परिंदों के प्रति कितना संवेदनशील है हमारा समाज और सरकार
जापान के टोक्यो शहर में पचास साल का एक टैक्सी ड्राइवर आतुशी ओजावा टैक्सी चला रहा था। अचानक उसे सड़क पर कबूतरों का झुंड दिखाई दिया और उसने झुंड पर टैक्सी चढ़ा दी। नतीजतन एक कबूतर की मौत हो गई। मृत कबूतर का पोस्टमार्टम किया गया और ओजावा का अपराध सिद्ध हो गया। जापान के पशु रक्षा अधिनियम के तहत उसे जेल की सजा मिली। कबूतर को रौंदने का कारण पूछने पर उस ड्राइवर ने बताया कि वह मानता है कि सड़कें सिर्फ मनुष्यों के लिए हैं। पशु-पक्षियों को उनसे दूर रहना चाहिए। ओजावा के कथन से मनुष्यों के उस अहंकार की झलक मिलती है, जिसके कारण वह धरती, आसमान और सभी संसाधनों पर अपना अधिकार जमाता है। यदि मनुष्यों को जीने का अधिकार है, तो दूसरी प्रजातियों को भी जीने का उतना ही अधिकार है।
वैश्विक स्तर पर, पर्यावरणीय मुद्दों के कारण पक्षी प्रजातियों की आबादी में भारी गिरावट आई है। 'स्टेट ऑफ द वर्ल्ड बर्ड्स-2022' की रिपोर्ट के अनुसार, सभी पक्षी प्रजातियों में से लगभग आधी प्रजातियों में गिरावट आई है, आठ में से एक से अधिक प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा है। स्टेट ऑफ द इंडियाज बर्ड्स-2023 रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में पक्षियों की 178 प्रजातियों के संरक्षण के लिए तत्काल उच्च प्राथमिकता, 323 प्रजातियों को मध्यम प्राथमिकता और 441 को निम्न प्राथमिकता की आवश्यकता है। गौरतलब है कि पर्यावरण पर मानवजनित दबाव, जैसे कि कृषि विस्तार और गहनता, अस्थिर कटाई, आक्रामक विदेशी प्रजातियां, और जलवायु परिवर्तन और शिकार के चलते दुनिया भर के पक्षियों की स्थिति लगातार खराब हो रही है।
भारत पक्षियों की 1,350 से अधिक प्रजातियों का घर है। हमारी संस्कृति में पक्षियों का काफी महत्व रहा है। धर्मग्रंथों में विभिन्न पक्षियों को देवी-देवताओं के वाहन के रूप में वर्णित किया गया है। कोयल, मोर, पपीहा, चातक, चकोर, उल्लू, हंस आदि विभिन्न पक्षी प्रजातियों के जिक्र से हमारा साहित्य अटा पड़ा है। पक्षी कीड़े-मकोड़ों को खाकर फसलों को नष्ट होने से बचाते हैं। हमारा राष्ट्रीय पक्षी मोर है, और हर प्रदेश का एक राजकीय पक्षी और पशु भी है, मगर इनके प्रति हमारी संवेदनशीलता में कमी दिखती है।
पक्षियों की अनेक प्रजातियों की संख्या में गिरावट से न केवल जैव-विविधता के लिए संकट पैदा हो गया है, बल्कि मनुष्य का जीवन भी प्रभावित हो रहा है। गौरैया हमारे घर-आंगन में पाई जाती थीं और हमारे घरों में ही घोंसले बनाती थीं। घर-आंगन में बिखरे अन्न के दाने खाकर उनका पेट भर जाता था। लेकिन अब सीमेंट-कंकरीट के घर में गौरैयों के घोंसले के लिए कोई जगह नहीं बची है। बढ़ते मोबाइल टावरों के रेडिएशन से भी पक्षियों की प्रजातियों को नुकसान पहुंचा है। यही नहीं, पतंगबाजी में चीनी मांझे के बढ़ते प्रचलन से भी पक्षी घायल होते और बेमौत मारे जाते हैं। बढ़ती हवाई यात्राओं के कारण भी पक्षियों की जान जाती है। इसके साथ-साथ कीटनाशक भी पक्षियों के बहुत बड़े दुश्मन हैं। कीटनाशकों के कारण इनकी जान तो जाती ही है, अगर जीवित भी रहे, तो इनकी प्रजनन क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। हमारे देश के अनेक समुदायों में पक्षियों के शिकार की कुप्रथा अमानवीय क्रूरता है, जिसे सख्ती और जागरूकता से ही खत्म किया जा सकता है।
हालांकि सरकारों, पक्षी प्रेमियों और धर्मार्थ संस्थाओं की तरफ से पक्षियों के संरक्षण के लिए विभिन्न प्रयास किए जाते हैं, लेकिन सिर्फ इतने से ही काम नहीं चलने वाला है। आम लोगों में पक्षियों के प्रति संवेदनशीलता और पक्षियों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बेहद जरूरी है। पतंगबाजी के मौसम में दिल्ली के चांदनी चौक के जैन अस्पताल में बहुत से घायल पक्षी लाए जाते हैं। भला हो उन दयालु लोगों का जो इन घायल पक्षियों को अस्पताल पहुंचाते हैं। कल्पना कीजिए कि यदि हमारे आस-पास पक्षी न हों, तो दुनिया कितनी बेरंग और बदसूरत लगेगी, जहां उनकी चहचहाहट, मधुर आवाज और उनके विविध आकर्षक रंग न हों। चीन में एक जमाने में पक्षियों को इस कारण नष्ट किया जाने लगा कि वे अनाज खा जाते हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि भारी संख्या में कीड़े-मकोड़े पैदा हुए और अनाज को नष्ट करने लगे। दरअसल प्रकृति की जो एक शृंखला है, उसमें हर एक जीव की हिस्सेदारी है।