गच्छाधिपति 103 वर्षीय दौलतसागर सूरीश्वर मसा भी नही रहे

गच्छाधिपति 103 वर्षीय दौलतसागर सूरीश्वर मसा भी नही रहे
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यंू ओझल हो जाना एक जंगम तीर्थ का
     
पूज्य आचार्य विद्यासागर मसा के स्वर्गारोहण की खबर से मन में आए झटकों से उबरे भी नही कि एक ओर खबर से मन से नई तीव्रता वाला भूकम्प टकराया। गच्छाधिपति 103 वर्षीय दौलतसागर सूरीश्वर मसा भी नही रहे। एसे जंगम तीर्थ के अचानक ओझल होने से आंखों के सामने एक शून्यता और अंधेरा छा गया। लेकिन जगनियता के निर्णय को मानने के अलावा कोई विकल्प नही।
याद आ रहा है 13 मार्च 2013 का दिन, जब बापू साहेब ( श्री मिश्रीलाल कुमठ) के अमृत महोत्सव में अपनी निश्रा प्रदान करने पिपलियामंडी आए थे, उनकी सकारात्मक उर्जा से पहली बार रुबरु हुए। चेहरे पर कभी थमकान, निराशा एवं उम्र के बोझ को दूर-दूर तक नही देखा।
मेहसाणा के पास जेतपुर ग्राम में एक पटेल (पाटीदार) परिवर में शंकर पटेल ने  जन्म लिया। वे धन उपार्जन के लक्ष्य के साथ गांव छोड़कर अहमदाबाद एक जैन परिवार में आ गए। घर के धार्मिक माहौल ने शंकर को बहुत प्रभावित किया। प्रतिदिन मंदिर दर्शन, पूजन प्रारंभ हो गई। कुछ समय से ही संसार से विरक्ती के भाव होकर संयम पथ पर चलने का मन बना लिया।
देवेन्द्रसागर मसा के अहमदाबाद चार्तुमास में दीक्षा के भाव जग गए और संयम ग्रहण कर लिया। घर वालों को मालूम पड़ा तो वे शंकर को वापस जेतपुर ले गए, लेकिन दृढ़ संकल्पी शंकर ने अपना निर्णय नही बदला। पुनः अहमदाबाद आ गए और शंकर से जैन मुनि दौलतसागर बन गए।
ज्ञान ध्यान, आराधना को अपना जीवन मंत्र बना लिया। संस्कृत, प्राकृत, न्याय, काव्य आदि विषयों में गहन अध्ययन कर बहुल प्रतिभा के धनी बन गए। जैन आचार संहिता, जैन संविधान जिन्हें जैन आगम कहते है, उन 45 आगमों को कंठस्थ कर ताम्रपत्र पर लिखवाया। आगम रत्न मंजुषा का पुनः मुद्रण करवाया, दिन रात एकाग्रतापूर्वक श्रुत भक्ति करते हुए जिनागमसेवी पद से विशुभित हुए।
उपाध्याय, आचार्य पद के बाद जैन सागरगच्छ के 1000 साधु, साध्वियों के विशाल गच्छ समुदाय के गच्छ नायक बने। साधारण भाषा में राष्ट्रपति बने। पटेल समुदाय के ये पहले आचार्य जो उच्च पद पर पहंुचे। अपने जीवन काल में 37 जिनालयों की प्रतिष्ठा कराई स्वयं के पैतृक गांव जेतपुर में तीन चार्तुमास में कई अजैन बंधुओं ने जैन धर्म स्वीकार किया। पूना के पास कात्रज तीर्थ में ताग्रपत्रों पर आगम उल्लेखित करवाकर मंदिर निर्माण कराया। इसके अलावा नौ नए आगम मंदिरों का निर्माण करवाया। जीवन के अंतिम पड़ाव तक प्रतिदिन सामयिक प्रतिकमण, अन्य धार्मिक क्रियाएं बिना रुके जारी र खी। उनके जोश, उत्साह में कभी कमी नही आई, 103 वर्ष की दीर्घायु पाना उनके आत्मबल को दर्शाता है।
हमें उनके मार्गानुसारी जीवन शैली से सकारात्मक सोच, दृढ संकल्प, दृढ निश्चय की प्रेरणा लेना चाहिए। उनकी वंदनीय और अनुकरणीय जीवन शैली को हृदय से नमन्।
हमें रास्तों की जरुरत नही है,
हमें आपके कदमों के निाां मिल गए है ......

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