राहुल अपने अग्रजो के सावरकर पर विचारों का करें अध्ययन-तावड़े

राहुल अपने अग्रजो के सावरकर पर विचारों का करें अध्ययन-तावड़े
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चित्तौड़गढ़। सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित अखिल भारतीय सावरकर साहित्य सम्मेलन के द्वितीय दिवस के मुख्य अतिथि भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े थे। संस्थान के मीडिया प्रभारी मनोज पारीक ने बताया कि साहित्य सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए तावड़े ने कहा कि सावरकर एक प्रखर देशभक्त, वैज्ञानिक, समाज सुधारक, बुद्धिमान कवि, इतिहासकार, दार्शनिक जैसे अनगिनत विशेषणों से विभूषित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विनायक दामोदर सावरकर जैसे महापुरुष पर राजनीतिक स्वार्थ के चलते कीचड़ उछालने वाले राहुल गांधी को खुद अपने परिवार की तीन पीढ़ियों से आगे के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का बिल्कुल ज्ञान नहीं है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े ने सलाह दी कि सावरकर से नफरत करने वाले राहुल गांधी को पहले इंदिरा गांधी, मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी जैसे कांग्रेस नेताओं के सावरकर पर विचारों का अध्ययन करना चाहिए। अपने भाषण में तावड़े ने स्वतंत्रता सेनानी सावरकर की देशभक्ति के कई उदाहरण देते हुए उनके साहित्यिक पहलुओं की विस्तृत चर्चा की। पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री चंद कृपलानी ने सावरकर जी के इतिहास के बारे में विस्तारपूर्वक बताते हुए सावरकर जी के विचारों को जीवन में अपनाने का आह्वान किया। भाजपा नीति शोध अल्पसंख्यक समाज राष्ट्रीय प्रभारी जाफरीन महजबीन ने संबोधित करते हुए कहा कि सावरकर जी के 4 हजार दिन कारावास में रहने के बाद भी उनका दर्शन एवं दूरदर्शिता में समाज के ब्रिटिश अंधकारों को  भुगते हुए लोगों को मार्गदर्शन कराते थे। वे छुआछूत जातिवाद के विरोध में जनजागृति जगाते थे। अजमेर विधायक एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री वासुदेव देवनानी ने संबोधित करते हुए कहा कि सावरकर का भारत की आजादी की लड़ाई में विशिष्ट योगदान रहा है। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उन्हें काला पानी की सजा हुई। अपनी विचारधारा के साथ उन्होंने कोई समझौता नहीं किया और देश के लिए आजीवन समर्पित रहे। वे भारत के पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सन् 1905 के बंग-भंग के बाद सन् 1906 में स्वदेशी का नारा दिया और विदेशी कपड़ों की होली जलाई। वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्हें अपने विचारों के कारण बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी। वे पहले भारतीय थे जिन्होंने पूर्ण स्वतन्त्रता की मांग की। उन्होंने कहा कि इतिहास इसलिए पढ़ाया जाता है ताकि नई पीढ़ी को प्रेरणा मिले व सही जानकारी मिले ताकि युवा देश के विकास एवं राष्ट्र निर्माण के भागीदार बन सकें। इस दौरान संस्थान अध्यक्ष भिकू दादा ईदातें, रविंद्र साठे, लोकेश त्रिपाठी, समिति अध्यक्ष अनिल सिसोदिया, रणजीत सिंह भाटी, सुशील शर्मा, डॉ रमेश बोरीवाल, हरीश ईनाणी, राजेश भट्ट, गोपाल चरण सिसोदिया, विजय पारीक, रश्मि सक्सेना मंचासीन थे। संजीव तिवारी ने प्रस्ताव का वाचन किया जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया। संचालन श्रवण सिंह राव ने किया। इस दौरान बद्री लाल जाट, सागर सोनी, रघु शर्मा, शेखर शर्मा, परमजीत सिंह, विनोद चपलोत, कैलाश गुजर, गोवर्धन जाट, रामप्रसाद बघेरवाल, चेतन गौड, विश्वनाथ टांक, राजन माली, भोलाराम प्रजापत, चन्द्रशेखर सोनी, विनित तिवारी, नीलेश नीलमणि, सी पी न्याति आदि उपस्तिथ थे।
 

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