दस माह के मासूम के अपहरण के आरोप में महिला डॉक्टर गिरफ्तार

दस माह के मासूम के अपहरण के आरोप में महिला डॉक्टर गिरफ्तार
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गोरखपुर जिले में चिलुआताल इलाके के महेसरा महुआतर स्थित डिम्स हॉस्पिटल से दस माह के बच्चे का अपहरण वहीं पर काम करने वाली डॉ. अनुपमा अवस्थी ने किया था। संचालक की तहरीर पर केस दर्ज कर पुलिस ने आरोपी डॉक्टर को गिरफ्तार कर लिया।

 आरोपी ने बताया कि कर्मचारी कहते थे कि आपके बच्चे से इसकी शक्ल मिलती है, इस वजह से लेकर चली गई। हालांकि, पुलिस का कहना है कि डॉक्टर की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। महिला अपने नौ महीने के बच्चे और पति को छोड़ चुकी है। आरोपी डॉ. अनुपमा अवस्थी उत्तराखंड के उत्तरकाशी की मूल निवासी है।
 पुलिस के मुताबिक, महुआतर स्थित डिम्स हॉस्पिटल के संचालक राजीव कुमार विश्वकर्मा ने केस दर्ज कराया। बताया कि उनके अस्पताल में अनुपमा अवस्थी पिछले सात माह से कार्यरत थी। आरोप है कि 17 अप्रैल की शाम को राजीव विश्वकर्मा के 10 माह के बच्चे का अपहरण डॉक्टर अनुपमा ने कर लिया। 18 अप्रैल को संचालक व बच्चे के पिता राजीव की तहरीर पर चिलुआताल पुलिस ने महिला डॉक्टर के खिलाफ केस दर्ज किया।
 

 लापता हुए 11 बच्चों का पता नहीं

संचालक ने पुलिस को दी तहरीर में बताया कि डॉक्टर अनुपमा बीएमएस हैं। बच्चे व उस डॉक्टर के गायब होने के बाद जब उन्होंने उसके घर फोन मिलाया तो उनकी मां ने बताया कि अनुपमा अपने पति व नौ माह के बच्चे को छोड़ चुकी है। अनुपमा अपने गांव भी नहीं गई है।

इधर, तलाश में जुटी पुलिस ने डॉ. अनुपमा को गिरफ्तार कर लिया। प्रभारी निरीक्षक चिलुआताल जयंत सिंह ने बताया कि आरोपी का कहना है कि अस्पताल के कर्मचारी बताते थे कि बच्चे की शक्ल उससे मिलती है, इस वजह से उसे लेकर चली गई थी। बातचीत से महिला मानसिक बीमार लग रही है। मामले की विवेचना की जा रही है।
 

 गोरखपुर जिले से 10 साल से कम उम्र के 23 बच्चे लापता हुए थे। इसमें से पुलिस ने 12 बच्चों को बरामद कर लिया, लेकिन 11 बच्चों का पता नहीं चला। यह बच्चे पिछले 1 साल से लापता है, लेकिन कहां है इसका कोई सुराग नहीं लग सका। वही गोरखपुर मंडल के पिछले साल को आंकड़ों को देखा जाए तो 30 अप्रैल 2022 तक कुल 82 बच्चे लापता थे जिसमें से पुलिस ने महज 13 बच्चों को बरामद कर पाई।


मिसिंग सॉफ्टवेयर से नहीं मिली कोई मदद
लापता बच्चों को खोजने के लिए दम मिसिंग चाइल्ड सॉफ्टवेयर का भी पुलिस ने उपयोग किया। प्रदेश स्तर पर बनी इस सॉफ्टवेयर में बच्चों के पहचान को फीड किया गया, लेकिन इससे कोई मदद नहीं मिल पाई है।

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