इसरो का कोई वैज्ञानिक करोड़पति नहीं, एजेंसी के पूर्व प्रमुख बोले- सादा जीवन जीते हैं साइंटिस्ट

इसरो का कोई वैज्ञानिक करोड़पति नहीं, एजेंसी के पूर्व प्रमुख बोले- सादा जीवन जीते हैं साइंटिस्ट
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चंद्रयान-3 का लैंडर मॉड्यूल (एलएम) कल शाम चंद्रमा की सतह पर उतर गया। इसके साथ ही भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश भी बन गया। पूरी दुनिया इस ऐतिहासिक पल का टकटकी लगाए इंतजार कर रही थी। लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) से युक्त लैंडर मॉड्यूल ने बुधवार शाम छह बजकर चार मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंडिंग की। इस बीच, सफलता से उत्साहित इसरो के पूर्व प्रमुख जी. माधवन नायर ने कहा कि अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिकों ने विकसित देशों के वैज्ञानिकों के पांचवें हिस्से के बराबर वेतन पाकर यह ऐतिहासिक सफलता हासिल की है।

 
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बहुत कम खर्च पर अंतरिक्ष की खोज 
माधवन नायर की मानें तो, इसरो में वैज्ञानिकों के लिए कम वेतन एक कारण है कि वे अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए कम लागत वाले समाधान ढूंढ सके। उन्होंने कहा, 'इसरो में वैज्ञानिकों, तकनीशियनों और अन्य कर्मचारियों को दिया जाने वाला वेतन वैश्विक स्तर पर दिए जाने वाले वेतन का बमुश्किल पांचवां हिस्सा है।' बहुत कम खर्च पर अंतरिक्ष की खोज के इसरो के इतिहास के बारे में बात करते हुए नायर ने कहा कि इससे एक फायदा मिलता है।

इसरो के वैज्ञानिकों में कोई करोड़पति नहीं है
उन्होंने कहा कि इसरो के वैज्ञानिकों में कोई करोड़पति नहीं है और वे हमेशा बहुत सामान्य और संयमित जिंदगी जीते हैं। वे वास्तव में पैसे के बारे में चिंतित नहीं हैं, बल्कि अपने मिशन के प्रति भावुक और समर्पित हैं। इसी तरह हमने अधिक ऊंचाइयां हासिल कीं।


अतीत में जो सीखा उसे अगले मिशन के लिए उपयोग किया
नायर ने कहा कि इसरो के वैज्ञानिक सावधानीपूर्वक योजना और दीर्घकालिक दृष्टिकोण के माध्यम से इसे हासिल कर सकते हैं। हमने अतीत में जो सीखा उसे अगले मिशन के लिए उपयोग किया। वास्तव में हमने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान के लिए लगभग 30 साल पहले जो इंजन विकसित किया था, वही इंजन जीएसएलवी के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि भारत अपने अंतरिक्ष अभियानों के लिए घरेलू तकनीक का उपयोग करता है और इससे उन्हें लागत को काफी कम करने में मदद मिली है। उन्होंने कहा कि भारत के अंतरिक्ष मिशन की लागत अन्य देशों के अंतरिक्ष अभियानों की तुलना में 50 से 60 प्रतिशत कम है। नायर ने कहा कि चंद्रयान-3 की सफलता भारत के ग्रहों की खोज शुरू करने के लिए पहला कदम है और यह एक अच्छी शुरुआत की है।

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