शादी के सीजन में चमकता सोना, पर खदानों में घट रही है दमक
दुर्लभ पीली धातु इस समय सारी दुनिया को चकाचौंध कर रही है। दुनिया भर के कमॉडिटी मार्केट में इसकी चमक है और न्यूयॉर्क कमॉडिटी एक्सचेंज में तो यह 2,000 डॉलर प्रति औंस की सीमा को तोड़ता हुआ 2,028 डॉलर प्रति औंस पर जा पहुंचा। ऐसे में, कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अगर ऐसे ही हालात रहे, तो अगले साल के अंत तक सोना 2,200 डॉलर प्रति औंस पर जा पहुंचेगा।
भारत में इस समय शादियों का सीजन चल रहा है और सोना 62,287 रुपये प्रति 10 ग्राम है। देश में सोना घरेलू कारणों की तुलना में अंतरराष्ट्रीय कारणों से प्रभावित होता है, क्योंकि अपने यहां सोने का उत्पादन नगण्य है, जबकि किसी जमाने में यहां सोने का उत्पादन सबसे ज्यादा था। कोलार की खानें कभी सोना उगलती थीं। अंग्रेजों ने 121 सालों तक यहीं से सोना लूटा और बेहद कठिन परिस्थितियों में मामूली मजदूरी पर लोगों से काम करवाया। आजादी के बाद सोने का उत्पादन कम हो गया, लेकिन 2001 में यहां सोने का उत्पादन बंद ही हो गया। उसके बाद से भारत पूरी तरह से सोने के आयात पर निर्भर हो गया।
सोने के प्रति भारतीयों के मोह ने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा सोना उत्पादक देश बना दिया। आज देश सालाना औसतन 700 टन सोने का आयात करता है और इसकी वजह से भारत का व्यापार संतुलन गड़बड़ा गया है। कच्चे तेल के बाद हम सोने का ही सबसे ज्यादा आयात करते हैं, जिसका कोई व्यवहारिक उपयोग नहीं है, जबकि चांदी का औद्योगिक उपयोग है। इस साल सोने का आयात घटकर 650 टन होगा, क्योंकि विश्व बाजार में सोना महंगा हो गया है।
अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सोने के मूल्य अमेरिका की आर्थिक नीतियों तथा डॉलर के उतार-चढ़ाव पर कमोबेश निर्भर करते हैं। उत्पादन घटने से तो सोना महंगा हो ही रहा है, जब दुनिया में प्राकृतिक या मानवीय विपदा आती है, तब भी सोने की कीमत बढ़ जाती है। सोना मुसीबत का सच्चा साथी है। इसलिए दुनिया भर के केंद्रीय बैंक अपने पास सोना जमा रखते हैं और जरूरत के हिसाब से बेचते-खरीदते भी हैं।
कोविड महामारी के समय भी सोने की कीमतें चढ़ गई थीं और जब ईरान-अमेरिका युद्ध के कगार पर जा पहुंचे थे, तो भी ऐसा ही हुआ। अभी रूस-यूक्रेन युद्ध और इस्राइल-हमास संघर्ष में भी ऐसा ही हुआ। इसकी कीमतें इन कारणों से बढ़ी हैं। लेकिन एक बड़ा कारण यह है कि अमेरिका में इस समय सरकारी बांडों का मूल्य तेजी से गिर रहा है तो दूसरी ओर डॉलर भी महत्वपूर्ण मुद्राओं के मुकाबले नीचे जा रहा है। डॉलर के गिरने का मतलब यह है कि अन्य महत्वपूर्ण मुद्राएं ऊपर जा रही हैं जिससे उन देशों के निवेशक सोना खरीदते हैं। डॉलर और सोने की कीमतों में सीधा संबंध है और इस समय जैसे-जैसे डॉलर गिर रहा है, सोने के दाम बढ़ रहे हैं।
सोने में बड़े पैमाने पर सट्टा लगता है और अमेरिका की कुछ कंपनियां तो अरबों डॉलर का सट्टा सोने पर लगाती हैं, जिससे इसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव आता रहता है। सोने की खदानों में अब रिजर्व भी घटता जा रहा है। आने वाले समय में अगर नए रिजर्व नहीं मिले, तो सोना अकल्पनीय ऊंचाई पर जा सकता है। इसके अलावा अमेरिकी फेडरल बैंक को यह बात समझ में आ गई है कि महंगाई रोकने के लिए मौद्रिक नीति के इस्तेमाल की अपनी सीमाएं हैं। यानी ब्याज बढ़ाकर महंगाई घटाने का तरीका घिस-पिट गया है, क्योंकि अब मुद्रास्फीति के लक्षण भी बदल गए हैं। अमेरिका में मुद्रास्फीति अब भी ज्यादा है और इस कारण सोने के दाम बढ़ गए हैं, क्योंकि बड़े निवेशक इसमें निवेश कर रहे हैं। पर भविष्य में जब मुद्रास्फीति कम होगी, तो सोने की कीमत भी गिर जाएगी। फिर रूस-यूक्रेन तथा इस्राइल-हमास के बीच चल रहे युद्ध रुकने की संभावना को देखते हुए भी सोने के दाम घटने की उम्मीद है।
अपने यहां पर्व-त्योहारों- जैसे अक्षय तृतीया और दिवाली में सोने की खरीद में तेजी आने से भी उसकी कीमत बढ़ जाती है। फिर चूंकि यहां सोने पर लगभग 17 फीसदी टैक्स है, इस वजह से यह हर देश से महंगा है। महंगा होने के कारण बाजारों में हल्के गहनों की बिक्री ज्यादा है।