दुनिया का नंबर वन लापरवाह आदमी मैं ही हूं..

दुनिया का नंबर वन लापरवाह आदमी मैं ही हूं..
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अगर दुनिया में सबसे अधिक लापरवाह लोगों की सूची बने तो हर पत्नी अपने पति का नाम जरूर लिखवायेगी।

मेरी तो हालत ये है कि श्रीमती जी अड़ सकती है, मेरा नाम सबसे उपर लिखवाने के लिए। उसकी नजर में दुनिया का नंबर वन लापरवाह आदमी मैं ही हूं.. ।

दुनिया में पति कई तरह के होते है, लेकिन पत्नियां सब की सब..  एक जैसी।

औरत और पत्नी में फर्क है.. औरतें भांति भांति की होती है .. लेकिन पत्नी..??
आप किसी भी पति को पूछ लो… सब एक जैसी।

और सबका एक यूनिवर्सल डायलाॅग..  "ये तो मैं हूं जो आपको निभा रही हूं.. दूसरी कोई होती.. तो कभी नहीं टिकती । 

यही बात मां पिताजी को बोलती थी.. काकी ,काका को बोलती है , दीदी जीयाजी को और मामी, मामा को.. दोस्त के घर उसकी पत्नी बोलती है कि "भाईसाहब ..मैं होकर ही इनको झेल रही हूं, दूसरी कोई होती तो… 

तब ये बात स्पष्ट हो गयी कि आज दिन तक किसी भी पत्नी को वो "उचित" पति नहीं मिला, जिसकी वो हकदार थी। 

यूं भले ही आप कह दो कि जोड़ियां भगवान बनाते है .. लेकिन पुराने जमाने में तो बाप दादा ही बनाते थे.. तब ये देखा देखी का कोई सिस्टम था ही नहीं.. एक तरह से लॉटरी सिस्टम था .. शादी के बाद ही पता चलता की मिला क्या है।

वैसे उस दौर में  चेहरा, आंख, नाक और वगैरहा का कोई विशेष महत्व नहीं था.. इनकी कोई स्टेंडर्ड साईज भी तय नहीं थी.. ये सुन्दर ,फून्दर शब्द भी बाद में चले.. जब फिल्मों के गानों में इनका ज़िक्र हुआ.. जैसे.. ये रेशमी जुल्फें, शरबती आंखे… 

और ऐसे गानों के बाद ही फिर हम पतिलोग आंखो में शर्बत ढूंढने लगे।

पहले लोगों को "केवल पत्नी" ही चाहिए थी। अब "दीपिका पादुकोण जैसी पत्नी "
(हो सकता है कि अब और कोई नया नाम आ गया हो, जैेेसे  हमारे टाईम का "हेमा मालिनी" था )

आजकल प्रेम भले ही मिले, ना मिले … पर शादी के लिए लड़की का चेहरा मोहरा, औंठ, आंखे.. मिलीमीटर के पैमाने पर नापे जाते है। जोड़ियां बनाने का बाजार अब ब्यूटीपार्लर वालों के पास है। वे अनोखीबाई को आलियाभट्ट बना सकते है।

खैर.. बात लापरवाही से शुरू हुई और धीरे धीरे आलिया भट्ट की तरफ डायवर्ट हो रही है.. । रिवर्स गियर लगाते है।

हमारे श्रीमतिजी नाराज है और बेटे को बता रही है कि देख.. तेरे पापा इतने लापरवाह है कि कल तीन महिने पुराना चेक,  इनके बेग से निकला.. भले ही चार हजार का था.. पर इतनी भी क्या लापरवाही…. ?

फिर बोली.. दस दिन से कह रही हूँ कि बाथरूम का बल्ब खराब हो गया है.. दूसरा ले आऔ.. रोज बाजार जाते है.. पर रोज भूल जाते है.. 

वो बहुत गुस्से में है… कभी भी बिपरजाॅय में बदल सकती है

माहौल को देखकर मैं किचन में जाकर चाय बनाने की तपेली ढूंढता हूं.. तब वो आकर कहती है.. कि आप रहने दो.. मैं बनाती हूं.. आप सुबह सुबह कुछ लिखते करते हो.. वो कर लो..।

और अभी इस खुशनुमा नम मौसम में श्रीमतिजी चाय के दो कप लेकर उपर आयी तो.. हवा के झौंके में अदरक की महक घुल गयी.. वो आलिया भट्ट से ज्यादा सुन्दर लग रही है। 

बोली.. आज क्या लिखा है..?
मैनें चाय का कप उठाते हुए कहा ..
 " ..ले पढ़ ले ।।
(Kgkadam)

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