राजनीति के मछुआरों को पालती बड़ी मछलियां

राजनीति के मछुआरों को पालती बड़ी मछलियां

बात मछली पकड़ने की चल रही थी। बड़ी मछली को पकड़ें या छोटी मछली को। सीधी-सी बात है। छोटी मछली को पकड़ोगे तो भूखे रह जाओगे। उस छोटी मछली से किस-किस का पेट भरेगा? उससे तो मछुआरे का पेट भरने की बात दूर, गला ही गीला नहीं होगा। सौ-पचास को पकड़ोगे, तब कहीं जाकर गले में तरावट आएगी। छोटी मछलियों का वैसे भी एतबार नहीं करना चाहिए। एक तो ये फिसलती बहुत हैं, दूसरे इनमें माल-मसाला कुछ खास नहीं होता। एक बड़ी मछली ऊपर से लेकर नीचे तक सबको तृप्त करती है। पीढ़ियों का इंतजाम कर देती है।

हां, इन्हें पकड़ने में थोड़ी रिस्क जरूर है। कांटा लगाकर कोई कब तक इसके फंसने का इंतजार कर सकता है! कांटा डालने वाला मछुआरा अगर घाघ न हुआ तो यह कांटे को भी नहीं बख्शती और उसे ही कब्जे में कर लेती है। पता चला कि कांटाधारी कांटा लगाकर बड़ी मछली पकड़ने की प्रतीक्षा में बैठा है। परिणाम आता है कि कांटे पर जो दाना उसने मछली को खींचने के लिए लगाया होता है, बड़ी मछली वही लेकर चंपत हो गई। बड़ी मछली मछुआरे की हर अदा से वाकिफ होती है। वह जानती है कि छोटी मछलियां उसका पेट नहीं भर सकतीं। राजनीति के कई मछुआरे कांटा लेकर आए उसे पकड़ने और बरसों बाद कांटा लगाए-लगाए ही राजनीति से रिटायर हो गए। हाथ कुछ लगा नहीं।

कुछ तेजतर्रार मछुआरों के पास जाल थे, वे कांटे पर विश्वास नहीं करते थे। जाल लगाएंगे तो बड़ी न सही, ढेर सारी छोटी मछलियां तो फंस ही जाएंगी, ऐसी उनकी सोच थी। पर मन के किसी कोने में यही रहता कि काश! बड़ी मछली जाल में फंस जाए। लेकिन बड़ी मछली खेली-खायी होती है। समंदर में रहकर बचने के सारे हथकंडे सीख चुकी होती है। जाल में वह समाती नहीं, कांटे को गांठती नहीं...। उसकी सैटिंग इतनी तगड़ी होती है कि अव्वल तो उस पर जाल डाल पाना ही संभव नहीं होता। कोई नामुराद जाल डाल भी दे तो वह जाल समेत उसे ही पानी में खींच लेती है। मामला हद से गुजर जाए तो वह मछुआरे को छोटी मछलियां खिलाकर उसे पालने लगती है।

देश में ऐसे मछुआरों की कमी नहीं है, जिन्हें बड़ी मछलियां पाल रही हैं। इनकी मोटी खाल पर ये मछुआरे टंकार लगाते हैं और समंदर की मालिक ये मछलियां अपने खजाने से इनको चुग्गा देकर जाल खोलने का मौका नहीं देती। रखे-रखे मछुआरों के कांटों की धार कुंद हो गई है, जाल में जाले पड़ गए हैं। मुफ्त का दाना चुगते-चुगते ये इतने मुटिया गए हैं कि बड़ी मछली तो दूर, छोटी मछलियों को पकड़ने की हिम्मत भी जवाब दे चली है।

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