किसी के लिए नहीं.. ये गीत.. पहाड़ो के लिए.. ईश्वर के लिए .. मेरा गिफ्ट
कल, होली पर गांव से शहर आये एक युवा की कहानी लिखी..यहीं फेसबुक पर..
ये मेरा अपना अनुभव था ।शहर का मिजाज गांव से थोड़ा अलग होता है।
एक परिचित ने कॉल किया कि अच्छा लिखा आपने… ऐसे किस्से कहां से लाते हैं आप… ??
सारी की सारी कहानियां, सारे किस्से, कविताएं, नाटक.. सब अपने ही आस पास से, इसी समाज से, इसी दुनिया से ही निकलते है।
जहां सारी दुनिया भाग रही है, एक रचनाकार कुछ ठहरकर इस भगदड़ को आब्जर्व करता है .. फिर अपनी समझ से इस आब्जर्वेशन को किस्से , कहानी, नाटक, चित्र, गीत कविता आदि में बदल देता है।
हर रचनाकार का प्रस्तुतीकरण का अपना तरीका होता है.. उसने जो देखा ,अनुभव किया, कल्पना की.. उसको कितने बेहतर तरीके से एक रचना में बदला जा सकता है।
एक अच्छे रचनाकार के ताने बाने में कई दृष्टिकोण होते है, कई रंग,कई रस, कई स्वाद, कई आयाम होते है।
वहीं कुछ रचनाकार बिना तामझाम, बिना रंग, बिना तड़के- मसाले के ही अपनी रचना में प्रभाव बना देते है।
एक अदद वाद्य यन्त्र भी संगीत का आनंद दे सकता है। बिना चमक दमक वाले कई नाटक दिलों में उतरें है । सिर्फ आड़ी-तिरछी लकिरों से बने चित्रों ने भी लोगों को रोका है।
कल एक मूवी देखी.. "ए याक इन ए क्लासरूम ( हिन्दी में डब थी, अंग्रेजी अपने उपर से निकलती है )
..भूटान की मूवी थी.. शानदार थी।
उसमें एक पहाड़ी लड़की, जो बहुत मीठा गाती है.. पहाड़ी पर बैठकर रोजाना गीत गाती है.. सुनने वाला दूर दूर तक कोई नहीं..।
हमारे जैसे लोग पूछ सकते है.. फिर क्यों गाती है.. किसके लिए गाती है.. किसी ऑडिशन में जाना चाहिए, उस्ताद लोगों को सुनाना चाहिए… बेवजह टाईम खराब कर रही है।
इस फिल्म में भी एक लड़के ने उससे पूछा.. कि ये तुम किसके लिए गाती हो.. ???
उस लडकी ने जवाब दिया.. किसी के लिए नहीं.. ये गीत.. पहाड़ो के लिए.. ईश्वर के लिए .. मेरा गिफ्ट है।
यार कमाल है.. हम तो रचनाएं लोगों के लिए करते है । लाईक्स के लिए करते है। तालियों के लिए करते है.. गाने के लिए गाते है, लिखने के लिए लिखते है। बोलने के लिए बोलते है।
अखबार के लिए खबरें लिखी जाती है। कविसम्मेलन के लिए कविता लिखी जाती है । प्रदर्शनी है इसलिए पेन्टिग बनानी है। श्रोता है इसलिए गीत गाये जा रहे है । .. घर में घुघुंरु है तो नाचेेंंगे , फेसबुक है तो लिखेगें, फोटो डालेगें।
नौकरी चाहिए, सो सब पढ़ रहे है।
हम समझदार समझे जाते है .. हम बेवजह कुछ नही करते। हम रचना भी करने के लिए करते है। दिखाने के लिए करते है । हम टारगेट लेेकर करते है। रचना में भी कोशिश करते है। बनावट करते है। मिलावट करते है।
हम अपने को जिन्दा रखना है। इस चक्कर में रचना का कब दम घुट जाता है.. इसका पता ही नहीं चलता।
जहां कोशिशें, दिखावट, बनावट, या करने का अहंकार हावी रहेगा.. वहां एक खास तरह की भीड़ जरूर तालियां दे देगी..
लेकिन वो पहाड़, और वो ईश्वर.. जो उस लड़की के गीत जैसा गिफ्ट चाहते है.. वो हमेशा खामोश रहेंगे।
(Kgkadam)