विशेषज्ञों की चेतावनी: कोरोना के बाद फिलहाल कोई सुरक्षित नहीं !

विशेषज्ञों की चेतावनी: कोरोना के बाद फिलहाल कोई सुरक्षित नहीं !
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पिछले ढाई साल से अधिक समय से जारी कोरोना महामारी कब तक खत्म होगी, फिलहाल इस बारे में न तो किसी अध्ययन में कोई स्पष्टता है, न ही विशेषज्ञ किसी खास नतीजे पर पहुंच पाए हैं। जिस तरह से हाल के महीनों में कोरोना वायरस के वैरिएंट्स में म्यूटेशन देखा गया है, उस आधार पर विशेषज्ञों का कहना है कि संभव है कि आने वाले दिनों में कोरोना के और भी खतरनाक रूप देखने को मिल सकते हैं। इस जोखिम को देखते हुए सभी लोगों को लगातार सावधानी बरतते रहना चाहिए। जिन लोगों का टीकाकरण हो चुका है, उन्हें भी इसके जोखिमों से सुरक्षित नहीं माना जा सकता है।

कोरोना का खतरा कब तक जारी रहेगा इस बारे में कोई पुख्ता अध्ययन रिपोर्ट भी नहीं है, इस बीच वैज्ञानिकों ने चेताया है कि आने वाले समय में हमें और भी कई बीमारियों के महामारी का सामना करना पड़ सकता है। कई अध्ययनों में वैश्विक स्तर पर बढ़ते मोटापे, हृदय रोग और डायबिटीज जैसी स्थितियों के खतरे को लेकर अलर्ट किया जाता रहा है।

एक हालिया शोध में वैज्ञानिकों ने बड़ा दावा करते हुए चेतावनी दी है कि अगर दवाइयों के सही इस्तेमाल पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले वर्षों में लोगों में एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस हो सकता है, जिसके कारण कई तरह की गंभीर स्थितियां पनप सकती हैं। डॉक्टर्स को इस बारे में विशेष सावधानी बरतते रहने की सलाह दी गई है। आइए इस अध्ययन के बारे में जानते हैं।

रोगों पर एंटीबायोटिक दवाओं का कम होता जा रहा है असर

 

भारतीय लोगों में बढ़ रहा है एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने एक हालिया अध्ययन में पाया कि पिछले कुछ वर्षों में बढ़े एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध सेवन के कारण भारतीय लोगों में एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस हो गया है। यह ऐसी स्थिति है जिसमें रोगाणु, ऐसे तंत्र विकसित कर लेते हैं जिससे वह एंटीबायोटिक दवाओं के प्रभाव से बच जाते हैं। आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं के अधिक सेवन के कारण इस तरह की स्थिति होने का खतरा हो सकता है।

आईसीएमआर के शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसी स्थिति में आईसीयू सेटिंग्स में निमोनिया और सेप्टीसीमिया के इलाज के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली कई दवाओं का रोगी पर कोई प्रभाव नहीं होगा।

 

दवाओं के घटते असर के कारण गंभीर समस्याओं का हो सकता है खतरा

 

संक्रमणों का इलाज करना हो सकता है मुश्किल

आईसीएमआर ने अध्ययन में बताया कि जिस तरह के हालात देखे जा रहे हैं, ऐसे में आशंका है कि आने वाले वर्षों में भारत में रोगियों के एक बड़े हिस्सा पर कार्बापेनम जैसी शक्तिशाली एंटीबायोटिक्स का कोई असर नहीं होगा। आईसीएमआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ कामिनी वालिया के मुताबिक डेटा विश्लेषण में पाया गया है कि देश में तेजी से एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस विकसित होता जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप उपलब्ध दवाओं के साथ आने वाले दिनों में कुछ संक्रमणों का इलाज करना मुश्किल हो सकता है।

दवाइयों के सेवन को लेकर बरतें विशेष सावधानी

 


ICMR की रिपोर्ट के अनुसार, ई कोलाई बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण के इलाज के लिए Imipenem दवा का प्रयोग किया जाता रहा है। इस दवा के खिलाफ लोगों में रेजिस्टेंस काफी बढ़ गया है। साल 2016 में जो रेजिस्टेंस की दर 14% थी वह 2021 में बढ़कर 36% हो गई है।

विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह से लोगों ने बिना डॉक्टरी प्रिस्क्रिप्शन के खुद से ही दवाइयां लेने की आदत बना ली है, यह उसी का परिणाम है। ऐसे में आशंका है कि इलाज के लिए उपयुक्त दवाइयों की कमी के कारण आने वाले वर्षों में कई प्रकार के संक्रमण को लेकर महामारी जैसी स्थिति हो सकती है, क्योंकि उन संक्रमणों के इलाज के लिए उपलब्ध दवाइयों का मरीजों पर ज्यादा असर ही नहीं होगा।

 

मोटापे के कारण बढ़ रही हैं कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं

 

बढ़ता मोटापा भी बड़ा संकट

इसी तरह द लैंसट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बढ़ते मोटापे की समस्या को गंभीर बताते हुए इसे भी एक खतरनाक महामारी का संभावित कारण माना था। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया कि जिस तरह से वैश्विक स्तर पर लोगों में मोटापे की समस्या बढ़ती जा रही है, इसके कारण कई बीमारियों जैसे हृदय रोग और डायबिटीज का जोखिम भी पहले के वर्षों की तुलना में काफी अधिक हो गया है। अगर समय रहते मोटापे पर नियंत्रण के लिए उपाय नहीं किए गए तो आने वाले वर्षों में यह बड़े संकट के रूप में उभरती समस्या हो सकती है, संभवत: कोरोना के बाद हम मोटापे की महामारी का सामना कर रहे होंगे।

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