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पुलिसवाला बन जाये तो कई फायदे

पुलिसवाला बन जाये तो कई फायदे

 

निम्नलिखित निबंध उस बच्चे की कॉपी से लिया गया है, जिसने निबंध प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल किया है, निबंध प्रतियोगिता का विषय था- रोजगार।

भारत मूलत: कृषि प्रधान नहीं, पुलिस प्रधान देश है। दिल्ली पुलिस में हाल ही में हुई भर्तियों से साफ हुआ कि कांस्टेबल की पोस्ट पर डेंटिस्ट भरती हुए, वकील भरती हुए, इंजीनियर भरती हुए। वकील भरती हो जाये, पुलिस में, तो कई फायदे हैं। रिश्वतखोर पुलिस वाला हो तो बता सकता है कि इस क्राइम में अंदर जाओगे इतने साल के लिए, चलो यहीं मामला सैटल कर लें। कानून की फलां धारा में इतने लंबे समय के लिए नपोगे। साक्षात‍् वकील साहब पुलिस की ड्रेस में बता रहे हों, तो फिर कौन न मानेगा जी। इंजीनियर बहुत भरती हो रहे हैं पुलिस में, इंजीनियर भरती हो जायें पुलिस में, तो फिर पुलिस और खासतौर पर भ्रष्ट पुलिस का काम बहुत आसान हो जाता है। सिविल इंजीनियर बतौर कांस्टेबल डंडा फटकारते हुए किसी अवैध निर्माण पर पहुंचे तो कुछ इस तरह का संवाद हो सकता है :-

भ्रष्ट निर्माणकर्ता : जी भोत गरीब आदमी हूं, सिर्फ आठ कमरे ही अवैध बना रहा था। भोत गरीब आदमी हूं।

पुलिस कांस्टेबल : अच्छा बेटा हमसे झूठ, हम सिविल इंजीनियर हैं। एक फुट में इतना सीमेंट लगता है। पचास बाय पचास के कमरे, कुल आठ कमरे। इतने तो सीमेंट के ही हो गये। इतने की ईंटें। कुल अवैध निर्माण लागत पचास लाख आयी, निकाल पांच लाख। सिर्फ दस प्रतिशत पर तो मेरा हक बनता है। निकाल।

बीटेक कंप्यूटर साइंस वाले से वह जुआ खिलाने वाला झूठ न बोल सकता है, जो ऑनलाइन जुआ खिलाता है। इस विषय के ज्ञानी पुलिस में आ जायें, तो तकनीकी ज्ञान संपन्न होकर रिश्वत सही तरह से खेंचने में सहूलियत हो जाती है।

पुलिस के धंधे में वकील, इंजीनियर सब आ रहे हैं। इसलिए तो हम कह सकते हैं कि भारत पुलिस प्रधान देश है। प्राइवेट कालेज के इंजीनियरों की जैसी दुर्गति इस देश में हुई है, उसे देखकर हम साफ कह सकते हैं कि कई इंजीनियर तो यह कह उठे हैं कि अगले जन्म में मोहे इंजीनियर ना कीजो। लाखों में ली गयी बीटेक की डिग्री के बाद भी अगर बेरोजगारी ही हाथ आनी है, तो सस्ता काम क्यों न करें और सिर्फ बीए करके बेरोजगार हो जायें।

कुल मिलाकर इस देश में डिग्री अगर रोजगार दिलाने के काम नहीं आ रही है, तो फिर फायदा क्या, फिर तो बंदा चाय बनाना सीख ले और चाय बेचने लगे। यद्यपि इस तरह के चायवाले भी आ गये हैं, जो खुद को एमबीए चायवाला और सीए चायवाला कहते हैं। एमबीए करके भी अगर चाय ही बेचनी थी, तो फिर एमबीए क्यों किया, जी एमबीए इसलिए किया जाता है कि बीस रुपये के आइटम को दो सौ का ऐसे बेचा जाये कि खऱीदने वाला समझे कि चाय नहीं स्टेटस खरीदा है।