हर सेकंड 1337 टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन, सदी के मध्य तक 370% बढ़ जाएगा मृतकों का आंकड़ा

हर सेकंड 1337 टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन, सदी के मध्य तक 370% बढ़ जाएगा मृतकों का आंकड़ा
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हर सेकंड 1,337 टन कार्बन डाईऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जित हो रही है। इससे लोगों के स्वास्थ्य पर खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक, तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ सदी के मध्य तक हर साल बढ़ती गर्मी और लू से मरने वालों का आंकड़ा 370 फीसदी बढ़ जाएगा। 2018 से 22 के बीच लोगों को हर साल औसतन 86 दिनों तक ज्यादा गर्म तापमान का सामना करना पड़ा।

रिपोर्ट के अनुसार, औद्योगिक क्रांति से पहले उत्सर्जन बहुत कम था। 20वीं सदी के मध्य तक उत्सर्जन में वृद्धि अपेक्षाकृत धीमी थी। 1950 में दुनिया ने छह अरब टन सीओ2 उत्सर्जित की। 1990 तक यह लगभग चौगुनी होकर 22 अरब टन से भी अधिक हो गई। उत्सर्जन में तेजी से वृद्धि जारी है। अब हम हर साल 34 अरब टन से अधिक उत्सर्जन करते हैं।

कुपोषण का खतरा बढ़ने की आशंका
लैंसेट की ओर से जारी यह रिपोर्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) सहित दुनियाभर के 52 रिसर्च इंस्टीट्यटू के 114 विशेषज्ञों ने मिलकर तैयार की है, जो जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों को उजागर करती है। रिपोर्ट के मुताबिक, केवल लू के कारण 2060 तक करीब 52.5 करोड़ अतिरिक्त लोगों को मध्यम से गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है। इसकी वजह से दुनियाभर में कुपोषण का खतरा बढ़ने की आशंका है।


संक्रामक रोगों का दायरा बढ़ा
रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते तापमान के साथ घातक संक्रामक रोगों का दायरा बढ़ रहा है। अनुमान है कि वो समुद्री तट रेखाएं जो विब्रियो जैसे हानिकारक रोगजनकों के लिए उपयुक्त हैं उनमें 25 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है। यदि 1982 से देखें तो विब्रियो के लिए उपयुक्त तटों की लंबाई हर साल 329 किमी की दर से बढ़ रही है। इसकी वजह से रिकॉर्ड 140 करोड़ लोगों पर डायरिया रोग, घावों से होने वाले गंभीर संक्रमण और सेप्सिस का खतरा बढ़ गया है। अनुमान है कि सदी के मध्य तक डेंगू का प्रसार भी 37 फीसदी तक बढ़ सकता है। साथ ही जीका, चिकनगुनिया और मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है।

भारत के जंगलों में आग से धुआं बढ़ा
डब्यलूएचओ के अनुसार, जलवायु में आ रहे बदलाव की वजह से स्वास्थ्य प्रणालियां कहीं ज्यादा दबाव में हैं। इस बारे में किए एक सर्वेक्षण में शामिल 27 फीसदी शहरों ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से अपनी स्वास्थ्य प्रणालियों पर पड़ रहे प्रभाव पर चिंता व्यक्त की है। पूर्वी साइबेरिया, पश्चिमी अमेरिका, कनाडा और भारत में जंगल की आग से होते धुएं के स्तर में भी महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है, जो स्वास्थ्य के लिहाज से हानिकारक है।

व्यापक स्वास्थ्य केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, यदि हम डेढ़ डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य की दिशा में सार्थक कार्रवाई करने में असफल रहते है तो उसके स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम होंगे। जलवायु संकट से निपटने के लिए एक व्यापक, स्वास्थ्य-केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

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