शीतला सप्तमी का व्रत कलए संतान के दीर्घायु की कामना होती है पूरी . डॉ मृत्युञ्जय तिवारी
निंबाहेड़ा | भारतीय सनातन परंपरा में शीतला सप्तमी का विशेष महत्व है । चैत्र कृष्ण सप्तमी का यह व्रत विशेष प्रकार से पूरे विधि.विधान से माता शीतला की पूजा करने का दिन है । श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी ने बताया कि जो भक्त माता शीतला का व्रत रखते हैं उन्हें सभी रोगों से छुटकारा मिल जाता है । विशेष रूप से संतान की सेहत के लिए इस व्रत को रखने की मान्यता है । शीतला माता जिस कलश को हाथ में लिए दिखाई पड़ती हैं पुराणों के अनुसार उस कलश में 33 करोड़ देवी.देवताओं का निवास होता है।
सप्तमी तिथि की शुरूआत 13 मार्च की रात 9 बजकर 27 मिनट से हो जाएगी और समाप्ति 14 मार्च रात 9 बजकर 27 मिनट पर होगी । फाल्गुन मास में 14 मार्च के दिन शीतला सप्तमी का व्रत रखा जाएगा । इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 33 मिनट से शुरू होकर शाम 6 बजकर 29 मिनट तक रहेगा अगले दिन यानी 15 मार्च के दिन शीतला अष्टमी मनाई जाएगी ।
शीतला सप्तमी पूजा विधि
मान्यतानुसार शीतला सप्तमी का व्रत रखने पर चेचक या खसरा जैसी बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है । माताएं अपनी संतान की सेहत और सुरक्षा के लिए सीतला सप्तमी का व्रत रखती हैं ।
शीतला सप्तमी की पूजा में सुबह उठकर गुनगुने पानी से स्नान किया जाता है । इसके पश्चात व्रत का संकल्प लिया जाता है । जो महिलाएं शीतला सप्तमी का व्रत रखती हैं वे शीतला माता के मंदिर में जाकर या शीतला माता की प्रतिमा के समक्ष पूजा करती हैंण् इस दिन माता शीतला से स्वस्थ जीवन की कामना की जाती है ।शीतला सप्तमी की कथा सुनकर पूजा पूरी करते हैं।
शीतला सप्तमी की कथा
एक बार दो महिलाओं और उनकी बहुओं ने शीतला सप्तमी का व्रत रखा था । शीतला सप्तमी के दिन बासी भोजन का सेवन किया जाता है इसीलिए उन्होंने पहले ही भोजन पका लिया थाण् लेकिनए दोनों बहुओं ने बासी भोजन ग्रहण करने के बजाय ताजा पका हुआ खाना खा लियाण् इसके पश्चात दोनों बहुओं के बच्चों की मृत्यु हो गई । दोनों बहुओं की सास ने उन्हे घर से निकाल दिया और बहुएं बच्चों के शव को लिए दर.दर भटकने लगीं । इसके बाद उन्हें बरगद के पेड़ के नीचे ओरी और शीतला नाम की दो बहनें मिलीं । बहुओं ने उन बहनों को अपनी पूरी व्यथा सुनाई और बहनों ने आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए जिसके बाद दोनों मृत बालक जीवत हो गए । बहुओं को समझ आ गया कि वे साक्षात माता हैं और वे उन दोनों के पैरों में गिर गईं। इसके बाद से वे हर साथ पूरे मनोभाव और श्रद्धा से शीतला सप्तमी का व्रत रखने लगीं ।
इस दिन नीम के पेड़ की पूजा का महत्व
सनातन वैदिक धर्म में पेड़ पौधों को बेहद शुभ माना जाता है और इनकी पूजा भी होती है लेकिन नीम का पेड़ बेहद चमत्कारी और असरकारी होता है नीम का उपयोग कई तरह के धार्मिक और ज्योतिषीय उपायों व कार्यों में किया जाता है ज्योतिषशास्त्र की मानें तो इसका प्रयोग ग्रहों को शांत करने में भी होता है खासकर अगर किसी जातक की कुंडली में शनिए राहु केतु और मंगल का कोई दोष है
अगर घर में नकारात्मकता बनी रहती है जिसके कारण आपको कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो ऐसे में घर के बाहर नीम का पौधा लगाएं । इससे नकारात्मकता बाहर चली जाती है और सकारात्मकता का संचार होता है।