किसान उन्नत बीज उत्पादन कर बढ़ायें आमदनी - प्रो. राठौड़

भीलवाड़ा हलचल। कृषि विज्ञान केन्द्र, अरणिया घोड़ा शाहपुरा द्वारा जिले के प्रगतिशील किसानों के हेतु कृषि में उन्नत बीजों के महत्व पर व्याख्यान एवं परिचर्चा कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के आरम्भ में निदेशक, प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर, डाॅ. सम्पत लाल मून्दड़ा ने सभी अतिथियों एवं प्रगतिशील किसानों का स्वागत करते हुए बताया कि कृषि में उन्नत बीजों का सर्वोपरि स्थान है तथा देश में हरित क्रांति उन्नत बीजों के उपयोग के बिना सम्भव नहीं थी। डाॅ. मून्दड़ा ने बताया कि कृषि में उन्नत बीजों के बिना सारी उन्नत प्रौद्योगिकियाँ विफल हो जाती है साथ ही किसानों से आग्रह किया कि वे उन्नत बीज उत्पादन से अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते है किन्तु उन्हें बीज उत्पादन कार्यक्रम के लिये उचित प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर नरेन्द्र सिंह राठौड़, माननीय कुलपति, मप्रकृप्रौविवि, उदयपुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि उन्नत बीज कृषि का मुख्य आधार है और अब समय आ गया है कि किसानों को केवल उन्नत किस्मों का अच्छा एवं प्रमाणित बीज ही उपयोग में लेना चाहिए। यदि बीज अच्छी गुणवत्ता वाला नहीं होगा तो अच्छे उत्पादन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है, इसलिए किसानों को उन्नत बीज का उपयोग करके अधिक से अधिक लाभ कमाना चाहिए जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके। प्रो. राठौड़ ने परिचर्चा के दौरान किसानों को बताया कि वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी करने के सपने को तभी साकार किया जा सकता है जब किसान पूरी तरह उन्नत बीज का उपयोग करें। यह एक ऐसा माध्यम है जिससे खाद्यान्न उत्पादन को शीघ्र बढ़ाया जा सकता है। उन्होनें कृषि में तीन प्रमुख बातें उत्पादन, उत्पादकता एवं आमदनी बढ़ाने पर विशेष बल दिया और ये उन्नत बीज के उपयोग से ही प्राप्त की जा सकती है।
माननीय कुलपति महोदय ने फसलों की उन्नत किस्मों के उपयोग पर बल देते हुए बताया कि उन्नत किस्म स्थानीय किस्म के मुकाबले 15 से 20 प्रतिशत अधिक उपज देती है एवं विभिन्न प्रकार की जलवायु व मिट्टी के प्रति अनुकूल होती है तथा निश्चित समय पर परिपक्व अवस्था में पहुँचती है। उन्होनें उन्नत बीजों के महत्व पर बात करते हुए किसानों से आह्वान किया कि उन्हें शीघ्रताशीघ्र देशी एवं परम्परागत बीज उपयोग को उन्नत बीजों द्वारा प्रतिस्थापित करना चाहिए जिससे कृषि उत्पादन बढ़ाया जा सके। कुलपति प्रो. राठौड़ ने कहा कि बीजों को भंडार में संरक्षित करते समय आर्द्रता या नमी निर्धारित मात्रा से अधिक नहीं होनी चाहिए। अधिक आर्द्रता के कारण बीज में कवक एवं कीटों का प्रकोप अधिक होता है।
प्रो. राठौड़ ने वैज्ञानिकों से आह्वान करते हुए कहा कि उन्हें उत्तम बीज उत्पादन हेतु और अधिक अनुसंधान पर बल देना चाहिए ताकि किसानों को उन्नत किस्मों का बीज कम लागत पर आसानी से मिल सके। वैज्ञानिकों को प्रमुख रूप से तीन बिन्दुओं पर अनुसंधान को केन्द्रित करना चाहिए जिससे कि बीमारियों से प्रतिरोधी बीज पैदा किया जाए, ऐसे बीज से तैयार होने वाली फसल की पानी की मांग कम हो एवं ऐसी फसलें कम समय में पक कर तैयार होनी चाहिए। उन्होनें बीज उत्पादन, बीज संसाधन, बीज संग्रहण, बीज परीक्षण, बीज प्रमाणीकरण एवं बीज वितरण जैसे सभी क्षेत्रों को और अधिक सुदृढ़ बनाने पर जोर दिया।
प्रमुख व्याख्याता डाॅ. आर.बी. दूबे, सह-निदेशक बीज, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने आॅनलाईन व्याख्यान के दौरान कृषि में उन्नत बीज के महत्व पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। उन्होनें अपने प्रस्तुतिकरण के माध्यम से विभन्न प्रकार के बीजों जैसे मूल केन्द्रक बीज, प्रजनक बीज, आधार बीज, प्रमाणित बीज, आदि के बारे में किसानों को विस्तृत जानकारी दी।
डाॅ. दूबे ने बताया कि पौधों में लगने वाले ज्यादातर रोग बीजजनित रोग होते हैं जो मुख्यतः फफूंद या फंगस द्वारा फैलते हैं। बीजजनित रोगों की रोकथाम के लिए बीजों को बुवाई से पूर्व फफंूदनाशी या कवकनाशी रसायन से अवश्य उपचारित करना चाहिए। बीजों को उपचारित करने के क्रम को एफ. आई. आर. कहते है जिसमें बीज को फंफूदनाशी, उसके बाद कीटनाशी एवं सबसे अन्त में राइजोबियम कल्चर से उपचारित करते है।
डाॅ. आर. बी. दूबे ने किसानों का आह्वान किया कि उन्हें अधिक से अधिक उन्नत बीज अपनाना चाहिए क्योंकि उन्नत किस्म के बीज अधिक पैदावार तो देते ही है, साथ ही साथ उनका बाजार मुल्य भी अधिक मिलता है तथा उत्पादन लागत भी कम आती है। गुणवत्तायुक्त उत्पादन स्वाद में भी अच्छा होता है एवं देखने में भी अच्छा होता है जिससे उसका बाजार मूल्य अधिक मिलता है। उन्नत बीज में बीमारियों एवं सूखे से लड़ने की क्षमता भी अधिक होती है। उन्होंने उन बिन्दुओं पर भी प्रकाश डाला जिससे किसान अपने खेत पर उन्नत किस्मों के बीज आसानी से तैयार कर सके।
व्याख्यान के दौरान शाहपुरा, भीलवाड़ा के कृषक श्री रामलाल जी माली ने तिल की उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी ली तथा जहाजपरु, भीलवाड़ा के किसान श्री मनोज मीणा ने अपने स्तर पर आधार बीज तैयार करने के बारे में पूछा।
कार्यक्रम के दौरान डाॅ. एस.के. शर्मा, निदेशक, अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर एवं डाॅ. के. एल. जीनगर, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय, भीलवाडा ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्नत बीज के महत्व पर संक्षिप्त जानकारी प्रदान की। कार्यक्रम के अन्त में कृषि विज्ञान केन्द्र, भीलवाड़ा-द्वितीय के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, डाॅ. सी.एम. यादव ने मुख्य अतिथि, मुख्य वक्ता, वैज्ञानिकों एवं किसानों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. लतिका व्यास, प्रोफेसर, प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर ने किया। कार्यक्रम में लगभग 150 कृषकों एवं वैज्ञानिकों ने भाग लिया।