लिजिए.. खबर आ गयी......
लिजिए.. खबर आ गयी कि भीलवाड़ा शहर में आर्ट गैलरी बनाने से मना कर दिया ठेकेदार ने...
कोई आश्चर्य नहीं। क्योंकि इसका टेंडर होने के बावजूद कलाकार लोग तो आशंकित ही थे कि ये आर्ट गैलरी बनेगी।
सब जानते है इस शहर की पाॅलिटिक्स को। यहां के नैताऔ को। यहां के प्रशासन को । इस शहर को। समाज को। उद्योगपतियों को..
अगर ये लोग चाहते तो कोई नहीं रोक सकता...लेकिन इनको भी क्या जरूरत...
इस शहर में (अधिकांश शहरों में) कला से हजार गुना ज्यादा महत्व राजनिती का होता है। राजनीति की आग में ऐसी कई कलादीर्घाएं भस्म हुई है।
ठीक है, सब बोलते जरूर है कि कला समाज का दर्पण है। कलाकार सृजनशील है, नयी दिशा देते है... ये सब मगर एक भाषणबाजी है। जमीनी तौर पर कलाकार है तो एक आम आदमी ही ...
और आम आदमी की क्या औकात होती है, सब जानते ही है। कोई छोटा सा काम भी हो... तो ना नेता सुनते है, ना प्रशासन...
और यहां ये टूटी चप्पल, फटे कुर्ते वाले आम लोग जिनके पास दस वोट तक नहीं, आर्ट गैलरी की मांग कर रहे है...
मुंगेरी लाल के हसीन सपने।
खामखां हल्ला मचा रखा था कि आर्ट गैलरी चाहिए..
किसमें चाहिए भाई ...? क्यों चाहिए ..
कला को लोग तमाशा समझते है और जब लोगों को तमाशा ही देखना है तो तुम्हारा क्यों देखेंगे ? शहर में दो दो सिनेमा है। आये दिन मेले लगते है। आये दिन भव्य आयोजन होते रहते है। नाचने वाले आते है मुम्बई से। वो ठुमके देखेगें।
मजा तो वहां है।
बहरहाल.. मां सरस्वती की कृपा से शहर के सभी कलाकार जीवन व्यापन कर ही रहे है। और अच्छे से कर रहे है। आर्ट गैलरी ना बनेगी। तो भी जिन्दा रहेंगे और उनकी कला भी जिन्दा रहेगी।
लेकिन आज ये खबर और यकिन दिला रही है कि अपना ध्यान सिर्फ सृजन होना चाहिए। ठेकेदार के फैसले का हार्दिक स्वागत। प्रणाम उसकी सोच और उसकी गणित को।
(Kgkadam)