पांच चुनावी राज्यों में किस पार्टी के कितने विधायक, पिछले विधानसभा चुनाव से कितने बदले समीकरण?
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो चुका है। सभी पार्टियां चुनाव प्रचार में लग चुकी हैं। कुछ पार्टियों ने कई सीटों पर प्रत्याशियों का एलान भी कर दिया है। इन सबके बीच अगर 2018 के नतीजों के देखें तो कई दिलचल्प आंकड़े दिखाई देते हैं।
आइये जानते हैं 2018 में किस राज्य में किस पार्टी को कितनी सीटें मिली थीं। मौजूदा स्थिति क्या है? किस पार्टी की सीटों में इजाफा हुआ और कैसे हुआ?
चुनावी राज्यों में कुल मिलाकर 679 सीटें
पांच चुनावी राज्यों में कुल 679 सीटें हैं। सबसे ज्यादा 230 सीटें मध्य प्रदेश में हैं। वहीं, राजस्थान में 200 तो तेलंगाना में 119 विधानसभा सीटें हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ में 90 और मिजोरम में 40 विधानसभा सीटें हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में कुल 678 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ था। राजस्थान में एक सीट पर प्रत्याशी के निधन के चलते चुनाव नहीं हो सका था।
सभी 678 सीटों में से सबसे ज्यादा 305 सीटें कांग्रेस को मिली थीं। वहीं, भाजपा के खाते में 199 सीटें आईं थीं। दोनों ही पार्टियों ने सभी पांच राज्यों में चुनाव लड़ा था। सीटों के लिहाज से तीसरे नंबर पर तेलंगाना की टीआरएस रही थी। के चंद्रशेखर राव की पार्टी को 88 सीटों पर जीत मिली थी। टीआरएस ने चुनाव के बाद सत्ता में दोबारा वापसी की थी। इसी तरह मिजोरम में चुनाव जीतने वाली एमएनएफ सीटों के लिहाज से चौथे नंबर पर रही थी। उसी कुल 26 सीटों पर जीत मिली थी।
पांच राज्यों में कुल 26 निर्दलीय भी जीते थे। सबसे ज्यादा 13 निर्दलियों को राजस्थान में जीत मिली थी। बसपा भी दहाई का आंकड़ा छूने में सफल रही थी। उसे तीन राज्यों में कुल 10 सीटों पर जीत मिली थी। इनमें से छह सीटें राजस्थान तो दो-दो सीटें मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की थीं।
2018 के विधानसभा चुनाव में निर्दलियों के अलावा 14 राजनीतिक दलों के प्रत्याशी जीतने में सफल रहे थे। अन्य दलों में एआईएमआईएम को सात, जेसीसी को पांच, रालोप को तीन, टीडीपी, बीटीपी, माकपा को दो-दो और फॉरवर्ड ब्लॉक, सपा और रालोद एक-एक सीट पर जीत दर्ज करने में सफल रहे थे।
राजस्थान के रण में क्याकांग्रेस की सीटें घटीं, भाजपा-टीआरएस और एमएनएफ की बढ़ीं
चुनाव के बाद कहीं दल बदल तो कहीं विधायकों के निधन की वजह से उप-चुनाव हुए। राजस्थान में तो बसपा के सभी छह विधायकों ने विधायक दल को कांग्रेस में शामिल करा लिया। इस वजह से पार्टियों की सीटों में काफी बदलाव हो चुका है। चुनाव घोषणा से पहले तीन राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में एक-एक सीट रिक्त थी।
इस तरह कुल 676 सीटों में से सबसे ज्यादा 285 सीटें कांग्रेस के पास थीं। हालांकि, उसकी सीटों की संख्या में 20 सीटों की गिरावट आई है। बसपा की सीटें भी 10 से घटकर चार रह गईं। वहीं, भाजपा की सीटें 199 से बढ़कर 214 हो गईं। इसी तरह 2018 में 88 सीट जीतने वाली टीआरएस की सीटें बढ़कर 101 हो गईं तो एमएनएफ सीटें 26 से बढ़कर 28 हो गईं हैं। हुआ?
राजस्थान में पिछला विधानसभा चुनाव 28 नवंबर 2018 को संपन्न हुआ था। राज्य में चुनाव नतीजे 11 दिसंबर 2018 को घोषित किए गए थे। अलवर की रामगढ़ सीट छोड़कर बाकी 199 सीटों पर मतदान हुआ। रामगढ़ सीट पर बसपा के प्रत्याशी लक्ष्मण सिंह के निधन के कारण चुनाव स्थगित हो गया था। इस चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी देते हुए 99 सीटें जीतीं।
इसके साथ ही प्रदेश में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन का रिवाज कायम रहा। भाजपा को 73, मायावती की पार्टी बसपा को छह तो अन्य को 20 सीटें मिलीं। कांग्रेस को बहुमत के लिए 101 विधायकों की जरूरत थी। कांग्रेस ने निर्दलियों और अन्य की मदद से जरूरी आंकड़ा जुटा लिया। इसके साथ ही राज्य की सत्ता में वापसी की और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने।
वर्तमान में राजस्थान के सियासी समीकरण की बात करें तो इस वक्त 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 108, भाजपा के 70 और 21 अन्य हैं। वहीं एक सीट रिक्त है।
छत्तीसगढ़ की सियासत कितनी बदली?
2018 में राज्य में दो चरणों मतदान कराए गए थे। पहले चरण का मतदान 12 नवंबर 2018 और दूसरे चरण का मतदान 20 नवंबर 2018 को संपन्न हुआ था। छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजे 11 दिसंबर को आए थे। चुनाव नतीजे आए तो 90 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 68 और भाजपा को 15 सीटें मिलीं। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने पांच सीटें जीते थीं और दो सीटें बसपा के खाते में गई थीं।
इस वक्त 90 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 71, भाजपा के 13, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के तीन और बसपा के दो विधायक हैं।
मध्य प्रदेश में कैसे बदले समीकरण?
मध्यप्रदेश में पिछला विधानसभा चुनाव 28 नवंबर 2018 को हुआ था। चुनाव नतीजे 11 दिसंबर 2018 को आए थे। 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को बहुमत से दो कम 114 सीटें मिलीं थीं। वहीं, भाजपा 109 सीटों पर आ गई। हालांकि, यह भी दिलचस्प था कि भाजपा को 41% वोट मिले जबकि कांग्रेस को 40.9% वोट मिला था। बसपा को दो जबकि अन्य को पांच सीटें मिलीं। नतीजों के बाद कांग्रेस ने बसपा, सपा और अन्य के साथ मिलकर सरकार बनाई। इस तरह से राज्य में 15 साल बाद कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने।
वर्तमान में मध्यप्रदेश के सियासी समीकरण की बात करें तो 230 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 127, कांग्रेस के 96, निर्दलीय चार, दो बसपा और एक समाजवादी पार्टी के विधायक हैं।
तेलंगाना की सियासत में क्या-क्या घटा?
राज्य में पिछले चुनाव सात दिसंबर 2018 को हुए थे। 2018 में राज्य में सात दिसंबर 2018 को चुनाव संपन्न हुआ था। चुनाव नतीजे 11 दिसंबर को आए थे। इस चुनाव में 119 सदस्यीय विधानसभा में बीआरएस को 88, कांग्रेस को 19, आईएमआईएम को सात, टीडीपी को दो, भाजपा को एक, एआईएफबी को एक सीट मिली थी। इसके अलावा एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली थी।
इस वक्त 119 सदस्यीय विधानसभा में बीआरएस के 101, एआईएमआईएम के सात, कांग्रेस के पांच, भाजपा के तीन और एआईएफबी के एक विधायक हैं। एक सीट पर निर्दलीय विधायक है, जबकि एक सीट अभी खाली है।
मिजोरम की राजनीति कैसी रही?
राज्य में पिछले चुनाव 28 नवंबर 2018 को हुए थे। इस चुनाव में 40 सदस्यीय विधानसभा में एमएनएफ को 27 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस ने चार सीटें, जबकि भाजपा को एक सीट पर विजय मिली थी। इसके अलावा आठ सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों को जीत मिली थी। इसके साथ ही राज्य में मुख्यमंत्री जोरमथंगा के नेतृत्व में एमएनएफ की सरकार बनी थी।
मौजूदा राजनीतिक समीकरण देखें तो, इस वक्त 40 सदस्यीय मिजोरम विधानसभा में एमएनएफ के 28, कांग्रेस के पांच, जेडपीएम के एक और भाजपा के एक विधायक हैं। पांच सीट पर निर्दलीय विधायक हैं।