कम उम्र में अस्थमा, कोविड के बाद पुराने दमा मरीजों की परेशानी बढ़ी

रांची, पर्यावरण प्रदूषण और खराब लाइफस्टाइल के कारण अब कम उम्र में भी लोग अस्थमा के शिकार हो रहे हैं। यही वजह है कि देश में अस्थमा के मरीजों की संख्या काफी बढ़ रही है। अस्थमा नियंत्रण के लिए जरूरी है कि पर्यावरण को स्वच्छ रखा लाए, ताकि फेफड़ों की कोई समस्या सामने नहीं आए। यह कहना है कोलकाता के मशहूर चिकित्सक डा राजाधर का। वह रविवार को बीएनआर चाणक्य होटल में छाती रोग विशेषज्ञों की राष्ट्रीय संस्था इंडियन चेस्ट सोसायटी के कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस कार्यक्रम में देश के कई छाती रोग विशेषज्ञ मौजूद थे। उन्होंने छाती रोग संबंधित नई खोजों की जानकारी साझा की।

पुराने दमा के मरीजों की समस्या में इजाफा
डा राजाधर ने कहा कि कोरोनावायरस संक्रमण के बाद पुराने दमा मरीजों की समस्या काफी बढ़ गई है। अस्पतालों में यह देखा जा रहा कि जिन्हें पहले दमा के सामान्य लक्षण थे, वह अब काफी गंभीर हो गए हैं। ऐसे में जरूरी है कि हम अपने फेफड़े को स्वस्थ रखें। इसके लिए हमें नियमित व्यायाम करना होगा, डाक्टर की निगरानी में।
बीमारियों से मौत में धूमपान भी बड़ी वजह
छाती रोग विशेषज्ञ डा श्यामल सरकार कहा कि दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोग धूमपान करते हैं, जिसके कारण वे कई तरह की बीमारियों से ग्रसित होते हैं। उन्होंने बताया कि केवल सिगरेट या बीड़ी पीना ही धूमपान नहीं है बल्कि लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाना या आग तापना भी कई गुना खतरनाक है। यह भारत में बीमारियों से होने वाली मृत्यु का चौथा बड़ा कारण भी है।
डा दीपक तलवार व अन्य विशेषज्ञ ने झारखंड के डाक्टरों को विभिन्न प्रकार के छाती रोगों से बचाव व उपचार के बारे में विस्तार से बताया। इससे पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन रांची के वरिष्ठ चिकित्सकों ने दीप प्रज्जवलित कर किया। कार्यक्रम में 120 से अधिक चिकित्सक शामिल हुए। कार्यक्रम द्वारा उन्हें आधुनिक इलाज व मेडिकल साइंस में हो रहे नए शोध से रू-ब-रू कराया गया।
