करों विभीषणों की खोज...!

करों विभीषणों की खोज...!
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अब करों देश के विभीषणों की खोज,

यारों बहुत ज्यादा करी है इन्होंने मौज।

बहुत सह ली हैं देश ने नापाक हरकतें,

ना जाने कितने सीमा पर भी मर मिटे।

धमाकों से 'दहशत' फैला रहा पड़ोसी,

किस-किसकी नियत में है खोट कैसी।

नहीं पता चलता बात हैं जैसे जरा-सी,

देश के गद्दारों की अब तो हो निकासी।

यूं खूब लगेगी निर्दोषों की बद-दुआएं,

अब तो यहीं नामाकूल पाएंगे सजाएँ।

बिन वजह बहाया लहू हुई मिट्टी लाल,

बच न पाए कोई आँका आएगा काल।

(संदर्भ-लाल किले के पास धमाका)

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