प्रेम दीवानी मीरा कृष्ण को रिझाने करती थी नृत्य-हरे कृष्ण प्रभु

प्रेम दीवानी मीरा कृष्ण को रिझाने करती थी नृत्य-हरे कृष्ण प्रभु
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चित्तौड़गढ़। चेतन दास महाराज के सानिध्य में आयोजित मीरा मैया मंगल महोत्सव के तृतीय दिवस की शुरुआत गो पूजन से हुई। कथा व्यास हरे कृष्णा प्रभु बावड़ी के बालाजी के दर्शन कर यज्ञशाला की परिक्रमा करते हुए कथा पांडाल में पहुचे। अनूपदास महाराज द्वारा व्यासपीठ का पूजन के पश्चात कार्यक्रम की भूमिका एवं प्रयोजन को संक्षिप्त में बताया गया। महाराज ने सतगुरु की महिमा को बताते हुए सभी को प्रभु के प्रेम की विरहा अग्नि में तप कर अपने जीवन को धन्य बनाने का मार्ग बताया। कथा व्यास हरे कृष्णा प्रभु ने राम नाम के संकीर्तन के साथ मीरा मैया की कथा आरंभ करते हुए बताया कि राम के नाम में कितना सामर्थ्य हैं। राम से भी राम के नाम की महिमा ज्यादा है, राम के नाम से जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। यदि नाम को भाव से लिया जाए। उन्होंने विश्व मंगल कामना की स्तुति के साथ मीरा मैया की कथा शुरू की।   उन्होंने बताया कि जन्माष्टमी को मीरा रात को कृष्ण जन्म से पहले गिरिधर के आगे खूब नाचती है और अपना उलाहना देती हैं कि गिरधर आपने सभी भक्तों की नैया को पार लगाया है तो फिर आप इस दासी को वृंदावन में वास क्यों नहीं देते है। मीरा अपनी सखियों मिथिला चंपा व केसर के साथ नृत्य करते हुए अचेत होकर गिर जाती हैं। आगे के प्रसंग पर हरे कृष्णा प्रभु ने बताया कि जब भी वीरमदेव जी की पत्नी गिरिजा को प्रसव के समय मेवाड़ से भोजराज को बुलावा भेजा और मीरा की शादी की बात चली और यह बात जब मीरा को पता चली तो वह दुखी हुई उसी दौरान जब राव दूदा जी अस्वस्थ हुए तो मीरा को बुलाया और अपने अंतिम समय की बात कही इससे मीरा सहित पूरा परिवार बहुत दुखी हुआ व रोने लगे।  तभी दुदा जी ने अंतिम समय में जयमल व मीरा से सज कर आने को कहा एवं अंतिम इच्छा चारभुजा के दर्शन करने की रखी जिसे मीरा ने अपनी करुण पुकार से दुदा जी को दर्शन करवा दिए एवं उसी समय राव दूदा जी जो मीरा के प्रथम गुरु थे इस लोक को छोड़कर गोलोकधाम चले गए और मीरा बिल्कुल अकेली हो गई। अब वह अपने श्याम कक्ष से बाहर भी आना जाना बहुत कम कर दिया, समय बीतता गया भोजराज जी मेड़ता अपनी बुआ को लेने के लिए आए। धीरे-धीरे जयमल जी से उनकी मित्रता हो गई, 4 दिन बाद जयमल जी को भोजराज जी शाम के समय बाहर निकले और श्याम कुंज से मीरा जी की गिरधर के साथ की विनती को सुना और भोजराज जी ने एकलिंग जी को साक्षी रखकर सौगंध ली कि वह उनकी इच्छा के बिना उन्हें स्पर्श नहीं करेंगे।
 

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