375 वर्ष बाद पहली बार देवल से बाहर आयी मूल अणभैवाणीजी, जयकारे के साथ निकाली शोभायात्रा निकाली

375 वर्ष बाद पहली बार देवल से बाहर आयी मूल अणभैवाणीजी, जयकारे के साथ निकाली शोभायात्रा निकाली
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पारोली। अंतरराष्ट्रीय  संत दासोत धाम दांतड़ा पर संतदास महाराज के 274 वे निर्वाण दिवस पर पांच दिवसीय कार्यक्रम का आगाज हुआ।

गाजे बाजे के साथ कलश यात्रा और अणभैवाणीजी की  शोभायात्रा हर्षोल्लास पूर्वक निकाली गई।

 लोगों ने जगह-जगह वाणी जी की पूजा अर्चना कर खुशहाली की कामना की।

आतिशबाजी और पुष्प वर्षा से  शोभायात्रा का स्वागत किया। जयकारों से समूचा क्षेत्र गूंजायमान  हो उठा।

 

 

*375 वर्ष बाद   हस्तलिखित मूल अणभैवाणीजी देवल  से आयी बाहर*

 

दांतड़ा पीठाधीश्वर निर्मल राम महाराज ने बताया कि  संत दास जी महाराज के 274 वे निर्वाण दिवस पर  संत दास जी महाराज द्वारा लिखित मूल  अणभैवाणीजी 375 वर्षों बाद  देवल 

(स्माधि स्थल) से बाहर लायी गई।

अणभैवाणी जी की शोभायात्रा में केवल्य ज्ञान आश्रम काशी के महंत अनुभव दास महाराज भी  इस मौके पर शामिल हुए।

शोभायात्रा के दौरान महिलाओं ने भगवान के भजनों पर  सिर पर कलश धारण कर जमकर नृत्य किया।

शोभायात्रा और कलश यात्रा के समापन के बाद अणभैवाणीजी  को  पीठाधीश्वर निर्मल राम महाराज ने सिर पर धारण कर पुनः देवल में विधि विधान पूर्वक विराजमान करवाया।

इस दरमियान  संतदास जी महाराज तथा  पीठाधीश्वर निर्मल राम महाराज के जयकारों से समुचा क्षेत्र गूंजायमान हो उठा।

 

 

*अणभैवाणी स्वामी जी महाराज की वांग्मय  स्वरूप है*

 

शोभा यात्रा और कलश यात्रा के बाद  प्रवचन हुआ  जिसमे दांतड़ा पीठाधीश्वर निर्मल राम महाराज ने बताया कि अणभैवाणी जी स्वामी जी संत दास महाराज की वांग्मय स्वरूप है जिसमें उनका श्ववासो -श्ववास  स्वास्थ्य भक्ति प्रतीक  हैं जिसमें एक शवास में 70 करोड़ राम नाम उच्चरित होते हैं उसी का अनुभव महाराज ने वाणी में लिखा है।

वही काशी विश्वनाथ कैवल्य ज्ञान आश्रम के महंत अनुभव दास महाराज ने  भक्ति के मार्ग तथा लोगों को राम नाम की महिमा के बारे में बताया।

इस मौके पर ठाकुर महिपाल सिंह, भीम सिंह मेड़तिया, कमलेंद्र सिंह, गोपाल लाल सुवालका, उदयलाल धाकड़ ,ब्रजराज सिंह मेड़तिया, रणजीत सिंह ,रामकिशन धाकड़ गणेशपुरा सहित 

आसपास सहित बड़ी संख्या में  आए ग्रामीण और श्रद्धालु जन मौजूद थे।

 

 *दांतड़ाधाम वर्षों से संत महात्माओं की रही है  तपो स्थली* 

 

अंतर्राष्ट्रीय संत दासोत धाम दांतड़ा वर्षों से संत महात्माओं की तपोस्थली रही है।

यहां 106 वर्ष तक संत दास जी महाराज दातड़ा धाम में विराजे तथा उनके शिष्य कृपाराम जी महाराज 132 वर्ष तक यहां विराजे थे।

1806 में संत दास जी महाराज का निर्वाण हुआ था।

अंतिम संस्कार के समय संत दास जी महाराज की गुदड़ी नहीं जली  थी, तथा  महाराज को भक्ति के दौरान आकाश मार्ग से झोली में आई माला तथा कमंडल जिसमें एक बार भरा हुआ जल कभी खत्म नहीं हुआ।

 आज भी समाधि स्थल पर  सुरक्षित है।।

पीठाधीश्वर निर्मलराम महाराज ने बताया कि 274 वे निर्माण दिवस पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान हर रोज सुबह 7 से 8 बजे तक श्रद्धालुओं को संत दास जी महाराज की गुदड़ी,कमंडल और माला के दर्शन होंगे।

आयोजन को लेकर दिल्ली ,जयपुर, कोलकाता, चित्तौड़ भीलवाड़ा,गुजरात ,मध्य प्रदेश, पंजाब, मेड़ता सिटी, नागौर सहित दूध राजस्थान से श्रद्धालु आयोजन में शामिल होने हेतु पहुंचे हैं।

कार्यक्रम का समापन 3 मार्च को होगा।

 

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