जाता था। पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने की नही बल्कि भारतीय संस्कृति से चलने में ही जीवन एवं जागृति है।

जीवन में अच्छाई और ऊँचाई हासिल करो

खुशियां कम और अरमान बहुत है, जिसे भी देखों परेशान बहुत है

करीब से देखा तो निकला रेत का घर, दूर से देखा तो इसकी षान बहुत है

उपरोक्त पंक्तियों को उद्गारित करते हुए प्राकृत ज्ञान केसरी, प्राकृत मार्तण्ड राष्ट्र संत आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज ने कहा कि प्रेक्टिकल जीवन जीने की अलग तासीर होती है। हमारा सबका सबसे पहले अच्छे नागरिक बनने का लक्ष्य होना चाहिए। विचित्र दुनिया में हमारा चित्र अध्यात्म के रास्ते ही बन सकता है। पिक्चर में जैसा दिखया जाता है जिन्दगी वैसी नही होती है। पैसों से मिली खुशी कुछ दिनों की होती है, लेकिन संस्कारों से एवं धर्म से मिली खुशी जिन्दगी भर की होती है। आज के दौर में जहर में भी मिलावट है। मिलावट ने इंसान को अंदर से खोखला कर दिया है। फूड पोईजिंग आज बड़ी समस्या है। राष्ट्र संत आचार्य श्री ने कहा कि जीवन में किसी भी व्यसन को नही आने दो। गलत संगति जिन्दगी को खराब कर देती है। बच्चों द्वारा मोबाईल की लत पर चिन्ता जाहिर करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि जीवन में खेल बहुत जरूरी है। उन्होने पाण्डाल में उपस्थित बच्चों से आह्वान किया कि कबड्डी खेलों लेकिन मोबाईल में पबजी कभी मत खेलो। जीवन में अच्छाई और ऊँचाईयां हासिल करों।

कोठारी तपस्वी सन्मति सागर पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित

राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी को इस अवसर पर तपस्वी सन्मति सागर पत्रकारिता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार में कोठारी को रजत मुद्रा, प्रशस्ति पत्र एवं 51 हजार रूपयें का नकद पुरस्कार प्रदान किया गया। इस मौके पर दिनेश कोडनिया भी मौजूद रहे। पुरस्कार के रूप में मिली नकद राशि डॉ. कोठारी ने बाद में इस आयोजन हेतु भेंट कर दी।

आत्मा के पाठ पर ही धर्म टिका है

राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने इस मौके पर अपने संबोधन में कहा कि अगर हम जीवन के अन्दर कुछ अध्यात्म की ओर दृश्टि डालेंगे तो जीवन दो हिस्सों में दिखाई देता है। एक हिस्सा दिखाई दे रहा है और दूसरी हिस्सा दिखाई नही देता है। अदृश्य भाव को हम भूल बैठे है।षरीर एक भ्रम है और इसकी एक निश्चित आयु होती है। आत्मा की कोई आयु नही होती है। आत्मा के पाठ पर ही सारा धर्म टिका हुआ है। हम सब एक उद्देश्य लेकर पैदा होते है। बीज से पेड़ बनना चाहते है। पेड़ बनने के लिए बीज को जमीन में गढ़ना ही पड़ता है। बीज को पेड़ धरती माँ बनाती है। बिना भाशा के माँ संस्कार दे रही है। माँ मिट्टी को घड़ा बनाती है। माँ बच्चे का निर्माण गर्भ में भी करती है और बड़ा होने पर भी करती है। हर स्त्री यही चाहती है कि उसका पति मोक्ष के मार्ग पर चले और उसके बच्चे संस्कारवान बने। भारतीय दर्शन बहुत बड़ा है। पेड़ की छाया किसे मिलेगी, फल कौन खायेगा, इसकी चिन्ता नही की जाती है। स्वयं फल खाकर कोई बड़ा नही बन सकता है।

रविवार को आयोजित होने वाले कार्यक्रम

महोत्सव समिति अध्यक्ष डॉ. ज्ञान सागर व सुनील पाटनी ने बताया कि षनिवार को दिनेश कोडनिया के साथ ही दाहोद, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा, बेगूं, धरियावद, बडौदा, नरवारी आदि के धर्मावलम्बी मौजूद रहे। ब्राह्मी लिपि के कलेण्डर का विमोचन भी षनिवार को आचार्य श्री द्वारा किया गया। सकल दिगम्बर जैन समाज प्रतापगढ़ की ओर से आचार्य श्री से षीतकालीन वाचना की अनुमोदना की गई। रविवार 24 नवंबर को केवल ज्ञान कल्याणक महोत्सव मनाया जायेगा। इसके तहत प्रातः 7.30 बजें दीक्षा कल्याण विधान पूजा, 9.30 बजें आहारदाता द्वारा पड़गाहन विधि एवं महामुनिराज आदिनाथ की आहारचर्या पंचाश्चर्य, दोपहर 12.30 बजें ज्ञान कल्याणक अभ्यन्तर क्रियाऐं, सूरिमंत्र, दोपहर 3 बजें ज्ञान कल्याणक पट्टोद्धाटन, षाम 7 बजें प्रतिश्ठाचार्य महावीर जैन गींगला द्वारा षास्त्र उद्बोधन तथा रात्रि में 9 बजें सांसकृतिक कार्यक्रम के तहत गीतों भरी षाम आयोजित की जायेगी। समिति से जुड़े अनुज जैन, पूर्णेश गोधा, षैलेश पाटनी, आशा वेद, रंजना रमावत, राजकुमार बैद, सुदर्शन जैन, अनिल सेठी, पवन पाटनी आदि ने व्यवस्थाओं में सहयोग किया।

Next Story