सामायिक का अर्थ है समता की साधना: साध्वी कमलप्रभा

आसींद BHN
सामायिक जैन धर्म में उपासना का एक तरीका है । दो घड़ी अर्थात 48 मिनट तक समता पूर्वक शांत होकर किया जाने वाला धर्म ध्यान ही सामायिक है।
जैन आगमो में वर्णन है कि चाहे गृहस्थ हो या साधु सामायिक सभी के लिए आवश्यक है। सामायिक हमे अपने जुनून और इच्छाओं को शुद्ध करने में मदद करती हैं । सामायिक में रहते हुए नवकार मंत्र का पाठ ,धर्म ग्रंथ का अध्ययन, ध्यान, तीर्थकरो व धर्म का चिंतन आदि करते हैं। उक्त विचार मरुधरा ज्योति कमल प्रभा ने महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।साध्वी ने कहा कि सामायिक का कोई मोल नहीं है यह अनमोल है ।इसे खरीदा नहीं जा सकता है ।यह तो आत्ममंथन है ।आत्मा में रमण करना समता पूर्वक पाप का त्याग करना ही सामायिक है ।सामायिक 48 मिनट का टाइम पास नही होकर जीव को संसार से संयम, देह से विदेह, नूतन शरीर और आत्मा के बीच भेद विज्ञान को समझने का अवसर है। हमारी आत्मा अनंत काल से विभाव में रमण कर रही हैं उसे स्वभाव में लाने की साधना सामायिक है।सामायिक करने वाले श्रावक श्राविका पुण्य शाली होते हैं। साध्वी लब्धिप्रभा ने कहा कि कृतज्ञता को अपनाए बिना जीवन का निर्माण नही हो सकता है। कर्म किसी को नही छोड़ते है , कर्मो को भुगतना ही पड़ता है। परमात्मा को भी कर्म भुगतने पड़े थे। मनुष्य भव सबसे श्रेष्ठ है इस भव को व्यर्थ में नही खोए अधिक से अधिक धर्म में लगाकर अपनी आत्मा को परमात्मा की और लेकर जावे।