उसे अनंत आसमां को पा जाऊंगी
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By - Bhilwara Halchal |18 Jan 2024 10:04 AM GMT
जिंदगी में मुझे सिमटना ही आया
मन था उठो बिखरू और संवरू
जाने फिर क्यों रुक गई
बनकर तुफां सा छा जाऊं
इस गहर इस वितान में कहीं
ज्वाला सी थी कही मन में
दबी सदियों से कहीं
जान आज क्यों
उमंगों का चक्रवात उठा हे कही
चाहती भी इस आलोक में बनकर आभा
फैल जाऊं इस क्षितिज धरा पर कही
जरा सहारा मिला था कल उमड़ी थी
आज पाकर उमींदो की डोरी से
उसे अनंत आसमां को पा जाऊंगी
---संतोष
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