धर्म आराधना के लिए हो जाए तैयार, पर्वाधिराज पर्युषण पर्व साधना का श्रेष्ठ समय- साध्वी इन्दुप्रभा

धर्म आराधना के लिए हो जाए तैयार, पर्वाधिराज पर्युषण पर्व साधना का श्रेष्ठ समय- साध्वी इन्दुप्रभा
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भीलवाड़ा। जैनियों के महापर्व पर्वाधिराज पर्युषण के दिन नजदीक आ रहे है। हम इस समय भी धर्म आराधना नहीं कर पाए तो फिर सोचना कि आखिर हम कब धर्म से खुद को जोड़ पाएंगे। कर्मो की निर्जरा करने ओर पाप क्षय करने का श्रेष्ठ समय पर्युषण पर्व है। हम जप, तप, भक्ति चाहे जिस माध्यम से स्वयं को जोड़ते हुए अधिकाधिक धर्म साधना को अपना लक्ष्य बनाए। धर्म की आराधना का श्रेष्ठ समय पर्युषण पर्व है। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में शुक्रवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि 12 से 19 सितम्बर तक पर्युषण पर्व में हम अधिकाधिक तपस्या, सामायिक, जाप, पोषध आदि करने की प्रेरणा दे रहे है। जिनसे जितना धर्म आराधना संभव हो वह करें। स्वयं भी धर्म से जुड़े ओर अन्य स्वधर्मियों को भी जोडऩे का कार्य करें। धर्म से दूसरों को जोडऩे का कार्य करना भी हमारे पुण्यबंध करता है। उन्होंने जैन रामायण से जुड़े विभिन्न प्रसंगों का भी वाचन किया। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि बच्चों से स्नेह व प्यारा करना चाहिए चाहिए लेकिन हमारा प्यारा अंधा नहीं होना चाहिए जो भले-बुर का भेद भी न कर पाए ओर बच्चों को गलत मार्ग पर आगे बढ़ा दे। बच्चें जहां भी गलती करें उन्हें तत्काल पाबंद करें कि ऐसा करना उनके भविष्य के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी इंसान के बारे में आपसे किसी ने कुछ उल्टा-सीधा कह दिया तो एकदम भरोसा नहीं करे बल्कि जिसके बारे में ऐसा कहा गया उससे सीधे बात कर सच्चाई को जान ले। कई बार गलतफहमियां भी इंसान के मध्य दूरी उत्पन्न कर देती है। साध्वीश्री ने 12 सितम्बर से शुरू हो रहे पर्वाधिराज पर्युषण पर्व की तैयारियों में जुट जाने की प्रेरणा देते हुए कहा कि जो जागृत रहकर धर्म आराधना करेगा वह पुण्यार्जन करेगा ओर जो इस समय भी सोते रह गया वह धर्म आराधना से मिलने वाले अनुपम लाभ से वंचित रह जाएगा। धर्मसभा में तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि पर्युषण में आठ दिन धर्म की गंगा प्रवाहित होने वाली है। ये हमारे उपर है कि हम घर बैठे आई गंगा का कितना लाभ उठा पुण्य हासिल कर स्वयं को पावन व निर्मल बना पाते है। चातुर्मास के रूप में हमे जिनवाणी श्रवण करने ओर धर्म साधना करने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है। पर्युषण के आठ दिन सिद्धों की आराधना करने ओर अपनी आत्मा को पवित्र व निर्मल बनाने का सुअवसर है। अधिकाधिक धर्म साधना कर हम अपनी आत्मा को हल्का व पावन बना सकते है। यदि पर्युषण के अवसर का भी हम धर्मसाधना में लाभ नहीं ले पाए तो फिर हम श्रावक कैसे कहलाएंगे। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. एवं तरूण तपस्वी हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा। धर्मसभा का संचालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति द्वारा किया गया। धर्मसभा में भीलवाड़ा शहर एवं आसपास के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे। समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा ने बताया कि चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक हो रहे है। प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप हो रहा है। 
 

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