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सूर्य की महिमा समझने का पर्व

सूर्य की महिमा समझने का पर्व

शुक्रवार 14 जनवरी को मकर संक्रांति है। सूर्य के उत्तरायण का दिन। शुभ कार्यों की शुरुआत। इस दिन नदियों में स्नान और दान का बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन से देश में दिन बड़े और रातें छोटी हो जाती हैं। शीत ऋतु का प्रभाव कम होने लगता है। मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व भी खूब है। मान्यता है कि सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। भगवान विष्णु ने असुरों का संहार भी इसी दिन किया था। महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने तक प्रतीक्षा की थी।

सूर्य उत्तरायण पर पूजा-अर्चना का मतलब है सूर्य की महिमा को समझना और समझाना। धूप का सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। पतंग उड़ाने की प्रथा भी इसीलिए बनाई गई ताकि खेल के बहाने, धूप का सेवन हो सके। उत्तर भारत में इस त्योहार को माघ मेले के रूप में मनाया जाता है तथा इसे दान पर्व माना जाता है। महाराष्ट्र में इस दिन गुड़-तिल बांटने की प्रथा है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में चार दिन मनाते हैं और मिट्टी की हांडी में खीर बनाकर सूर्य को अर्पित करते हैं। असम में यही पर्व भोगल बीहू हो जाता है। बंगाल में गंगा सागर का मेला लगता है तो पंजाब में लोहड़ी मनाई जाती है। भारत ही नहीं, अपितु सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मौसम में आए परिवर्तन को आज भी रोम में खजूर, अंजीर और शहद बांटकर मनाया जाता है। यह संक्रांति काल मौसम के परिवर्तन और इसके संक्रमण से भी बचने का है। इसीलिए तिल खाने का रिवाज है। तिल ऐसे मौसम में मानव शरीर में ऊर्जा का संचार करता है। तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल उबटन, तिल भोजन, तिल दान, गुड़-तिल के लड्डू मानव शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाते हैं।

शुभ मुहूर्त में क्या करें

14 जनवरी को सूर्यदेव का मकर राशि में प्रवेश दोपहर 02 बजकर 29 मिनट पर होगा। मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में लगभग 1 माह के लिए आते हैं। इस बार मकर संक्रांति की शुरुआत रोहिणी नक्षत्र में हो रही है जो शाम 08 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। इस नक्षत्र को शुभ माना जाता है। इस नक्षत्र में स्नान दान और पूजन करना शुभ फलदायी होता है। इसके साथ ही इस दिन ब्रह्म और आनंद योग का निर्माण हो रहा है जो फलदायी है। इस दिन खिचड़ी आदि बनाकर तिल के गुड़ वाले लड्डू प्रथम सूर्यनारायण को अर्पित करना चाहिए, बाद में दान आदि करना चाहिए। मान्यता है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुणा फल देता है। अपने नहाने के जल में तिल डालने चाहिए और ओम नमो भगवते सूर्याय नमः या ओम सूर्याय नमः का जाप करना चाहिए।

...तब फरवरी में पड़ेगी यह संक्रांति

यूं तो मकर संक्रांति प्रायः 14 जनवरी को ही आती है। लेकिन खगोलीय घटना से इसकी तिथि भी बदलती है। सर्वविदित है कि सभी ग्रहों का प्रकाशपुंज सूर्य ही है। सूर्य हर वर्ष धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है। हर बार यह समय लगभग 20 मिनट बढ़ जाता है। अतः 72 साल बाद एक दिन का अंतर पड़ जाता है। पंद्रहवीं शताब्दी के आसपास यह संक्रांति 10 जनवरी के आसपास पड़ती थी। वर्ष 1863 में मकर संक्रांति 12 जनवरी को पड़ी थी। साल 2012 में सूर्य मकर राशि में 15 जनवरी को आया था। 2018 में 14 जनवरी और 2019 तथा 2020 में यह 15 जनवरी को। गणना यह है कि 5000 साल बाद मकर संक्राति फरवरी के अंतिम सप्ताह में पड़ेगी।