आचार्य भिक्षु की चतुर्मास स्थली पुर पधारे आचार्य महाश्रमण

पुर (हलचल)। वस्त्रनगरी भीलवाड़ा के नगरपरिषद क्षेत्र में आने वाला पुर मंगलवार को महाश्रमणमय बन गया। तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु के दो-दो चतुर्मास स्थली पुर मंगलवार को जय-जय ज्योतिचरण, जय-महाश्रमण के जयघोष से गुंजायमान हो रही थी। क्योंकि भिक्षु के ग्यारहवें पट्टधर अहिंसा यात्रा प्रणेता, शान्तिदूत आचार्य महाश्रमण पुरवासियों की अरजी पर अपनी मरजी की मुहर लगाने पुर पधार रहे थे। हालांकि पुर भीलवाड़ा नगरपरिषद के अंतर्गत आता है। इसके बावजूद भी चातुर्मासकाल के दौरान सामान्यतया आचार्य का विहार नहीं होता, किन्तु पुरवासियों की प्रबल भावना को स्वीकार करते हुए तेरापंथ के प्रथम आचार्य भीखणजी स्वामी की चतुर्मासस्थली पुर में आचार्य ने पदार्पण स्वीकार किया और उसके लिए मंगलवार को प्रात: में चातुर्मास प्रवास स्थल से मंगल प्रस्थान किया। बारह किलोमीटर से अधिक दूरी के विहार मार्ग में आने वाले अनेक प्रतिष्ठानों, घरों, फैक्ट्रियों के सामने श्रद्धालुओं को मंगलपाठ सुनाते व आशीषवृष्टि करते हुए पुर की सीमा में प्रवेश किया तो मानों पूरा पुर ही हर्ष के सागर में गोते लगाने लगा। क्या जैन और अजैन सभी तेरापंथ के ग्यारहवें अनुशास्ता के स्वागत में पलक पांवड़े बिछाए खड़े थे। पूरा क्षेत्र जयकारों से गुंजायमान हो रहा था।
आचार्य ने अपनी धवल सेना के साथ जैसे ही पुर की सीमा में प्रवेश किया तो बाईपास से ही पंजाबी बैंड एवं तेरापंथ सभा, ज्ञानशाला के बच्चे, कन्या मंडल, युवक परिषद, महिला मंडल के सभी सदस्य अपनी-अपनी गणवेश में आचार्यश्री के जयकारों एवं आचार्य श्री महाश्रमण के संदेशों की तख्तियां हाथ में लिए चल रहे थे वही नगरवासियों ने आचार्य के स्वागत में जगह-जगह द्वार एवं बैनर लगाकर अपनी भावनाएं आचार्य के समक्ष व्यक्त की। आचार्यश्री महाश्रमण भीलवाड़ा से बजरंगपुरा, बस स्टैंड होते हुए तेरापंथ भवन पहुंचे जहां ज्ञानशाला के बच्चों ने आकर्षक सजीव झांकी लगाकर पुर तेरापंथ का इतिहास बताया। वहीं मुस्लिम सद्भाव सेवा समिति एवं कांग्रेस सेवा दल ने आचार्य का स्वागत किया गया तत्पश्चात भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री पुर स्थित तेरापंथ भवन में पधारे जहाँ लगभग दो बजे तेरापंथ भवन के सन्निकट स्थित भारद्वाज वाटिका में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्य ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि पहले ज्ञान और फिर दया, आचरण। जिसके पास ज्ञान ही नहीं, भला वह क्या कर पाएगा? ज्ञान हो और फिर ज्ञान से युक्त आचार हो तो कल्याण की बात हो सकती है। अहिंसा परम धर्म है। अहिंसा जीवनशैली और नीति भी बने। साधु तो धन्य होते हैं जो अहिंसा महाव्रत के पालक होते हैं। गृहस्थ अहिंसा को अपनी जीवनशैली में लाए तो उसके लिए कल्याण की बात हो सकती है। भोजन में नो नॉनवेज की बात हो। लोकतांत्रिक व्यवस्था में विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और प्रेस में किसी के साथ अन्याय न हो ऐसी नीति होनी चाहिए। अहिंसा जीवनशैली के साथ जुड़ जाए तो मानव मात्र का कल्याण हो सकता है।
तेरापंथ का महत्वपूर्ण क्षेत्र है पुर: आचार्य महाश्रमण
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के दौरान पुर आगमन के संदर्भ में कहा कि आज चतुर्मास के बीच भीलवाड़ा से पुर आए हैं। पुर क्षेत्र में महामना, परम वंदनीय आचार्य भिक्षु ने दो चतुर्मास किया है। पुर तेरापंथ का महत्वपूर्ण क्षेत्र है। आज हम मानों उनकी रचना क्षेत्र में आए हैं। पुर के लोगों में देव, गुरु और धर्म के प्रति आस्था बनी रहे। आचार्य ने पुरवासियों को अहिंसा यात्रा के संकल्पों को बताते हुए उन्हें स्वीकार करने का आह्वान किया तो अपने आराध्य को पाकर आह्लादित पुरवासियों ने अपने अहिंसा यात्रा की संकल्पत्रयी स्वीकार की। इस दौरान आचार्यश्री ने पुरवासियों को सम्यकत्व दीक्षा (गुरुधारणा) भी प्रदान की।
अपने आराध्य के आगमन से हर्षित जन-जन अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने को आतुर था। इस क्रम में पुर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष सुरेशचन्द्र सिंघवी, तेयुप अध्यक्ष नीतिन हिंगड़, महिला मंडल से राजतिलक खाब्या, देवीलाल, नारायणलाल बेरवा ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति के माध्यम से आचार्य की अभिवंदना की। ज्ञानशाला की प्रशिक्षकाओं ने गीत का संगान किया। पुर तेरापंथ महिला मण्डल और कन्या मण्डल ने संयुक्त रूप से गीत की प्रस्तुति दी। इसके अलावा कर्णावट सिस्टर्स, सोनिया भारद्वाज, अम्बालाल सेठ, दिव्या बोलिया, प्रतीक्षा नैनावटी ने गीत व कविता के माध्यम से श्रीचरणों में अपनी श्रद्धाप्रणति अर्पित की।