प्रकृति को परमात्मा का स्वरूप मानकर संरक्षण का संकल्प ले-स्वामी सुदर्शनाचार्य

प्रकृति को परमात्मा का स्वरूप मानकर संरक्षण का संकल्प ले-स्वामी सुदर्शनाचार्य
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चितौड़गढ़। स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज ने कहा कि संपूर्ण श्रष्ठी परमात्मा की क्रीड़ा स्थली है, जहां जो कुछ भी उपलब्ध है, वह परमात्मा का स्वरूप है। ऐसी स्थिति में प्रकृति को परमात्मा का रूप मानते हुए प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण के संरक्षक का दृढ़ संकल्प करना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक वृक्ष लगाने से हजारों जीव पलते है, वहीं ऋषि मुनियों ने भी ऑक्सीजन देने वाले वृक्षों को पूजनीय निरूपित किया था। उन्होंने बताया कि समूचे विश्व में केवल भारतीय संस्कृति में ही माँ को गुरू से भी उंचा स्थान दिया गया है। वहीं गाय की महिमा बताते हुए उन्होंने कहा कि समस्त प्राणियों में केवल गौवत्स ही ऐसा जीव है, जो जन्मते ही माँ शब्द का उच्चारण करता है। स्वामी सुदर्शनाचार्य अष्टादश कल्याण महाकुंभ के तृतीय दिवस वाल्मिकी कथा मंडप में व्यासपीठ से श्रीराम चरित्र का विस्तृत वर्णन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जो संसार के रोते हुए प्राणियों को हसा दे वहीं राम है। उन्होंने राम शब्द का विस्तार करते हुए कहा कि राम जी के नाम को अंगीकार करने से जीवन के पापों से सहज मुक्ति मिल जाती है, लेकिन राम जी के महत्व को देव दावन एवं मानव सभी मानते थे, क्योंकि रामायण के 1 करोड़ रामायण राम का स्वरूप यहीं था, तब सभी ने मिलकर भगवान आशुतोष से इसका बंटवारा चाहा, तो उन्होंने कहा कि राम को जानों, पहचानों मानों और उनके बन जावों,तथापि उन्होंने 33-33 लाख के बाद 33-33 हजार और उसके बाद भी शेष 32 शब्द में से 10-10 का वितरण कर मात्र 2 अक्षर राम को अपने आराध्य के रूप में स्वयं ने रख लिया। उन्होंने महर्षि वाल्मिकी के जीवनवृत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भले ही उन्होंने माँ जानकी के प्रसंग में शपथ पूर्वक सत्य का वर्णन किया हो, तथापि स्कन्द पुराण में उन्हें रत्नाकर नाम देकर एक डाकू से ऋषि बनने की महत्ता को दर्शाया गया है। तमसा नदी तट पर अपनी खुटियां में सप्त ऋषियों के आशीर्वाद के बाद महर्षि नारद और स्वयं ब्रह्माजी के आगमन पर आशीर्वाद लेकर वाल्मिकी रामायण की रचना की। उन्होंने श्रीराम एवं कृष्ण को करूणानिधि निरूपित करते हुए कहा कि राम ने जटायु के साथ व कृष्ण ने सुदामा के साथ की गई करूणा का वर्णन अन्तर्मन को छूने वाला है। महर्षि वाल्मिकी ने प्रभु श्रीराम को प्रजा रंजन तथा मर्यादा पुरूषोत्तम क रूप में लेखनीबद्ध करते हुए ब्रह्मा जी के आशीर्वाद से अपनी रचना में जो कुछ भी लिखा उसे श्रीराम ने भी अक्षरशरू प्रकट कर वाल्मिकी की रचना को साकार कर दिया।
धूमधाम से मनाया श्रीराम जन्मोत्सव
ठाकुर जी के मंदिर से जब मात्र एक माह के शिशु को फूलों की टोकरी में श्रीराम के बालस्वरूप के रूप में कथा मंच पर लाया गया, तो व्यासपीठ पर विराजित स्वामी सुदर्शनाचार्य जी ने भी राम स्वरूप के दर्शन कर इस दृश्य को समस्त भक्तों के लिए आलौकिक रूप में बताते हुए कहा कि अनुज शेषावतारजी ने अग्रज श्रीराम जी को कथा मंडप में भेजकर समूचे वातावरण को राममयी बना दिया। इसी दौर में लवकुश द्वारा श्रीराम कथा वर्णन का वहक्षण प्रकट हुआ, जब मंच पर अयोध्या नरेश राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में श्रीराम के प्राकट्य की घड़ी आई, ऐसे पावन अवसर पर समूचा कथा मंडप अयोध्या नगरी बन गया और हर कोई राम जन्म की बधाईयां देते एवं उपहार लेते नजर आए। इसी दौरान पंडित प्रहलादकृष्ण द्वारा भये प्रकट कृपाला, दीन दयाला कौशल्या इतकारी भजन की अनुभूंज के साथ चहूं ओर राम जन्मोत्सव का आनन्दोत्सव में प्रकट हो गया।
श्रीनाथ स्वरूप में मन मोहक झांकी के साथ धराया छप्पनभोग 
कल्याण महाकुंभ के तृतीय दिवस कल्याण नगरी के राजाधिराज ठाकुर जी का रत्नजड़ित श्रीनाथ स्वरूप में दर्शन श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र रहा। सतरंगी फूलों के बीच सजी धजी झांकी को हर कल्याण भक्त अपलक निहार कर स्व्यं को धन्य करता नजर आया। इसके साथ ही ठाकुंर जी को नैवेध्य के रूप में भी श्रीनाथ जी को अर्पित किए जाने वाले महाप्रसाद के नानाविध मिष्ठान छप्पन भोग के रूप में न्यौछावर किए गए। महाकुंभ के दौरान प्रतिदिन विभिन्न प्रकार के छप्पन भोगों की झांकी भक्तों के लिए मनमोहक एवं आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। 

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