सीबीआई जांच करने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप से उच्चतम न्यायालय का इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने पार्किंग ठेका देने की सीबीआई जांच के निर्देश देने वाले उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने राज्य सरकार की याचिका पर हैरानी जताई। सीबीआई जांच के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका राज्य के सिंचाई विभाग से जुड़ी है। हाईकोर्ट ने पार्किंग ठेका दिये जाने की जांच सीबीआई से कराए जाने का निर्देश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट को निष्पक्ष सीबीआई जांच का भरोसा
उत्तराखंड उच्च न्यायालय के उक्त आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की तरफ से दायर अपील को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा, ''हम समझते हैं कि ठेकेदार अदालत में आ रहा है, लेकिन हमें आश्चर्य है कि राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर की है। अदालत को यकीन है कि सीबीआई उच्च न्यायालय की पीठ से पारित कथित विवादित आदेश में की गई अस्थायी टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना निष्पक्ष तरीके से जांच करेगी।''
हाईकोर्ट के आदेश में सीबीआई पर सख्त टिप्पणियां
शीर्ष अदालत ने कहा, सॉलिसिटर जनरल और याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील की दलीलों को सुनने के बाद, अदालत ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के माध्यम से पार्किंग ठेका मामले की जांच के निर्देश देने वाले आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "यह स्पष्ट है कि हाईकोर्ट के आदेश में की गई कथित विवादित टिप्पणियां इस निष्कर्ष पर पहुंचने के सीमित उद्देश्यों के लिए हैं कि सीबीआई के माध्यम से जांच की जरूरत है। इसे गुण-दोष के आधार पर उच्च न्यायालय की तरफ से दर्ज किए गए निष्कर्षों के रूप में नहीं समझा जाएगा।" इस मामले में राज्य सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए।
पार्किंग ठेका रद्द करने करने पर क्या बोली अदालत?
शीर्ष अदालत उत्तराखंड सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें उच्च न्यायालय के 20 अक्तूबर, 2023 के आदेश को चुनौती दी गई थी। इसमें सिंचाई विभाग की तरफ से दिए गए पार्किंग अनुबंध को रद्द कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि अनुबंध अवैध था और निविदा शर्तों के विपरीत था।
सीबीआई जांच को लेकर हाईकोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट का यह आदेश उस याचिका पर आया था, जिसमें हरिद्वार में सरकारी जमीन पर एक व्यक्ति को पार्किंग का ठेका दिए जाने को चुनौती दी गई थी। पहले चरण में 400 दिनों के लिए और उसके बाद दूसरे चरण में 229 दिनों के लिए पार्किंग ठेका दिया गया था। कुल 629 दिनों के लिए निविदा की शर्तों से विचलन का हवाला देकर इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की गई। दलीलों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा, "अदालत का विचार है कि संबंधित अधिकारियों के आचरण, जो सगे भाइयों के स्वामित्व वाली दो फर्मों के साथ मिले हुए लगते हैं और उक्त दोनों फर्मों की भूमिका की जांच सीबीआई जैसी स्वतंत्र जांच एजेंसी द्वारा की जानी चाहिए।"
"सुप्रीम कोर्ट क्रॉनिकल" के पन्नों पर क्या प्रकाशित होगा
दिन के एक अन्य बड़े घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने देश की सबसे बड़ी अदालत में हो रहे कानूनी कामकाज और न्यायालय की उपलब्धियों को दिखाने के लिए अनोखी पहल शुरू की है। अदालती कामकाज के बारे में जानकारी देने के लिए मासिक समाचार पत्र लॉन्च किया गया है। प्रकाशन की घोषणा करते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट क्रॉनिकल" के पन्नों की मदद से न्यायालय के इतिहास, देश के कानूनी परिदृश्य को परिभाषित करने वाले प्रमुख निर्णयों के अवलोकन और उल्लेखनीय व्यक्तियों की कहानियों की झलक पाई जा सकती है। इसमें उन लोगों के योगदान भी बताए जाएंगे जिन्होंने एक संस्था के रूप में सुप्रीम कोर्ट के वादे को साकार करने के लिए दिन-रात काम किया है।
पारदर्शिता, जुड़ाव और प्रगति का एक नया युग...
चीफ जस्टिस ने भरोसा जताया और कहा, "मुझे विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट क्रॉनिकल सुप्रीम कोर्ट के कामकाज के बारे में जानकारी का एक प्रमुख स्रोत बनेगा। इसके पाठक अदालत के भीतर और बाहर हो रही अदालती गतिविधियों से अपडेट रहेंगे। पाठकों को न्यायालय की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए किए जा रहे निरंतर प्रयासों के बारे में भी बताया जाएगा। सीजेआई ने इस नई शुरुआत को न्यायालय के लिए पारदर्शिता, जुड़ाव और प्रगति के एक नए युग का भी प्रतीक करार दिया।