कल्याण नगरी के राजाधिराज के रूप में ठाकुरजी के दर्शन ने मन मोहा

कल्याण नगरी के राजाधिराज के रूप में ठाकुरजी के दर्शन ने मन मोहा
X

 निंबाहेड़ा |,  वेदपीठ पर विराजित कल्याण नगरी के राजाधिराज ठाकुर जी कल्लाजी सहित पंच देवों का महाकुंभ के दौरान नित नया श्रृंगार श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। इसी कड़ी में महाकुंभ के अष्टम दिवस शनिवार को ठाकुर जी को स्वर्ण आभा के साथ वास्तव में हीरे मोतियों से जड़े श्रृंगार के साथ कल्याण नगरी के राजाधिराज के रूप में धराया गया स्वरूप लोगों को चकित करने वाला था। कथा व्यास स्वामी सुदर्शनाचार्य ने भी ठाकुरजी के दर्शन कर भावुक होते हुए कहा कि आज तो वास्तव में हम सब को कल्याण नगरी के राजाधिराज के रूप में ही दर्शन देकर धन्य कर रहे है।  राघव के जीवन चरित्र में ब्रह्माण्ड के सभी ज्ञान विज्ञान समाहित – स्वामी सुदर्शनाचार्य  स्वामी सुदर्शनाचार्य ने भगवान श्रीराम के वनवास प्रसंग में वाल्मिकी रामायण के संदर्भ में कहा कि राघव का चरित्र इतना विस्तारित है कि उसमें ब्रह्माण्ड के सभी ज्ञान विज्ञान समाहित है। उन्होंने कहा कि उनके जीवन से नीती शास्त्र, समाज शास्त्र, विज्ञान, पक्षी शास्त्र सहित वेद पुराण उपनिषद और संहिता को सम्यक रूप से समझा जा सकता है। स्वामी सुदर्शनाचार्य शनिवार को वाल्मिकी कथा मंडप में व्यासपीठ से कथा अमृतपान करा रहे थे। उन्होंने कहा कि मर्यादा पुरूषोत्तम का मानव रूप में जन्म जगत के कल्याण के लिए हुआ था। जिसके फलस्वरूप ऋषि मूनियों, राक्षसों, पक्षियों व जीव मात्र ने उनके आदर्श स्वरूप को साक्षात देखा है। वहीं भगवत रूप में अनुभूति भी की है। उन्होंने कहा कि कौशल्या से कई अधिक सुमित्रा ने श्रीराम में भगवत स्वरूप पाया। उन्होंने कहा कि विपत्ति के क्षण में ही मनुष्य अपने पराए का अनुभव कर सकता है, क्योंकि श्रीराम ने कई विपत्तियों का सामना करते हुए मनुष्य को विपत्ती से और अधिक मजबूत होने का संदेश दिया। स्वामी जी ने कहा कि जहां दिनभर श्रीराम के राज्याभिषेक की चर्चा थी, वहीं दूसरे दिन के सूर्योदय के साथ वनवास का सुअवसर आ गया। जिसे प्रभु ने सहज स्वीकार कर लिया। वन में रहते हुए राम लक्ष्मण जानकी कुश की साथरी पर शयन करने के साथ ही कंद मूल फल का सेवन करते थे। उन्होंने बताया कि रामजी जब विश्राम कर रहे थे तो लक्ष्मण पहरा दे रहे थे, तब निशाद राज ने सोचा कि कई भरत के हित को देखते हुए लखन कोई अनहोनी ना कर दे। दूसरी ओर निशाद राज की प्रजा सशंकित होकर जग रही थी कि कई माता जानकी को देखकर निशाद राज कुछ अनहोनी ना कर दे, लेकिन सभी के जागने का उद्देश्य उस समय स्पष्ट हुआ, जब सभी एक के भाव से अपने प्रभु की सेवा में पाए गए। श्रीराम ने वलकल वेश में गंगा का पूजन किया, हांलाकि वाल्मिकी रामायण में केवट का प्रसंग विस्तारित नहीं है, तथापि तुलसीकृत रामायण में केवट प्रसंग को विशेष महत्व दिया गया है। स्वामी सुदर्शनाचार्य जी ने बताया कि केवट पूर्व जन्म में क्षीर सागर में रहने वाला कच्छप था जिसने यह भावना प्रकट कि वे विष्णु के अनुठे स्वरूप के दर्शन कर चरण स्पर्श कर सके। उसकी यह कामना केवट के रूप में पूरी हुई, जब श्रीराम ने केवट को गंगा पार करने के लिए नाव लाने को कहा तब केवट ने श्रीराम के चरण रज की महिमा का बखान करते हुए कहा कि मैं आपके मर्म को जानता हूं इसलिए चरण धोए बिना नाव में बैठाना संभव नहीं है। श्रीराम के चरण प्रक्षालन का प्रथम अवसर राजा जनक को मिला था, जिन्होंने जामाता के रूप में श्रीराम के चरणों को स्वर्ण कलश में भरे जल से प्रक्षालन किया था, जबकि केवट ने कटौथे में पानी भरकर बारंबर चरण धोकर अपने सभी वंशजों को मूक्ति दिलाने का सौभाग्य प्राप्त किया। प्रारंभ में वेदपीठ के न्यासियों ने मुख्य आचार्य, मुख्य यजमान ठाकुर जी व व्यासपीठ का पूजन किया। वहीं शुक्रवार संध्या वेला में श्रीरंग मंदिर वृंदावन के ट्रस्टी तथा अशरफी भवन अयोध्या पीठ के स्वामी श्रीधराचार्य जी ने अपने आशीवर्चन में कल्याण महाकुंभ को आलौकिक आयोजन बताते हुए ठाकुरजी की महिमा को अतुलनीय बताया। इस मौके पर प्रदेश के सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना, नपाध्यक्ष सुभाषचन्द्र शारदा, पार्षद मनोज पारख, रवि सोनी, जावेद खान, फिरदोश बी, आजाद जाट, नितेश आंजना, ओमप्रकाश बाहेती सहित अन्य जनप्रतिनिधियों के साथ ही सुखाड़ियां विश्व विद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नीरज शर्मा, डॉ प्रशांत शुक्ला, डॉ मधुसूदन शर्मा सहित अन्य अतिथियों ने व्यासपीठ की आरती कर आचार्य श्री से आशीर्वाद लिया। इस मौके पर आंजना ने कहा कि सौभाग्य की बात है कि इस नगर में एक ही मंच पर दो संतों के दर्शन का सुअवसर मिला है। उन्होंने प्रभु श्रीराम के जीवन से गंगा जमुनी संस्कृति को बढावा मिलने की कामना की।     पंच दिवसीय श्रीराम महायज्ञ में चतुर्थ दिवस देवासी व रेबारी समाज के नाम रहा  अष्टादश कल्याण महाकुंभ के अष्टम दिवस शनिवार को श्रीराम यज्ञशाला में पंच दिवसीय श्रीराम महायज्ञ का चतुर्थ दिवस देवासी एवं रेबारी समाज के नाम रहा। जिसमें लगभग 350 अधिक युगल यजमानों ने शाकल्य एवं गौघृत्य की आहूतियां देते हुए सर्वत्र खुशहाली की कामना की। इस मौके पर वेदपीठ की ओर से श्रीसूक्त एवं पुरूसूक्त के मंत्रों के साथ षोडश कन्याओं और वामन स्वरूप षोडश बटुकों की वैदिक विधान के अनुसार पूजा कर वैदिक संस्कृति को बढावा देने के लिए विश्व विद्यालय की उत्तरोतर प्रगति तथा देश प्रदेश में अच्छी वर्षा की कामना की।     पंडित मिश्रा की भजन संध्या खूब जमी   महाकुंभ के सप्तम दिवस वाल्मिकी कथा मंडप के विशाल मंच पर इंदौर के पंडित रोहित भूषण मिश्रा, गढबोर चारभुजा के धर्मेन्द्र सहित अन्य गायकों की भजन संध्या ने खूब रंग जमाया। मध्य रात्रि को चली भजन संध्या में श्रोता भक्तिरस से सराबोर होते रहे। इस दौरान पंडित मिश्रा ने अपने ही अंदाज में कल्लाजी का आह्वान करते हुए जब आंगणे पधारों कल्लाजी म्हारे सुनाया तो समूचा पाण्डाल ठाकुरजी के जयकारों से गूंज उठा। उन्होंने महाकाल की आराधना करते हुए महाकाल की गुलामी मेरे काम आ गई है सुनाकर वातावरण को शिवमय बनाने तथा राधा के मन में बस गए श्याम मुरारी भजन के माध्यम से कृष्ण भक्ति से आनंदित कर दिया। वहीं सरपंच धर्मेन्द्र ने लोक प्रचलित बन्नों म्हारों चारभुजा रो नाथ बन्नी तो म्हारी तुलसा लाड़ली तथा सूखा ने हरिया कर देवों म्हारा चारभुजा रो काई कैणों जैसे भजनों के माध्यम से मेवाड़नाथ चारभुजा जी की महिमा को बखान करते हुए खूब तालियां बटौरी। प्रारंभ में वेदपीठ की ओर से अतिथि कलाकारों का तुलसी माला और उपरणा ओढ़ाकर स्वागत किया गया।  दिव्य दर्शन, यज्ञ की पूर्णाहुति व मातृपितृ पूजन आज   कल्याण महाकुंभ के अंतिम दिवस आषाढ़ कृष्णा अष्टमी रविवार 11 जून को प्रात: 8 बजे 51 कुण्डीय श्रीराम महायज्ञ की पूर्णाहुति के साथ ही कथा मंडप में सैकड़ों भक्तों द्वारा मातृपितृ पूजन किया जाएगा। वेदपीठ के पदाधिकारियों ने बताया कि प्रात: 11 बजे मंदिर पर ध्वजारोहण उपरान्त दोपहर ठीक 12 बजकर 12 मिनट पर ठाकुरजी के प्राकट्यों उत्सव के रूप में दिव्य दर्शन एवं महाप्रसादी के साथ भव्य विशाल महाकुंभ संपन्न होगा।

Next Story