सात में तीन सीटें जीतकर भाजपा ने पुराना प्रदर्शन रखा बरकरार, UP की घोसी सीट गंवाई
नई दिल्ली। विपक्षी दलों को आइएनडीआइए (I.N.D.I.A) नाम से नए स्वरूप में लाने के प्रयासों के बीच विधानसभा की सात सीटों के उपचुनाव के नतीजों ने भविष्य के संकेत दे दिए हैं। भाजपा नेतृत्व वाला एनडीए के साथ छह राज्यों में विपक्षी दलों का यह पहला संघर्ष था। देशभर की नजर थी। किंतु सात में तीन सीटें जीतकर भाजपा ने अपने पुराने प्रदर्शन को बरकरार रखा।
दूसरी ओर बंगाल एवं केरल में आइएनडीआइए के घटक दलों ने आपस में ही टकराकर दूसरे को हराया। त्रिपुरा में मिलकर भी दोनों सीटों को भाजपा की झोली में जाने से रोक नहीं पाए। मुस्लिम बहुल सीट बक्सानगर में भी भाजपा ने माकपा को हराकर पहली बार कब्जा जमा लिया। अलग-अलग कारणों से छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर पांच सितंबर को वोट डाले गए थे।
संसदीय आम चुनाव से सात महीने पहले हुए इस चुनाव को सेमीफाइनल बताया जा रहा है। भाजपा के कब्जे में पूर्व से त्रिपुरा की धनपुर, उत्तराखंड की बागेश्वर एवं बंगाल की धूपगुड़ी सीटें थीं। इनमें धूपगुड़ी भाजपा के हाथ से चली गई। उसकी जगह एक नई सीट त्रिपुरा की बक्सानगर आई है।
मतलब तीन की तीन रह गई। तीन अन्य में यूपी की घोसी पर सपा, झारखंड की डुमरी पर झामुमो एवं केरल की पुथुपल्ली पर कांग्रेस ने अपना कब्जा बरकरार रखा है।
क्या माकपा और कांग्रेस के बीच होगा गठबंधन?
उपचुनाव के नतीजे आगाह कर रहे हैं कि बंगाल और केरल में विपक्षी गठबंधन की अवधारणा पूरी तरह सफल नहीं हो सकती है। केरल में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं पूर्व सीएम ओमान चांडी की सीट पर माकपा ने प्रत्याशी देकर साफ कर दिया कि संसदीय चुनाव में भी वह गठबंधन के लिए तैयार नहीं होगी।
एक अन्य बड़ा संकेत है कि मिशन-24 में दो प्रमुख प्रत्याशियों के बीच ही आरपार की लड़ाई हो सकती है। तीसरे की संभावना सिमट सकती है। चाहे वह राष्ट्रीय दल ही क्यों ना हो? बसपा एवं जदएस जैसे छोटे होते दलों के लिए यह ट्रेंड एक चेतावनी है, जो किसी खेमे के साथ खड़े होने के लिए उन्हें प्रेरित कर सकता है।
घोसी सीट पर सपा ने भाजपा को हराया
यूपी की घोसी सीट पर सपा ने भाजपा को हराया। किंतु इसे आइएनडीआइए से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि कांग्रेस का अस्तित्व यहां नगण्य है। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को महज दो हजार वोट मिले थे। ऐसे में समर्थन का कोई अर्थ नहीं रह जाता। हां, बसपा ने चुनाव में भाग न लेकर एक तरह से सपा की मदद की है।
बागेश्वर सीट पर भाजपा की वापसी
उत्तराखंड की बागेश्वर सीट पर भाजपा की वापसी से स्पष्ट है कि कांग्रेस के लिए आगे की राह भी आसान नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस में 190 सीटों पर सीधी टक्कर थी, जिसमें मात्र 15 पर कांग्रेस और 175 पर भाजपा की जीत हुई थी।
धूपगुड़ी सीट पर तृणमूल का कब्जा
बंगाल की धूपगुड़ी सीट भाजपा ने संघर्ष के बावजूद तृणमूल के सामने गंवा दी। माकपा-कांग्रेस गठबंधन को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा। यह परिणाम आइएनडीआइए के लिए मुश्किल पैदा करेगा। पहले से ही वामदलों की दोस्ती से परहेज करने के लिए कांग्रेस पर दबाव बना रही ममता बनर्जी अब ज्यादा मुखर होंगी। बंगाल में मिशन-24 के लिए सीट बंटवारे का काम दुश्कर होने वाला है।
भाजपा ने आइएनडीआइए को दी करारी शिकस्त
संकेत यह भी है कि भाजपा ने हारकर भी अपने वोटरों को जोड़े रखा है। बंगाल की तरह त्रिपुरा में भी कांग्रेस एवं वामदलों का तालमेल था।
स्थानीय दल टिपरा मोथा का भी समर्थन प्राप्त था। फिर भी भाजपा ने दोनों सीटों पर आइएनडीआइए को करारी शिकस्त दी और साबित कर दिया कि वामदलों एवं कांग्रेस की संयुक्त राजनीति भी अब पस्त होने वाली है। केरल में कुश्ती और बाकी राज्यों में दोस्ती की चालाकी ज्यादा दिनों तक आम जनता से ओझल नहीं रहने वाली।