महाभारत काल से हो रही है यहां शिव जी पूजा, आज PM मोदी करेंगे भव्‍य मंदिर की प्राण-प्रतिष्‍ठा

महाभारत काल से हो रही है यहां शिव जी पूजा, आज PM मोदी करेंगे भव्‍य मंदिर की प्राण-प्रतिष्‍ठा
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अयोध्‍या में राम मंदिर...अबूधाबी में BAPS स्‍वामी मंदिर....संभल में कल्कि धाम और अब गुजरात में वालीनाथ महादेव मंदिर. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भव्‍य मंदिरों के उद्घाटन, प्राण-प्रतिष्‍ठा, शिलान्‍यास का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. 22 फरवरी, गुरुवार यानी कि आज पीएम मोदी वालीनाथ महादेव के नवनर्मित भव्‍य मंदिर में शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्‍ठा करेंगे. इस शिवलिंग की महिमा अपार है. मान्‍यता है कि इसके दर्शन मात्र से भक्‍तों को 12 ज्‍योतिर्लिंग के दर्शन करने जितना फल मिलता है, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. बता दें कि यह वालीनाथ महादेव मंदिर गुजरात में सोमनाथ मंदिर के बाद राज्‍य का दूसरा सबसे बड़ा शिव धाम है. जहां साल में लाखों श्रद्धालू पहुंचते हैं. आज प्राण प्रतिष्‍ठा के मौके पर भी कहा जा रहा है कि 2 से 3 लाख मौजूद रह सकते हैं. इसके अलावा बड़ी संख्‍या में साधु-संत भी प्राण-प्रतिष्‍ठा कार्यक्रम में शामिल होंगे. 

बेहद शुभ मुहूर्त में प्राण प्रतिष्‍ठा  

मेहसाणा स्थित वालीनाथ महादेव के भव्य मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए बेहद शुभ मुहूर्त चुना गया है. 22 फरवरी को गुरु पुष्प नक्षत्र, अमृत सिद्धि योग का बेहद शुभ संयोग बन रहा है. इन शुभ योग में किए गए काम कई गुना ज्‍यादा फल देते हैं. वालीनाथ महादेव मंदिर का निर्माण पुराने मंदिर के स्थान पर किया गया है. इस मंदिर की एक और विशेषता यह है कि पूरे देश के शिव मंदिरों में भगवान शिव के दर्शन शिवलिंग में होते हैं, लेकिन यहां पर उनका स्वयंमुखा मूर्ति भी है.

बेहद भव्‍य है 101 फीट ऊंचा वालीनाथ महादेव मंदिर 

वालीनाथ महादेव मंदिर मेहसाधा के तरभ गांव में स्थित है. वालीनाथ महादेव मंदिर का निर्माण 1.45 लाख घन फीट क्षेत्र में बंसीपहाड़पुर के पत्‍थरों से किया गया है. यह मंदिर प्राचीन नागर शैली में बनाया गया है. मंदिर की भव्‍यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मंदिर की ऊंचाई 101 फीट, लंबाई 265 फीट और चौड़ाई 165 फीट है. यह मंदिर 68 स्तंभों से सुसज्जित है. सोमनाथ मंदिर के बाद गुजरात का यह दूसरा सबसे बड़ा शिव धाम है. इस मंदिर के निर्माण में 14 साल का समय लगा. 

भगवान कृष्‍ण ने की थी शिव प्रतिमा की स्थापना 

पौराणिक कथाओं के साथ महाभारत काल में जब भगवान श्रीकृष्‍ण द्वारका में आकर बसे, तब उन्‍होंने गुजरात में कई स्‍थानों पर यात्रा की. एक बार भगवान श्रीकृष्‍ण ने उत्तरी गुजरात में दरभा (हाल में वालीनाथ मंदिर का क्षेत्र) ठहरे तो उन्होंने वहां गोपियों के साथ भव्य रासलीला रचाई. इस रासलीला में कोई बाहरी व्यक्ति नहीं आ सकता था लेकिन शिव जी को रासलीला के दिव्य दर्शन की इच्छा हुई. तब उन्‍होंने श्रीकृष्‍ण की गोपी बनकर रासलीला में भाग लिया.

भगवान श्रीकृष्‍ण ने शिव जी को पहचान लिया और उनसे अपने मूल रूप में आने का आग्रह किया. तब शिव जी अपने शाश्वत स्वरूप में प्रकट हो गए लेकिन गोपी के रूप में पहनी गई वाली (कान का आभूषण) उनके कानों में रह गया. इस पर भगवान कृष्ण ने उन्हें वालीनाथ कहकर संबोधित किया. कहा जाता है कि इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं यहां महादेव की मूर्ति स्‍थापित की और तब से ही यहां वालीनाथ महादेव की पूजा हो रही है. 

रबारी समाज की है गहरी आस्‍था 

वहीं उत्तर गुजरात के रबारी समुदाय की वालीनाथ महादेव में गहरी आस्था है. इसके पीछे रबारी समुदाय का इस मंदिर से एक खास कनेक्‍शन है. इसके अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण द्वारा मूर्ति स्थापित करने के बाद कई शताब्दियां बीत गईं. तब यह मंदिर पृथ्वी में समाहित हो गया और 900 साल पहले तारभोवन मोयदाव नाम के एक रबारी जब दरभा के जंगलों के पास रूपेन नदी के तट पर गायों को चरा रहे थे. तब पेड़ के नीचे आराम करने के दौरान उन्‍हें इस मंदिर के बारे में एक सपना आया. वहीं पास में उन्‍हें एक संत वीरमगिरि मिले तो उन्‍होंने संत को अपने सपने के बारे में बताया. 

इसके बाद जब उस स्‍थान की खुदाई की गई तो वहां प्राचीन वालीनाथ मंदिर के खंडहर और वालीनाथ महादेव की मूर्ति मिली. तारभोवन रबारी ने वालीनाथ महादेव की उस मूर्ति को वहीं स्थापित कर दिया. फिर रबारी समुदाय ने यहां मंदिर बनवाया और बाद में वह संत वालीनाथ गादी के प्रथम गादीपति महंत वीरमगिरि बापू के नाम से जाने गए. आज भी रबारी समाज के लोगों में वालीनाथ महादेव के प्रति विशेष आस्था है.

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