कर्नाटक में प्रतिबंधित होगा बजरंग दल! 31 साल पहले भी कांग्रेस ने ही लगाया था बैन

कर्नाटक में प्रतिबंधित होगा बजरंग दल! 31 साल पहले भी कांग्रेस ने ही लगाया था बैन
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कर्नाटक में कांग्रेस ने जो घोषणापत्र में वादे किए, उसमें एक वादा बजरंग दल पर सख्ती करके निर्णायक फैसला लेने का भी है। नई सरकार के गठन के साथ ही पहली कैबिनेट में बजरंग दल पर कड़ी सख्ती करने की तैयारियों को अमलीजामा पहनाए जाने की शुरुआत की जाएगी। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जो वादे उनके घोषणा पत्र में किए गए हैं, उन्हें अमल में तो लाया ही जाएगा, वहीं बजरंग दल पर सख्ती किए जाने या प्रतिबंध लगाने की तैयारी के साथ शुरू की जाने वाली कवायद का असर उत्तर भारत में किस तरह होगा, इसे भी कांग्रेस और भाजपा अपने नजरिए से न सिर्फ देख रही हैं, बल्कि उसकी बड़ी रणनीतियां भी बना रही है। माना यही जा रहा है कि बजरंग दल पर अगर कर्नाटक में पहली कैबिनेट के साथ ही कोई कड़ी कारवाई की जाती है, तो इसका असर उत्तर भारत में देखने को मिलेगा। हालांकि 31 साल पहले कांग्रेस की सरकार ने ही पूरे देश में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाया था।

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कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बन चुकी है। सियासी गलियारों में सबसे ज्यादा निगाहें कांग्रेस के घोषणा पत्र में पीएफआई और बजरंग दल जैसे संगठनों पर कड़ी कार्यवाही और सख्ती करने के वादे पर लगी हुई हैं। कर्नाटक में कांग्रेस का चुनाव प्रबंधन देख रहे पार्टी के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि जैसे ही सरकार का गठन होगा और मुख्यमंत्री शपथ लेंगे, उसके बाद की जाने वाली पहली कैबिनेट की बैठक में जनता से किए गए वादों को पूरा करने की शुरुआत कर दी जाएगी। सूत्रों का कहना है कि इसमें बजरंग दल और पीएफआई जैसे संगठनों की पुरानी सरकारों में की गई कार्य प्रणालियों और उनके ऊपर दर्ज मुकदमों समेत पूरी हिस्ट्री को भी चेक किया जाएगा। पार्टी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस ने सिर्फ बजरंग दल ही नहीं बल्कि पीएफआई जैसे संगठनों पर भी कड़ी से कड़ी सख्ती बरतने और जरूरत पड़ने पर निर्णायक रूप से बड़े फैसले, जिसमें प्रतिबंध भी शामिल हैं, लिए जा सकते हैं।

 

सबसे बड़ा सियासी सवाल यही पैदा होता है कि अगर कर्नाटक में बजरंग दल पर किसी तरीके की कड़ी सख्त कार्रवाई की जाती है, तो उसका असर उत्तर भारत की सियासत में किस तरह से पड़ने वाला है। इसको लेकर राजनैतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार एन किरण कुमार कहते हैं कि कर्नाटक के चुनाव में भाजपा के नेताओं की ओर से तो बजरंग बली की एंट्री जरूर की गई थी, जिसमें यह कहा जाता रहा कि बजरंग बली का नाता कर्नाटक से है और भगवान राम का नाता अयोध्या से। लेकिन कांग्रेस के पास इस तरीके से प्रचार करने के लिहाज से कुछ भी नहीं था। उनका कहना है जैसे ही कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में बजरंग दल और पीएफआई पर सरकार आने के बाद सख्ती और निर्णायक फैसले का जिक्र किया गया, तो भाजपा ने बजरंग दल के साथ बजरंग बली को जोड़कर एक बड़ा सियासी माहौल तैयार करना शुरू कर दिया। साथ ही कांग्रेस ने बजरंग बली को बड़ा सियासी मुद्दा बनाते हुए राज्य में नए-नए मंदिरों निर्माण और अंजनाद्री विकास बोर्ड की स्थापना करने की घोषणा भी की।

दक्षिण भारत से शुरू हुए बजरंग बली की सियासत पर उत्तर भारत में पड़ने वाले असर को लेकर राजनीतिक विश्लेषक पूरी तरीके से मान चुके हैं कि कांग्रेस और भाजपा आने वाले चुनावों में इसे जोर-शोर से आगे बढ़ाएंगे। राजनीतिक विश्लेषक और कानपुर विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता रहे ओम प्रकाश मिश्रा कहते हैं कि उत्तर भारत के सियासी तापमान को अगर आप समझते हैं, तो आपको अंदाजा होगा कि यहां की सियासत में धर्म कितना ज्यादा मायने रखता है। भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस, बसपा, सपा, जेडीयू, आरजेडी, शिवसेना और एनसीपी समेत तमाम अन्य छोटे-बड़े दल अपनी सियासत में जाति और धर्म के बगैर चुनावी हिसाब किताब जोड़ ही नहीं सकते। वह मानते हैं कि आने वाले चुनावों में जिसमें कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान समेत अगले साल होने वाले लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस और भाजपा दोनों बजरंगबली के नाम का जमकर इस्तेमाल करने वाले हैं। वह कहते हैं कि कर्नाटक में बजरंग दल पर प्रतिबंध या किसी तरीके की सख्ती अगर होती है, तो भाजपा उत्तर भारत में उसका चुनावी मुद्दा बनाएगी।

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राजनीतिक विश्लेषक जीडी शुक्ला कहते हैं कि कर्नाटक में अगर अपने घोषणा पत्र के मुताबिक कांग्रेस बजरंग दल पर सख्ती करती है या उस पर प्रतिबंध लगाती है, तो निश्चित तौर पर उसका असर उत्तर भारत खासतौर से उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा और उत्तराखंड समेत बिहार और अन्य हिंदी भाषी राज्यों पर बड़ा असर पड़ेगा। वह कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि बजरंग दल पर पहली बार सख्ती लगाने की बात हो रही है। वह कहते हैं कि 1992 में बजरंग दल पर पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने एक साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि बाद में वह प्रतिबंध हटा दिया गया। उत्तर प्रदेश में अवध प्रांत से बजरंग दल के सचिव रहे हिमांशु वाजपेई कहते हैं कांग्रेस बजरंग दल पर सख्ती करने या प्रतिबंधित करने का मंसूबा कांग्रेस अपने दिमाग से निकाल दे। क्योंकि ऐसा करके कांग्रेस पूरे देश के सभी सनातनियों का अपमान करेगी।

इसको लेकर कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष और पूर्व रेल मंत्री पवन बंसल कहते हैं कि उनकी पार्टी किसी भी तरीके से जाति धर्म को लेकर भेदभाव नहीं करती है। वह कहते हैं कि हमारे घोषणा पत्र बजरंग दल और पीएफआई जैसे संगठनों निर्णायक कार्रवाई की बात कही गई है। खासतौर से वह संगठन जो अलग-अलग समुदायों के बीच में माहौल बिगाड़ने और एक-दूसरे को भड़काने का काम करते हैं उनके खिलाफ तो कार्रवाई की ही जाएगी। वहीं कांग्रेस पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि अगर भाजपा उत्तर भारत में बजरंग बली के नाम का इस्तेमाल करके सियासत को नया रंग देगी, तो उसका मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने भी अपनी पूरी रणनीतियां बना ली हैं। वह कहते हैं कि बजरंगबली और भगवान राम कांग्रेस की प्रॉपर्टी नहीं है। उनका दावा है कि वह कर्नाटक में आञ्जनेय मंदिर बनाने जा रहे हैं। आंजनेय डेवलपमेंट बोर्ड का गठन होने वाला है। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता का कहना है कि हमारी पार्टी से दक्षिण की तरह है उत्तर भारत में भी बजरंगबली को अपने दिल में रखकर सियासी मैदान में उतरेगी।

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