उबलती, तड़फती भावना....
कोई दस बारह साल पहले भारत में जब स्मार्ट फोन आया तब जाकर हमारी उबलती, तड़फती भावनाऔं को असली प्लेटफार्म मिला..
इसके फोन के आगमन के बाद ही पता चला कि देश में लाखों शायर है करोड़ कवि है.. स्मार्ट फोन से पहले हम गालिब- गुलजार में ही अटके थे, हमें पता ही ना था कि यहां तो हर गली गुलजार है।
इस देश में हर सातवां आदमी शायर है , और हर तीसरा कवि…
कवि ज्यादा है। क्योंकि कविता बनाना ज्यादा सरल है। शायरी के लिए एक-आध प्रेमिका और चांद पर गहन शोध होना अत्यन्त जरुरी होता है ..
ऐसा शोध कवि लोगों के बस का नहीं.. वे चांद से ज्यादा सूरज में यकिन करते है.. इसलिए एक सच्चा कवि भंयकर गर्मी में रचना कर भी सकता है और पढ़ भी सकता है.. बस अवसर मिलना चाहिए.. (वैसै योग्य कवि अवसर स्वयं तैयार कर लेते है)
लेेकिन शायर लोग.. रात की चांदनी पसन्द करते है, किसी विशिष्ट तरल पदार्थ के साथ इनकी शायरी सरलता से बहने लगती है, कभी कभी तो इस बहाव को रोकना बहुुत मुश्किल हो जाता है।
और हां, जो स्वयं को मां शारदे के सच्चे सपूत कहते है, वे तो कविता, गजल, गद्य, पद्य… सभी में दखल रखते है। वे 360 डिग्री साहित्यकार होते है । ये सरस्वती पुत्र चांद, सूरज, धरती, आकाश, और पाताल पर भी रचनाएं लिख सकते है। लिख भी रहे है…. अभी एक मित्र ने ,जो पुरानी कारें बेचता है, मंगल ग्रह पर ऐसी अद्भुत कविता लिखी कि उसे सुनो तो हमें इस ग्रह को छोड़ देने का भाव जग जाता है।… खैैर.. उसने ये अपने स्मार्ट फोन पर अपलोड की और हजारों लोगों ने उसे लाईक किया, ऑसम, ब्यूटीफुल और अमेंजिग जैसे कमेंट लिखे… इससे उनके भीतर का कालिदास जाग गया..
इस जागे हुए कालिदास ने राा डेढ बजे फोन किया कि एक रचना "जूपीटर" पर लिखी है .. सुनाऊं क्या?...
फोन काट दिया मैनें। ब्लॉक कर दिया।
अब किसी मित्र के घर जाऊं और वो फोन निकाले तो डर लगता है । कि अभी कुछ सुनाएगा.. वो जुपीटर पर सुना रहा था.. ये ट्रैक्टर पर सुनायेगा। पक्का सुनायेगा।
मेरी सुनो… मुझे तो शादी के सातवें दिन ही श्रीमतिजी ने सुधार दिया था.. कि भूल कर भी अब जो कविता सुनायी तो.. बोरिया बिस्तर सिमेट लूंगी… छ दिन में छत्तीस कविताएं झेल चुकी हूं तुम्हारी…
मुझे याद है उस दिन उसकी धमकी के साथ आंखे भी बड़ी बड़ी थी… कसम से उस दिन के बाद किसी को भी नहीं कहा कि भाई सुन …
जबकि यार.. मैं तो "जुपीटर" पर नहीं, प्रेम और भाईचारे जैसे सब्जेक्ट पर लिखता हूं।….
(Kgkadam)