राज्यों में अगर ऐसा हुआ तो 4 वर्ष के लिए होंगे विधानसभा चुनाव, जानें पूरा खेल

राज्यों में अगर ऐसा हुआ तो 4 वर्ष के लिए होंगे विधानसभा चुनाव, जानें पूरा खेल
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पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में गठित कमेटी "एक देश- एक चुनाव" की संभावनाओं पर विचार कर रही है। यदि इसे लागू करने का निर्णय हो भी गया तो लोकसभा और सारे राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ करवाने के लिए निर्वाचन आयोग के पास संसाधन नहीं हैं। जहां तक मेरा अनुमान है कि एक साथ पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव करवाने के लिए भी कम से कम दो साल का समय लगेगा। वजह है बड़ी संख्या में ईवीएम की आवश्यकता। फिलहाल निर्वाचन आयोग के पास उतनी मात्रा में ईवीएम नहीं हैं। अन्य संसाधन भी जुटाने होंगे। इसके अतिरिक्त भी सभी राज्यों की विधानसभा के कार्यकाल में एकरूपता बनाए जाने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ेगी।

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चुनाव आयोग ने स्पष्ट सुझाव दिया है कि यदि किसी राज्य का विधानसभा चुनाव एक-डेढ़ साल पहले हुआ है, तो उसका कार्यकाल बढ़ाकर अगले चुनाव में एक साथ किया जा सकता है और जिनके विधानसभा चुनाव में एक-डेढ़ साल ही बाकी हैं, तो उनका कार्यकाल घटाकर लोकसभा चुनाव के साथ ही करा सकते हैं। ऐसे ही संवैधानिक मामलों में यदि कोई राज्य सरकार भंग कर दी जाती है, तो उस पर भी बहुत स्पष्ट सुझाव दिए गए हैं।

ऐसे मामलों में कहा गया है कि यदि किसी राज्य सरकार ने तीन-साढ़े तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया और उसे भंग कर दिया जाए तो शेष कार्यकाल के लिए सर्वदलीय सरकार गठित होनी चाहिए। यदि इस पर सहमति न बने तो राष्ट्रपति शासन लगाकर कार्यकाल पूरा किया जाना चाहिए। ऐसी कोई सरकार जिसका कार्यकाल तीन- चार साल बचा है, ऐसे मामलों में बचे हुए कार्यकाल के लिए राज्य की विधानसभा का चुनाव कराया जाना चाहिए यानी वह उपचुनाव की तरह होंगे।

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2015 में केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग से पूछा कि क्या एक देश एक चुनाव संभव है, तब आयोग ने सुझाव दिया था कि यदि संविधान में संशोधन हो जाए और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन हो जाए, साथ ही ईवीएम और वीवीपेड के निर्माण और खरीदने के लिए बजट मिले तो यह संभव है। दोनों चुनाव एक साथ होने से राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दलों को कोई नुकसान नहीं है।


हमारे मतदाता बेहद परिपक्व हैं। वह अपनी इच्छाशक्ति से जनप्रतिनिधि चुन लेता है। 2019 में हमने देखा कि लोकसभा चुनाव के साथ उड़ीसा विधानसभा के चुनाव भी हुए। वहां विधानसभा में तीन-चौथाई मत बीजू जनता दल के साथ था, जबकि लोकसभा के लिए भाजपा को चुन लिया। यही हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है। 

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