आधार पेमेंट ब्रिज सिस्टम ठप, 3.5 करोड़ मनरेगा मजदूर APBS से नहीं जुड़े; अगस्त तक बढ़ी समय सीमा
नई दिल्ली,। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को पूरी तरह पारदर्शी बनाने के केंद्र सरकार के प्रयासों में तकनीकी बाधाएं दूर होने का नाम नहीं ले रहीं। यही वजह है कि आधार पेमेंट ब्रिज सिस्टम (एपीबीएस) के प्रति राज्यों का रुख उदासीन है, जिसके चलते पांच वर्ष बीतने के बाद भी शत-प्रतिशत मनरेगा मजदूरों को इस प्रणाली से नहीं जोड़ा जा सका है। अभी भी साढ़े तीन करोड़ से अधिक मजदूर इस व्यवस्था से बाहर हैं। लिहाजा, ग्रामीण विकास मंत्रालय को फिर से समय सीमा अगस्त तक बढ़ानी पड़ी है। में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के मामले उठते रहे हैं। इसे देखते हुए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 2017 में इस योजना को पूरी तरह पारदर्शी बनाने के लिए एपीबीएस की शुरुआत की थी। तर्क था कि सभी मजदूरों के खाते आधार कार्ड से लिंक होंगे। शत-प्रतिशत मजदूरों को इस प्रणाली से जोड़कर भुगतान करने से अनियमितताओं को रोका जा सकेगा। पहले तो मनरेगा मजदूरों से संबंधित संगठनों व कुछ राज्यों ने इस तर्क के साथ इससे असहमति जताई कि जिन मजदूरों का आधार कार्ड नहीं है, उन्हें भुगतान कैसे होगा?
इस पर सरकार ने एपीबीएस और नेशनल आटोमेटेड क्लीयरिंग हाउस (एनएसीएच) दोनों को जारी रखा। कई बार समय भी बढ़ाया ताकि सभी के आधार कार्ड बन जाएं और भुगतान व्यवस्था को पूरी तरह इस नई प्रणाली से जोड़ दिया जाए। कई बार तिथि बढ़ाने के बाद 30 जून, 2023 अंतिम तिथि निर्धारित की गई थी, लेकिन मंत्रालय को एक बार फिर समय सीमा बढ़ानी पड़ी है।
सूत्रों ने बताया कि ताजा आंकड़ों के मुताबिक 14,31,92,523 सक्रिय मनरेगा मजदूर हैं, जिनमें से एपीबीएस से 10,81,61,989 मजदूर ही जुड़े हैं। इस तरह साढ़े तीन करोड़ से अधिक मजदूर अभी बचे हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि सिर्फ गैर भाजपा शासित राज्य ही इस व्यवस्था के प्रति उदासीन नहीं हैं, बल्कि पूर्वोत्तर सहित भाजपा शासित राज्यों का रुख भी ठंडा है। मसलन, उत्तर प्रदेश के 1,51,16,529 सक्रिय मजदूरों में से 95,50,084; उत्तराखंड के 11,82,141 में से 8,77,232 मजदूर; मध्य प्रदेश के 1,14,67,756 में से 80,18,165 और गुजरात के 30,46,701 में से 17,57,701 मजदूर ही एबीपीएस से जुड़ सके हैं। अब नई समय सीमा तक दोनों माध्यमों से भुगतान किया जाएगा।