आखा तीज पर परणने के लिये तैयार टाबर

आखा तीज पर परणने के लिये तैयार टाबर
X


चित्तौड़गढ़। अक्षय तृतीया व देवोत्थापन एकादशी को अबूझ सावों के चलते वर्षो से चली आ रही बाल विवाह की कूप्रथा आज भी प्रचलित है। एक ओर जिला प्रशासन, विधिक सेवा प्राधिकरण और विभिन्न संस्थाओं द्वारा ढोल पीट-पीट कर बाल विवाह को रोकने की फोरी तैयारियां तो की जाती है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के लोग तू डाल-डाल मैं पात-पात की कहावत को चरितार्थ करते हुए प्रशासन को अंगूठा दिखाकर चोरी छीपे ही सही निर्धारित तिथी के आगे पीछे कही भी जाकर बाल विवाह करने से नहीं चूक रहे है। हर वर्ष ऐसे मौके पर प्रशासनिक स्तर पर जन जागरण के साथ ही व्यापक स्तर पर भले ही तैयारियां की जाती रही हो लेकिन यह कूप्रथा आज भी जस की तस है। इसी के चलते इन दिनों जिला मुख्यालय के बाजारों मंे नन्हे टाबर बींद बनते नजर आने लगे है। यह सही है कि बाल विवाह एक कूप्रथा है, लेकिन ग्रामीण लोग नन्हे बच्चों को विवाह सूत्र में बांधकर अपने कर्तव्य की समय रहते इतिश्री करना चाहते है, वही दूसरी ओर नाबालिग दूल्हे-दुल्हन दामपत्य जीवन से बेखबर होने के बावजूद खेल-खेल में परिणय सूत्र में बंध जाते है, लेकिन यही बाल विवाह उनके लिये जीवन का दंश बन जाता है। सरकारी तौर पर बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के तहत बाल विवाह करने पर आयोजक सहित समस्त भागीदारों के लिये कानूनी तौर पर सजा एंव जुर्माने का प्रावधान तो है, लेकिन बाल विवाह की सूचना मिलने पर कानूनी कार्यवाही के बजाय आपसी समझाईश के साथ भले ही बाल विवाह को रोकने की कवायद के नमूने देखने को मिल जाये लेकिन दूर दराज के ग्रामीण अंचलों में होने वाले बाल विवाह की तैयांरियो बदस्तूर जोरों से जारी है। देखना यह है कि प्रशासन अपने स्तर पर इस वर्ष कितने बाल विवाह को रोक पाता है। 
 

Next Story