उसे अनंत आसमां को पा जाऊंगी

उसे अनंत आसमां को पा जाऊंगी
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जिंदगी में मुझे सिमटना ही आया
मन था उठो बिखरू और संवरू 
जाने फिर क्यों रुक गई

बनकर तुफां सा छा जाऊं
इस गहर इस वितान में कहीं

ज्वाला सी थी कही मन में 
दबी सदियों से कहीं

जान आज क्यों 
उमंगों का चक्रवात उठा हे कही

चाहती भी इस आलोक में बनकर आभा
फैल जाऊं इस क्षितिज धरा पर कही

जरा सहारा मिला था कल उमड़ी थी

आज पाकर उमींदो की डोरी से

उसे अनंत आसमां को पा जाऊंगी

                                   

                                   ---संतोष

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