साहित्य

11 July 2024 3:47 AM GMT
इंसानियत कितनी खो गई
न तालाब में न बावड़ी में और न ही अब आखों में पानी
नेह का नूर चाहिए.......
वो जगत में हमें लाया है ....
प्रस्फुटन .....
ऊफ .....ये गर्मी ....
अबकी बार
रपट कहाँ लिखाऊँ मैं
अन्धा प्यार
सच के ल‍िए जो लड़ता है...
मन मेरा मुदित