घटती महंगाई के बीच देश में बढ़ रही है मांग; थोक और खुदरा मुद्रास्फीति में गिरावट अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी राहत

घटती महंगाई के बीच देश में बढ़ रही है मांग; थोक और खुदरा मुद्रास्फीति में गिरावट अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी राहत
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निश्चित रूप से दीपावली से जिस तरह देश के कोने-कोने में लगातार मांग में वृद्धि से बाजार में रौनक है, उसके आगे भी बने रहने की अनुकूलताएं दिखाई दे रही हैं। हाल ही में कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने कहा कि देश भर में त्योहारों के दौरान खुदरा और स्थानीय बाजारों में अच्छी रौनक रही और 3.75 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड कारोबार हुआ है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईआई) की ताजा रिपोर्ट में सामने आया है कि अधिकांश कच्चे माल की लागत घट गई है। देश में रोजमर्रा के उपयोग के सामान (एफएमसीजी) की मांग में भी वृद्धि हो रही है। कच्चे माल की लागत कम होने से स्थानीय ब्रांडों के लिए कम कीमतों में एफएमसीजी उत्पाद तैयार कर बेचना आसान हो गया है।



बीते अक्तूबर में ई-वे बिल का आंकड़ा 10.3 करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। कोई भी सामान राज्य के भीतर और बाहर भेजने के लिए कारोबारी ऑनलाइन ई-वे बिल निकालते हैं। इनकी संख्या में वृद्धि अर्थव्यवस्था में मांग और आपूर्ति बढ़ने के रुझान का प्रारंभिक संकेत हैं। गौरतलब है कि बाजारों में तेज सुधार से चालू वित्त वर्ष में सरकार की कुल कर प्राप्तियां बजट अनुमान से काफी अधिक रहने की संभावना है। उम्मीद है कि प्रत्यक्ष कर और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में त्योहारी सीजन में आई तेजी आगामी महीनों में भी बनी रहेगी।

वस्तुतः इस समय देश में बढ़ती मांग के तीन प्रमुख आधार हैं। महंगाई में नर्मी, बेरोजगारी के आंकड़े में गिरावट और सरकारी योजनाओं से लोगों के पास अधिक धन का प्रवाह। इन कारणों से लोग अधिक खर्च करने के लिए प्रेरित हुए हैं। निस्संदेह थोक एवं खुदरा महंगाई के सूचकांक राहत का परिदृश्य प्रस्तुत करते हैं। जहां इन दिनों वैश्विक खाद्यान्न संकट से वैश्विक महंगाई बढ़ी हुई है और दुनिया के बाजार पस्त दिखाई दे रहे हैं, वहीं इन प्रतिकूलताओं के बावजूद भारत के बाजारों में रौनक है। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित महंगाई बीते अक्तूबर में शून्य से 0.52 फीसदी नीचे रही। इस साल अप्रैल से यह लगातार सातवां महीना है, जब थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई शून्य से नीचे बनी हुई है। इसका शून्य से नीचे रहने का अर्थ कुल थोक कीमतों में सालाना आधार पर गिरावट है। इसी तरह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति बीते अक्तूबर में घटकर 4.87 फीसदी पर आ गई।

देश में ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में रोजगार बढ़ने से बाजार में सुधार को गति मिली है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, इस वर्ष ग्रामीण व शहरी, दोनों ही जगहों पर बेरोजगारी दर में कमी आई है और रोजगार की अच्छी स्थिति दिख रही है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के अनुसार, देश में पिछले छह वर्षों में बेरोजगारी दर छह फीसदी से घटकर 3.2 फीसदी पर आ गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर घटाने में मनरेगा की अहम भूमिका है, तो शहरों में बेरोजगारी दर घटाने में कौशल विकास, डिजिटल स्किल्स तथा गिग अर्थव्यवस्था की अहम भूमिका रही है।

वैश्विक एजेंसियां भी भारत के बाजारों के बढ़ने के अनुमान जता रही हैं। रेटिंग एजेंसी मूडीज की ग्लोबल मैक्रो आउटलुक, 2024 की रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका की तुलना में भारत में कम प्रतिबंधात्मक व्यापार नीतियां, बेहतर बुनियादी ढांचे और मजबूत घरेलू मांग से भारत के बाजार और उद्योग आगे बढ़ रहे हैं, और भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में, वर्ष 2023-24 और 2024-25 के लिए देश की विकास दर क्रमशः 6.7 और 6.1 फीसदी रहने की संभावना है।

आगामी समय में देश के बाजारों में तेजी बनाए रखने के लिए हमें खाद्यान्नों की महंगाई पर नियंत्रण रखना होगा। चूंकि खरीफ फसल के कमजोर रहने और रबी की बुआई प्रभावित होने से आगे महंगाई बढ़ने का जोखिम है। ऐसे में, स्थिर रुपये, प्रबंधन योग्य ऊर्जा लागत और ईंधन की कीमतों पर कर नीति से महंगाई को स्थिर सीमा में रखने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, अतिरिक्त नकदी की निकासी पर भी  रिजर्व बैंक को ध्यान देना होगा। साथ ही, व्यापार की सरलता और रोजगार के अवसरों की बढ़ोतरी पर ध्यान देना होगा।

 

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