सोशल मीडिया : सुप्रीम कोर्ट का साफ संदेश-बिना सोचे समझे पोस्ट कर रहे तो अपने किए का नतीजा भी भुगतना होगा
सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर अभद्र और अपमानजनक पोस्ट करने और उसे शेयर करने वालों को कड़ा संदेश दिया है। तमिल एक्टर व पूर्व विधायक एस वे शेखर के एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस प्रशांत कुमार की बेंच ने कहा कि सोशल मीडिया पर अपमानजनक पोस्ट करने वालों को सजा मिलनी जरूरी है। ऐसे लोग माफी मांगकर आपराधिक कार्यवाही से नहीं बच सकते हैं। उन्हें अपने किए का नतीजा भुगतना होगा।
दरसअल, तमिल एक्टर और पूर्व विधायक एस वे शेखर ने 2018 में एक फेसबुक पोस्ट शेयर किया था। पोस्ट महिला पत्रकारों को टारगेट करने वाला था। एक महिला पत्रकार ने तमिलनाडु के तत्कालीन गवर्नर बनवारी लाल पुरोहित पर अभद्रता का आरोप लगाया था। शेखर ने इसी पर अपनी राय दी थी। इस मामले में काफी हंगामा मचा था। हालांकि, बाद में शेखर ने माफी मांग ली थी। पोस्ट डिलीट करने के बाद भी उनके खिलाफ तमिलनाडु में केस दर्ज हुआ था।
कोर्ट ने किया राहत देने से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने एस वे शेखर को किसी प्रकार से राहत देने से इनकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया। बेंच ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से कहा कि अगर कोई सोशल मीडिया का उपयोग करता है तो उसे इसके प्रभाव और पहुंच के बारे में अधिक सावधान रहना चाहिए। सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते समय सावधानी बरतनी होगी। अगर किसी को सोशल मीडिया का इस्तेमाल जरूरी लगता है तो उसे परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। शेखर के वकील ने कहा कि घटना के दिन शेखर ने अपनी आंखों में कुछ दवा डाल ली थी जिसके कारण वह अपने द्वारा साझा की गई पोस्ट की सामग्री को नहीं पढ़ सके थे।
हाईकोर्ट भी दे चुका है नसीहत
तमिलनाडु हाईकोर्ट ने भी शेखर की पोस्ट पर नसीहत दी थी। शेखर पर चेन्नई पुलिस ने केस दर्ज करने के साथ राज्य के विभिन्न थानों में भी निजी शिकायतें दर्ज कराई गई थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता के फेसबुक अकाउंट से 19 अप्रैल 2018 को भेजे गए मैसेज की सामग्री को ध्यान से पढ़ने पर महिला पत्रकारों की छवि खराब होती है। यह अदालत याचिकाकर्ता द्वारा भेजे गए संदेश का अनुवाद करने में भी बहुत झिझक रही है। यह घृणित है। पोस्ट पूरे तमिलनाडु में प्रेस के खिलाफ अत्यधिक अपमानजनक है। हाईकोर्ट ने कहा कि हम एक ऐसे युग में रहते हैं जहां सोशल मीडिया ने दुनिया के हर व्यक्ति के जीवन पर कब्जा कर लिया है। सोशल मीडिया पर भेजा/फॉरवर्ड किया गया एक संदेश कुछ ही समय में दुनिया के कोने-कोने तक पहुंच सकता है। याचिकाकर्ता के कद को देखते हुए उनसे बयान देते समय या संदेश अग्रेषित करते समय अधिक जिम्मेदार होने की उम्मीद है। सोशल मीडिया पर भेजा या अग्रेषित किया गया संदेश एक तीर की तरह है जिसे पहले ही धनुष से निकाला जा चुका है।