श्री भागवत महापुराण कथा पुरी अन्न दान-महादान संत दिग्विजय _राम जी 

श्री भागवत महापुराण कथा पुरी अन्न दान-महादान संत दिग्विजय _राम जी 
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भीलवाड़ा अन्नदान का अर्थ है किसी व्यक्ति को प्राण दान देना  l  जब भूख लगती है तो राजा हो या रंक सभी की स्थिति एक जैसी होती है अतः शास्त्र में   अन्न  दान को  महा दान बताया गया है l कानों से कथा ,आंखों से दर्शन, जिह्वा से नाम लेते हुए अपने हाथ से दान कर लेना चाहिए l इस कलयुग में धर्म के चार चरण बताए हैं सत्य, दया, तप  और दान l  गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी दान की प्रधानता बताई है l अपने हाथ से दिया गया दान व्यक्ति का कल्याण करता है  ,अन्न दान का अर्थ है किसी को प्राण दान देना l  जीवन में किए गए पाप पुण्य ही व्यक्ति के साथ जाते हैं  l जिसे  व्यक्ति  ने  जीवन में भगवत नाम नहीं लिया और सेवा यानी परोपकार नहीं किया तो वह व्यक्ति पशु समान है ,दुनिया में पेट तो जानवर भी  भरतl  है वह भी भूखा नहीं सोता l  वेदों में कहा गया है कि मानव जीवन में कल्याण चाहते हैं तो भगवत नाम व परोपकार करना चाहिए l  संपत्ति  पाकर आप खुश होते हैं लेकिन सच्ची खुशी तभी होती है जब आप किसी भूखे की भूख मिटाते हैं l आज दुनिया में सबसे बड़ी समस्या यह है कि व्यक्ति सोचता है कि लोग क्या कहेंगे  , राम-राम मुख से करते रहो और अन्य परोपकार करते रहो जिससे लोक वह परलोक दोनों ही सुधर जाएंगे  l धर्म करने के साथ-साथ स्थान भी देखना चाहिएl  हर कोई चाहता है कि मैं धनवान  बनूँ लेकिन शास्त्र कहते हैं धर्म बढ़े तो धन बढें,धन बढ़े तो मन बढ़ जाए माया वाले माला  वालो के पीछे भागते हैं और आज व्यक्ति संपत्ति का चौकीदार तो बन रहा है लेकिन वह उसका मालिक नहीं बन पाता जीवन में व्यक्ति कई काम करके पछताते हैं परंतु कभी दान देकर उसको पश्चाताप नहीं होता लेकिन यह भी सत्य है कि प्रभु जिसे चाहते हैं वही व्यक्ति दान कर सकता हैl  यह संसार एक रंग मंच है जहां हर व्यक्ति अपना किरदार निभा कर चला जाता है अतः जीवन को सत्कर्म में लगाकर पुण्य अर्जन करना चाहिए व्यक्ति में नम्रता होनी चाहिए l  जीवन एक राख का ढेर है चाहे वह धनी व्यक्ति की हो या भिखारी की दोनों में कोई अंतर नहीं है यही आदमी की औकात है व्यक्ति अपने लिए कम और अपनों के लिए ज्यादा करता है जीवन में अहंकार नहीं करना चाहिए अतः ईश्वर की भक्ति करें वह अभियान से दूर रहें संसार में " मैं" ही  श्रेष्ठ हूं यही भाव आपसी संबंधों को खराब करता हैl  संत -शब्द व श्रुतक का मेल करते हैं भगवान की लीलाएं श्रवणीय है अनुकरणीय नहीं अतः भगवान ने जो उपदेश दिए हैं उनका अनुकरण करना चाहिए भगवत कृपा ही व्यक्ति को भक्ति मार्ग पर अग्रसर करती है संसार में ज्ञानी ,अज्ञानी को समझाया जा सकता है लेकिन अभिमानी व्यक्ति को नहीं समझाया जा सकता अभियान से जीवन पतन की ओर अग्रसर होता है और नम्रता से जीवन में आनंद आ जाता है अकड़ना तो मर्दों की पहचान है झुकता वही है जो जीवित होता है l जीव जब जन्म लेता है तो सभी कार्य दूसरे ही करते हैं और जब मरता है तब भी सभी कार्य दूसरे ही करते हैं तो अहंकार किस बात का समय चक्र के साथ सब बदल जाता है अतः व्यक्ति को कभी अहंकार नहीं करना चाहिए  यह जीवन एक ओस की बूंद की तरह है जो क्षण में समाप्त हो जाती हैं इस तरह यह जीवन क्षणभंगुर है जीव के साथ कुछ नहीं जाता केवल उसके द्वारा किए गए सत्कर्म ही उसके साथ जाते हैं इस संसार का हर प्राणी अपने जीवन में आनंद चाहता है उसी की प्राप्ति में वह दिन-रात दौड़ता है व्यक्ति जब अपने आप को छोटा मानता है तब उसमें दासत्व भाव जागृत होता है हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि हम अपना कर्म करते रहें जीवन में जो कार्य करें वह पूर्ण समर्पण के साथ करना चाहिए आज कथा प्रसंग में भगवान का  गोपिकाओं के साथ रासलीला कंस वध एवं रुक्मणी विवाह का प्रसंग बताया गया l

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