एक सेठ आवेश में आकर अनाप-शनाप बोलने लगते थे। कुछ लोगों ने इसी बात की शिकायत एक संत से की। संत ने सेठ को बुलाकर उसे प्रेम से एक गिलास में कुछ पीने को दिया। सेठ ने जैसे ही पहला घूंट मुंह में भरा, वैसे ही उसका चेहरा गुस्से में तमतमा गया। वह बोला, ‘महाराज, यह तो बहुत कड़वा है।’ संत मुस्कराकर बोले, ‘अच्छा, क्या तुम्हारी जुबान जानती है कि कड़वा क्या होता है?’ सेठ बोला, ‘कड़वा व खराब चीजें तो जुबान पर आते ही पता चल जाती हैं।’ यह सुनकर संत बोले, ‘नहीं, कड़वी चीजें जुबान पर आते ही पता नहीं चलतीं। अगर ऐसा होता तो लोग अपनी जुबान से कड़वी बातें भी क्यों निकालते।’ संत ने पुनः कहा, ‘तुम भी याद रखो, जो व्यक्ति कटु वचन बोलता है, वह किसी व्यक्ति को दुःख पहुंचाने से पहले अपनी जुबान को ऐसे ही गंदा करता है, जैसे इस कड़वे पदार्थ ने तुम्हारी जुबान को कर दिया था।’ सेठ को संत की बात का मर्म समझ में आ गया।