भारतीय संस्कृति मानवता,त्याग सहिष्णुता औऱ धर्म के अमृत से सिंचित रही है-जिनेन्द्रमुनि
गोगुन्दा । आज विश्व सभ्यता के सर्वोच्च शिखर की ओर ऊपर उठ रहा है।हर और प्रगति का शंखनाद सुनाई दे रहा है ज्ञान के ऊपर विज्ञान हावी होता जा रहा है।सभ्यता के मुकाबले हमारी मानवीय संस्कृति लड़खड़ा रही है।संस्कृति तो आंतरिक विकास है जो अचानक समाप्त नही हो सकता।भवन नष्ट हो सकते है,पुल ढह सकते है,मगर संस्कृति को सहज में ही समाप्त नही किया जा सकता।हमारे विचार,रीति रिवाज,खाने पीने के ढंग,सहिष्णुता के भाव,बड़ो के प्रति सम्मान,छोटो के प्रति स्नेह,समाज के प्रति त्याग और उदारता,भाषा एवं उत्सव ये सभी संस्कृति की एक झलक मात्रा है।उपरोक्त विचार तरपाल के स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने व्यक्त किये।विश्व मे कई सभ्यताएं पनपी।उनके साथ उनकी अपनी संस्कृति थी।चीन हड़प्पा की अपनी सभ्यता और संस्कृति है।दुनिया की अन्य प्राचीन सभ्यताएं जो अधिकतर नदियों के किनारे पनपी।वे काल की गर्त में समा गई।मगर भारतीय संस्कृति की जो धारा सिंध एवं गंगा के तटों पर पनपी,वह आज भी अपना परचम लहरा रही है।इसका मूल कारण है हमारी संस्कृति, मानवता,त्याग सहिष्णुता और धर्म के अमृत से सिंचित रही है।उसने सभ्यता की धूप से कभी भी उसे झुलसने नही दिया।चीन यूनान और भारत विश्व की इन प्राचीन संस्कृतियों में भारत की संस्कृति ही मानो अमरता का वरदान पाये हुए आज भी जीवित है।मुनि ने कहा किसी को गुलाम बनाना है तो उस समाज या राष्ट्र की संस्कृति को नष्ट कर दो।वहां के निवासी हमेशा हमेशा के लिए गुलाम बन जाएंगे।यही तो हुआ हमारे देश मे।एक हजार वर्षों तक विदेशी आताताइयों ने बर्बर हमले किये और तलवार के बल से अपनी हुकूमत कायम करके इन्होंने भारत की संस्कृति को पंगु बनाने का भरचक प्रयास किया।आश्रमो को जलाया,मन्दिरो को गिराया,अपनी भाषा और विचार हम पर लादने की भरपूर कोशिश की,धर्म परिवर्तन करने के लिए बाध्य किया गया,मगर क्या हुआ?विदेशी आये और वे भी इसी धरा में समा गये।वे अपनी संस्कृति का अधिक प्रचार प्रसार नही कर पाये।बल्कि स्वयं इसी संस्कृति के उपासक बनकर रह गए।जैन संत ने कहा भारत की संस्कृति पर सबसे बड़ा हमला अंग्रेजो ने किया।पश्चिम की भौतिक चकाचौंध के कृत्रिम प्रकाश में हम अंधे हो गये।अंग्रेज दो सौ वर्ष तक धीरे धीरे हमारी संस्कृति को धुन की तरह खोखला करते रहे।संत ने कहा हिंदुस्तान को सदैव अच्छा बनाये रखने का कर्तव्य देशवासियों का है।भारतीय संस्कृति संयम प्रधान संस्कृति है।तभी तो संत संयम का संदेश देते है।जो संयम से युक्त है दुनियां की सभी शक्तियां उसकी मुठ्ठी में है।संयमशील साधक के चरणों मे दुनिया सिर झुकाती है।मुनि ने कहा विश्व विजय करने का स्वप्न लिए सिकन्दर जब सिंधु तक आया तो उसने साधक दण्डायायन के बारे में सुना और उसने सेवको को आदेश दिया कि उस साधक को हमारे पास आने का संदेश दो।क्या दंडायायन सिकन्दर के पास गया?नही,नही गया।मजबूर होकर सिकन्दर को ही आश्रम में जाकर सिर झुकाना पड़ा, मुनि ने कहा यह संयमी साधक की शक्ति।मुनि ने कहा जनसंख्या की समस्या ने कई दूसरी समस्याओ को जन्म दिया है।मुनि ने कहा कृत्रिमता का सहारा लेना मनुष्य के लिए गलत है।