34 साल बाद कश्मीरी हिंदू नरसंहार के मामलों को फिर से खोलने का फैसला

34 साल बाद कश्मीरी हिंदू नरसंहार के मामलों को फिर से खोलने का फैसला
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कश्मीरी हिन्दू जिस कदम की मांग लगभग पिछले तीन दशक से कर रहे थे उस पर भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए 34 साल बाद कश्मीरी हिंदू नरसंहार के मामलों को फिर से खोलने का फैसला किया है। दोबारा खोले जा रहे मामलों में पहला केस रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू के मर्डर से जुड़ा है, जिनकी निर्मम हत्या यासीन मलिक के JKLF आतंकवादियों ने 4 नवंबर 1989 को श्रीनगर में दिनदहाड़े कर दी थी। बता दें कि जज गंजू ने ही JKLF आतंकी मकबूल बट को फांसी की सजा सुनाई थी। ये सजा ब्रिटेन में भारतीय राजनयिक रवींद्र महात्रे की हत्या का दोषी करार दिए जाने के बाद दी गई थी।

बेरहमी से हुई थी जज नीलकंठ गंजू की हत्या

मिली जानकारी के मुताबिक जम्मू कश्मीर में लगभग 3 दशक पहले रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड ने समूचे देश को हिला कर रख दिया था। इस हत्या के पीछे की बड़ी आपराधिक साजिश का पता लगाने के लिए राज्य जांच एजेंसी (SIA) तथ्यों या परिस्थितियों से परिचित सभी व्यक्तियों से आगे आने की अपील की है। राज्य एजेंसी के प्रवक्ता ने मामले से जुड़े लोगों से आग्रह किया कि वे उस घटना से जुड़े जानकारी और विवरण साझा करें, जिसका इस मामले से किसी भी तरह का लिंक हो।

जानिए पूरा मामला

जिला और सत्र न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नीलकंठ गंजू ने अगस्त 1968 में जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के संस्थापक और नेता मकबूल भट को 1966 में पुलिस इंस्पेक्टर अमर चंद की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई थी। रिटायर्ड होने के बाद 67 वर्षीय गंजू की 4 नवंबर, 1989 को श्रीनगर में आतंकवादियों ने सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी थी।

जज गंजू द्वारा 1968 में दिए गए भट की सजा को 1982 में सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा था। इसके बाद 1984 में भट को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई थी। इसी निर्णय का बदला लेने के लिए आतंकवादियों ने पूर्व जज की हत्या कर दी थी।

उस दौर में आतंकियों का मन इतना बढ़ गया था कि वो जिसे चाहे मार-काट रहे थे। कश्मीरी पंडितों के लिए वो दौर एक विभीषिका से कम नहीं थी। अब यह केस खुली है तो उम्मीद है कि बाकि उन केसों को भी खोली जाएगी जिसमें कश्मीरी पंडितों के साथ उस समय दुराचार हुआ था, उनकी सामूहिक हत्याएं हुईं थी।

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